संदेश

सितंबर, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

उस में मण्डूकों की आवाज का वर्णन अत्यन्त हृदयग्राही हुआ है

 मण्डूकी अथर्व ४/१५ का विषय वर्षा ऋतु है । उस में मण्डूकों की आवाज का वर्णन अत्यन्त हृदयग्राही हुआ है । इस पर निम्नलिखित इतिहास गढ़ा गया है-- वसिष्ठो वर्षकाम: पर्जन्यं तुष्टाव । तं मण्डूका अन्वमोदन्त । स मण्डूकान् अनुमोदमानान् दृष्ट्वा तुष्टाव । तदभिवादिन्येषर्ग् भवति -- उपप्रवद मण्डूकि वर्षमा वद तादुरि । मध्ये ह्रदस्य प्लवस्व विगृह्य चतुर: पद: ।।१४।।                             अथर्व:४/१५/१४ वसिष्ठ ने वर्षा की इच्छा से बादल की स्तुति की मेंढकों ने उसका अनुमोदन किया । अनुमोदन करते हुए मेंढकों को देखकर उसने उनकी भी स्तुति कर दी । इस वृत्तान्त को यह ऋचा कह रही है--    ऐ मण्डूकि ! उठ, ऊंची बोल । ऐ टर्राने वाली ! वर्षा का समाचार ला । चारों पैरों को उठाकर तालाब के बीच में तैर ।                  इस मन्त्र में मण्डूकी नाम से संसार-सरोवर में डूबी हुई बुद्धि को सम्बोधित किया गया है । मण्डूक का अर्थ यास्क ने मज्जूक=डूबा हुआ या मन्दूक= मस्त किया है ।उसे जग जाने, प्रभु-प्रेम की मनोहर वृष्टि का सन्देश अपनी उद्बुद्ध स्तुति-वृत्ति से पाने की प्रेरणा की गई है । इस मण्डूकी का चार पैर उठाना क्या है ? चत

दूसरों को बार-बार गलती करने का अवसर न देवें।

   दूसरों को बार-बार गलती करने का अवसर न देवें। इसमें आपकी बुद्धिमत्ता नहीं मानी जाएगी।        हमें प्रतिदिन अनेक लोगों के साथ व्यवहार करना पड़ता है। किसी के चेहरे पर तो लिखा नहीं है, कि यह व्यक्ति ईमानदार है या धोखेबाज है। धीरे-धीरे अनुभव से ही समझ में आता है, कि कौन ईमानदार है, और कौन धोखेबाज है!        और यह सब व्यवहार में परीक्षण करने से ही पता चलता है। यह परीक्षण करना आवश्यक भी है। यदि आप अपने आसपास के लोगों का परीक्षण नहीं करते, उनसे सावधान नहीं रहते, तो ऐसे लोग आपको निश्चित रूप से हानि पहुंचाएंगे। बार-बार आपको धोखा देंगे, और लूटेंगे।        सब लोग इतने ईमानदार नहीं हैं, इतने सीधे सच्चे नहीं हैं, जितना आप उनको समझते हैं। बल्कि अनुभव तो यही बताता है कि, संसार में अधिकतर लोग बेईमान हैं। अवसर की तलाश में रहते हैं। अवसर मिलते ही घोटाला करते हैं। आपको मेरी बात पर विश्वास न होता हो, और आपको परीक्षण करना हो, तो आप कर भी सकते हैं। सड़क पर ₹ 500 का एक नोट गिरा दीजिए और छुप कर देखिए, क्या होता है ? जिसकी भी नजर  पहले पड़ गई, बस वही ले जाएगा। इससे आपको पता चल गया न, कि लोग कितने ईमानदार हैं

