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दुर्गा भाभी भारत के स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारियों

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 मुझे भी सौभाग्य मिला था  इनके दर्शन का - "दुर्गा भाभी भारत के स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारियों की प्रमुख सहयोगी थी। 18 दिसम्बर 1928 को भगत सिंह ने इन्हीं दुर्गा भाभी के साथ वेश बदल कर कलकत्ता-मेल से यात्रा की थी। दुर्गा भाभी क्रांतिकारी भगवती चरण बोहरा की धर्मपत्नी थी।"        "महान क्रांतिकारी "दुर्गा भाभी" को उनकी जन्मतिथि 7 अक्टूबर पर "आर्य परिवार संस्था, कोटा" की ओर से हार्दिक शत शत नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि।"                 दुर्गा भाभी (दुर्गावती देवी) का जन्म 7 अक्टूबर 1902 को शहजादपुर ग्राम अब कौशाम्बी जिला में पंडित बांके बिहारी के यहां हुआ। इनके पिता इलाहाबाद कलेक्ट्रेट में नाजिर थे और इनके बाबा महेश प्रसाद भट्ट जालौन जिला में थानेदार के पद पर तैनात थे। इनके दादा पं॰ शिवशंकर शहजादपुर में जमींदार थे जिन्होंने बचपन से ही दुर्गा भाभी के सभी बातों को पूर्ण करते थे।        दस वर्ष की अल्प आयु में ही इनका विवाह लाहौर के भगवती चरण बोहरा के साथ हो गया। इनके ससुर शिवचरण जी रेलवे में ऊंचे पद पर तैनात थे। अंग्रेज सरकार ने उन्हें राय स

महान क्रांतिकारी "दुर्गा भाभी

 मुझे भी सौभाग्य मिला था  इनके दर्शन का - "दुर्गा भाभी भारत के स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारियों की प्रमुख सहयोगी थी। 18 दिसम्बर 1928 को भगत सिंह ने इन्हीं दुर्गा भाभी के साथ वेश बदल कर कलकत्ता-मेल से यात्रा की थी। दुर्गा भाभी क्रांतिकारी भगवती चरण बोहरा की धर्मपत्नी थी।"      "महान क्रांतिकारी "दुर्गा भाभी" को उनकी जन्मतिथि 7 अक्टूबर पर "आर्य परिवार संस्था, कोटा" की ओर से हार्दिक शत शत नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि।"               दुर्गा भाभी (दुर्गावती देवी) का जन्म 7 अक्टूबर 1902 को शहजादपुर ग्राम अब कौशाम्बी जिला में पंडित बांके बिहारी के यहां हुआ। इनके पिता इलाहाबाद कलेक्ट्रेट में नाजिर थे और इनके बाबा महेश प्रसाद भट्ट जालौन जिला में थानेदार के पद पर तैनात थे। इनके दादा पं॰ शिवशंकर शहजादपुर में जमींदार थे जिन्होंने बचपन से ही दुर्गा भाभी के सभी बातों को पूर्ण करते थे।        दस वर्ष की अल्प आयु में ही इनका विवाह लाहौर के भगवती चरण बोहरा के साथ हो गया। इनके ससुर शिवचरण जी रेलवे में ऊंचे पद पर तैनात थे। अंग्रेज सरकार ने उन्हें राय साहब का खित

वेदों के पुनर्स्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती जी

  वेदों के पुनर्स्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती जी  महर्षि दयानन्द सरस्वती का नाम राष्ट्र निर्माताओं में सदैव आदरपूर्वक लिया जाएगा। उन्होंने आध्यात्मिक, धार्मिक एवं सामाजिक क्षेत्र में जागृति का शंखनाद तो फूँका ही था, उन्होंने देशवासियों को स्वराज्य के महत्व से भी अवगत कराया था। उस समय की राजनैतिक दासता की स्थिति के कारण उनका हृदय विह्वल था। उन्होंने अपने अमर ग्रंथ सत्यार्थप्रकाश के अष्टम समुल्लास में लिखा है- ‘‘अब अभाग्योदय से और आर्यों के आलस्य, प्रमाद, परस्पर विरोध से अन्य देशों के राज्य करने की तो कथा ही क्या कहनी, किन्तु आर्यावर्त में भी आर्यों का अखण्ड, स्वतन्त्र, स्वाधीन, निर्भय राज्य इस समय नहीं है। जो कुछ भी है सो भी विदेशियों से पादाक्रान्त हो रहा है। दुर्दिन जब आता है, तब देशवासियों को अनेक प्रकार का दुःख भोगना पड़ता है। कोई कितना भी करे, परन्तु जो स्वदेशीय राज्य होता है, सर्वोपरि उत्तम होता है। अथवा मतमतान्तर के आग्रह रहित, माता-पिता के समान कृपा, न्याय और दया के साथ विदेशियों का राज्य भी पूर्ण सुखदायक नहीं है। परन्तु भिन्न-भिन्न भाषा, पृथक-पृथक शिक्षा अलग-अलग व्यवहार का छूटना

