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यदि हमारे पूर्वज युद्ध हारते ही रहे तो हम जिंदा कैसे हैं

यदि हमारे पूर्वज युद्ध हारते ही रहे तो हम जिंदा कैसे हैं... 〰〰🔸〰〰🔸〰〰🔸〰〰🔸〰〰🔸〰〰 हम हिन्दू कैसे बने हुए हैं... हमारे पूर्वजों की भूमि की चौहद्दी प्रायः वैसी ही क्यूँ है... और उसी चौहद्दी को पुनः हासिल करने को हम प्रतिबद्ध क्यूँ हैं  सौजन्य : आजकल लोगों की एक सोच बन गई है कि राजपूतों ने लड़ाई तो की, लेकिन वे एक हारे हुए योद्धा थे, जो कभी अलाउद्दीन से हारे, कभी बाबर से हारे, कभी अकबर से, कभी औरंगज़ेब से... *क्या वास्तव में ऐसा ही है ?* यहां तक कि समाज में भी ऐसे कईं राजपूत हैं, जो महाराणा प्रताप, पृथ्वीराज चौहान आदि योद्धाओं को महान तो कहते हैं, लेकिन उनके मन में ये हारे हुए योद्धा ही हैं महाराणा प्रताप के बारे में ऐसी पंक्तियाँ गर्व के साथ सुनाई जाती हैं :- "जीत हार की बात न करिए, संघर्षों पर ध्यान करो" "कुछ लोग जीतकर भी हार जाते हैं, कुछ हारकर भी जीत जाते हैं" असल बात ये है कि हमें वही इतिहास पढ़ाया जाता है, जिनमें हम हारे हैं -- *मेवाड़ के राणा सांगा ने 100 से अधिक युद्ध लड़े, जिनमें मात्र एक युद्ध में पराजित हुए और आज उसी एक युद्ध के बारे में दुनिय

वेद मंत्रों का काल्पनिक विनियोग

*आज दुर्गा-पूजा है, दुर्गा-अष्टमी है |* बंगाल से लेकर पूरे देश में इसका बड़ा महात्म्य है | बड़े-बड़े पण्डित आयेंगे, दुर्गा-पूजन से लेकर दुर्गा-हवन तक करेंगे | यजमान को प्रभावित करने के लिए उसके सामने बहुत सारे मन्त्र बोले जायेंगे | यजमान को यह लगना चाहिये कि दुर्गा-पूजा के अवसर पर दुर्गा से सम्बन्धित मन्त्र भी बोला गया इसलिए वेद-मन्त्र भी खोजना होगा ताकि वह प्रभावित हो (ब्राह्मणों का एक अकथित नियम सा बन गया है की यजमान को प्रकाशित न करो परन्तु प्रभावित कर दो और दक्षिणा लेकर चलते बनो, इसमें दोष यजमानों का भी है क्यों कि वे "आँख के अन्धे-गाँठ के पूरे" बने बैठे रहते हैं जिसका लाभ ब्राह्मण-वर्ग उठाता रहता है | यदि यजमान ने रुचिपूर्वक और ब्राह्मण ने ज्ञान-पूर्वक संस्कार करवाया होता तो आज की स्थिति कहीं अच्छी होती इसलिए दोष दोनों का है|) अपने यजमान को प्रभावित करने के लिए ही ब्राह्मण प्रायः निम्न प्रयोग करते रहते हैं :- १) यदि शनैश्चर (शनि-देवता) की पूजा करनी है तो "शन्नो देवीरभिष्टये” (यजुर्वेद 36/12) मन्त्र बोला जाता है | जिसका शनि के साथ निकट का नहीं तो दूर का भी सम्बन