यदि परोपकार करने की आपकी इच्छा हो, तो परोपकार

  यदि परोपकार करने की आपकी इच्छा हो, तो परोपकार करने से पहले स्वयं अपनी योग्यता बनाएं, और फिर स्वयं परोपकार करें। दूसरे योग्य व्यक्तियों को परोपकार करने का आदेश/उपदेश न देवें। यह असभ्यता है।         बहुत से लोगों में पूर्व जन्मों के अच्छे संस्कार होते हैं। उन संस्कारों के कारण, उनमें सेवा परोपकार की भावना उत्पन्न होती है। यह अच्छी बात है। परंतु उन भावनाओं पर वे भावुक लोग नियंत्रण नहीं रख पाते। और यह चाहते हैं, कि जल्दी से जल्दी इस संसार का सुधार हो जाए। फटाफट लोग सुधर जाएं। अंधविश्वास पाखंड अन्याय शोषण चोरी डकैती लूट मार अत्याचार स्मगलिंग आदि सब बुरे काम जल्दी से बंद हो जाएं। 8109070419         परंतु केवल ऐसी भावनाएं रखने से या ऐसी इच्छाएँ रखने से ये सब बुरे काम बंद नहीं होते।  इसके लिए व्यक्ति को बहुत  पुरुषार्थ करना पड़ता है। बहुत सी कलाएं सीखनी पड़ती हैं। बहुत से शास्त्रों का अध्ययन करना पड़ता है। बहुत सी विद्वता प्राप्त करनी पड़ती है। बहुत सा तर्क वितर्क भी सीखना पड़ता है। ऊंचे पद और अधिकार प्राप्त करने पड़ते हैं। तब जाकर कुछ परिणाम आता है। इतना सब करने में बहुत समय और परिश्रम की आ

भाषाशिक्षण के चार चरण ————————-

   भाषाशिक्षण के चार चरण ————————- विचार-विनिमय का उत्तम  माध्यम होती है भाषा । सम्बन्धों को सुदृढ़ करने का सर्वोत्तम साधन भाषा ।। भाषा कभी नहीं होती है निजी सम्पदा जग में। यह सम्पत्ति समाज की है हम समाज से लेते ऋण में ।। भाषाशिक्षण कैसे होता है ? करें आज इस पर विचार । सुनना, बोलना,लिखना,पढ़ना  भाषाशिक्षण के चरण चार।। इन चारों चरणों पर करते  हैं क्रमश:सोदाहरण विचार। “श्रवण” अर्थात् ठीक से सुनना भाषाशिक्षण का प्रथम चरण  ।। उच्चरित शब्द को बडे ध्यान से कान लगाकर करें श्रवण । वक्ता ने कहा “दागो” तो फिर दागो को “ दागो “ ही सुनना है।। सुना अगर “दागो” को “भागो”  तो अर्थ का अनर्थ ही हो जाना है । शिक्षण का द्वितीय चरण है भाषण जिसका अर्थ है शुद्ध उच्चारण ।। शुद्ध सुनें, फिर शब्द शुद्ध ही बोलें। “शंकर”को “शंकर” ही बोलें “संकर” कभी नहीं बोलें ।।” वन को बन,भाषा को भासा जोशी को जोसी कभी नहीं बोलें। शिक्षण का तृतीय चरण है लेखन लेखन सदा शुद्ध हो,ध्यान रखें।। मात्रादोष नहीं हो,सतर्क रहें। “ठीक” शब्द को ठीक लिखें।। “ठिक” नहीं भूलकर भी लिखें “ठिक” लिखा एक शिक्षक ने । मैंने लिखकर “ठीक”दिखाया  ठीक शब्द तो