aaj ka mantra

  ओ३म् विश्वे देवा नो अद्या स्वस्तये वैश्वानरो वसुरग्नि: स्वस्तये।  देवा अवन्त्वृभव: स्वस्तये स्वस्ति नो रुद्र: पात्वंहस: ( ऋग्वेद ५|५१|१३ ) अर्थ  :- आज सब विद्वान लोग हमारे कल्याण के लिए हो। सब मनुष्यों में वर्तमान सर्वव्यापक ज्ञान-स्वरूप परमात्मा हमारा कल्याण करे। दुष्टों को दण्ड देने वाला प्रभु  ! हमें पापों से सदा दूर रखें ताकि हमारा सदा कल्याण हो। Intercast Marriage ,The Vivah Sanskar will be solemnised,16sanskaro ke liye smpark kre 9977987777

ज्ञानी और विद्यावान हो

 कोई कितना ही ज्ञानी और विद्यावान हो , यदि वह अपने आचरण में विद्या और ज्ञान का उपयोग नही करता तो वह मूर्ख ही नही महामूर्ख हैं। वह उस जानवर की तरह है जिस पर बहुत सी किताबें लदी होती है पर वह उन पुस्तकों के ज्ञान से लाभ नही उठा पाता। जैसे तपेली और कलछी को स्वादिष्ट व्यंजन के स्वाद का आनन्द नही मिलता। 

ऋषि दयानन्द ने सत्य के निर्णयार्थ सब धर्माचार्यों से शास्त्रार्थ किये थे

  ओ३म् “ऋषि दयानन्द ने सत्य के निर्णयार्थ सब धर्माचार्यों से शास्त्रार्थ किये थे” =========== सभी मनुष्य बुद्धि रखते हैं जो ज्ञान प्राप्ति में सहायक होने के साथ सत्य व असत्य का निर्णय कराने में भी सहायक होती है। एक ही विषय में अनेक मनुष्यों व आचार्यों के विचार भिन्न-भिन्न हो सकते हैं। यह भी सत्य एवं प्रामणिक तथ्य है कि एक विषय में सत्य एक ही होता है। गणित में दो व दो चार होते हैं। कोई गणित का विद्वान व आचार्य इससे भिन्न मान्यता वाला नहीं होता है। इसी प्रकार से धर्म विषय में मुख्यतः ईश्वर के स्वरूप, गुण-कर्म-स्वभाव, आत्मा के स्वरूप व गुण-कर्म-स्वभाव तथा उपासना की विधि आदि विषयों की चर्चा करके एक सत्य सिद्धान्त स्थापित किया जा सकता है व करना भी चाहिये। वर्तमान में व महाभारत के बाद से इन विषयों में एक मत न होकर अनेक आचार्यों के भिन्न-भिन्न मत व विचार रहे हैं। महाभारत के बाद स्वामी आदि शंकराचार्य जी ऐसे आचार्य हुए हैं जिन्होंने जैन मत के आचार्यों से ईश्वर के अस्तित्व पर शास्त्रार्थ किया था और शास्त्रार्थ में जो निष्कर्ष व तथ्य सामने आये थे, वह स्वामी शंकराचार्य जी का अद्वैत मत था जिसे शास्

मनुष्य का आत्मा कर्म करने में स्वतन्त्र और फल भोगने में परतंत्र है

ओ३म् “मनुष्य का आत्मा कर्म करने में स्वतन्त्र और फल भोगने में परतंत्र है” ==========https://youtu.be/s_rCeN2lLqc हमें ज्ञात है व ज्ञात होना चाहिये कि संसार में तीन अनादि व नित्य पदार्थों का अस्तित्व है। यह तीन पदार्थ ईश्वर, जीव व प्रकृति हैं। ईश्वर व जीव सत्य एवं चेतन पदार्थ हैं। ईश्वर स्वभाव से आनन्द से युक्त होने से आनन्दस्वरूप है तथा जीव आनन्द व सुख से युक्त न होने के कारण आनन्द व सुख प्राप्ति की चेष्टा करता है। ईश्वर जीव को सुख व आनन्द देने में सहायक होता है। जीवों को सुख आदि देने के लिये ही ईश्वर इस सृष्टि को रचा है व वही इसका पालन करता है जिससे सभी जीवों को उनके जन्म-जन्मान्तरों के सभी शुभ व अशुभ कर्मों का यथायोग्य सुख व दुःखी कर्मों फल प्राप्त हो सके। परमात्मा ने इस सृष्टि वा ब्रह्माण्ड को प्रकृति नामी अनादि पदार्थ से बनाया है। यदि यह तीन अनादि व नित्य पदार्थ न होते तो हम भी न होते, न ही ईश्वर होता और न ही यह संसार व ब्रह्माण्ड होता। इस ब्रह्माण्ड में ईश्वर एक मात्र सत्ता है। संसार में दूसरा व तीसरा कोई ईश्वर व इसके समान सत्ता नहीं है। जीवात्मायें सब एक समान हैं जो अपने पूर्वजन्