एक बहुत बड़ा विशाल पेड़ था। उस पर बीसीयों हंस रहते थे।

 एक बहुत बड़ा विशाल पेड़ था। उस पर बीसीयों हंस रहते थे। उनमें एक बहुत सयाना हंस था, बुद्धिमान और बहुत दूरदर्शी। सब उसका आदर करते ‘ताऊ’ कहकर बुलाते थे। एक दिन उसने एक नन्ही-सी बेल को पेड़ के तने पर बहुत नीचे लिपटते पाया। ताऊ ने दूसरे हंसों को बुलाकर कहा, देखो, इस बेल को नष्ट कर दो। एक दिन यह बेल हम सबको मौत के मुंह में ले जाएगी। एक युवा हंस हंसते हुए बोला, ताऊ, यह छोटी-सी बेल हमें कैसे मौत के मुंह में ले जाएगी? सयाने हंस ने समझाया, आज यह तुम्हें छोटी-सी लग रही है। धीरे-धीरे यह पेड़ के सारे तने को लपेटा मारकर ऊपर तक आएगी। फिर बेल का तना मोटा होने लगेगा और पेड़ से चिपक जाएगा, तब नीचे से ऊपर तक पेड़ पर चढ़ने के लिए सीढ़ी बन जाएगी। कोई भी शिकारी सीढ़ी के सहारे चढ़कर हम तक पहुंच जाएगा और हम मारे जाएंगे। दूसरे हंस को यकीन न आया, एक छोटी-सी बेल कैसे सीढ़ी बनेगी? तीसरा हंस बोला, ताऊ, तू तो एक छोटी-सी बेल को खींचकर ज्यादा ही लंबा कर रहा है। एक हंस बड़बड़ाया, यह ताऊ अपनी अक्ल का रौब डालने के लिए अंट-शंट कहानी बना रहा है। इस प्रकार किसी दूसरे हंस ने ताऊ की बात को गंभीरता से नहीं लिया। इतनी दूर तक देख पाने की उ

ईश्वर हमारा माता, पिता और आचार्य भी है”

 ईश्वर हमारा माता, पिता और आचार्य भी है” =========== ईश्वर सच्चिदानन्दस्वरूप, निराकार, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, अनादि, अनन्त, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी, अजर, अमर, अभय एवं सृष्टिकर्ता है। वह जीवात्माओं के जन्म-जन्मान्तर के कर्मों के अनुसार न्याय करते हुए उन्हें भिन्न-भिन्न योनियों में जन्म देकर उनको सुख व दुःख रूपी भोग व फल प्रदान करता है। संसार में असंख्य प्राणी योनियां देखने को मिलती है। इन सभी योनियों में मनुष्य योनि ही एक ऐसी योनि है जो उभय योनि कहलाती है। यह कर्म करने की और भोग योनि होने से उभय योनि कहलाती है। मनुष्येतर अन्य सभी योनियां केवल भोग योनियां होती हैं। भोग योनियों में हम अपने पूर्वजन्मों में मनुष्य योनियों में किये हुए पाप कर्मों का फल भोगते हैं और मनुष्य योनि में हमें अपने पूर्वजन्मों के पाप व पुण्य कर्मों का भोग प्राप्त होता है। मनुष्य योनि में पूर्व कर्मों के फलों का भोग करने के साथ हम नये कर्मों को भी करते हैं जिससे हमारी आत्मा सहित शरीर की उन्नति होती है। आत्मा की उन्नति होने पर मनुष्य पुण्य कर्मों को करता है जिसस

आज का संकल्प पाठ -- (सृष्टि संवत् - संवत्सर-अयन - ऋतु- मास-तिथि- नक्षत्र)

  ओ३म् सादर नमस्ते जी  आपका दिन शुभ हो  दिनांक  - -२८ सितम्बर २०२० दिन  - - सोमवार   तिथि  - -  द्वादशी   नक्षत्र - - धनिष्ठा   पक्ष  - - शुक्ल  माह  - - आश्विन ( द्वितीया) ऋतु  - - शरद्   सूर्य  - - दक्षिणायन  सृष्टि संवत्  - - १,९६,०८,५३,१२१ कलयुगाब्द  - - ५१२१ विक्रम संवत्  - - २०७७ शक संवत्  - - १९४२    🔥ओ३म्....!                 🌷अनुपम उपदेश रत्नावली🌷      मूल्य का विचार मत करो―दो वस्तुओं के अधिक मूल्य का विचार मत करो। (१) पुस्तक यदि मनपसन्द हो (२) औषध यदि फायदेमन्द हो।     - एकान्तवास―एकान्तवास से तीन लाभ प्राप्त होते हैं।(१) स्वास्थय की वृद्धि, (२) आत्मिक शक्ति (३) धर्म की वृद्धि।      चोरी―चोर केवल वही मनुष्य नहीं जो किसी की वस्तु को चुराता है अपितु वह भी है जो झूठ बोलता है क्योंकि वह जानी वा समझी बात को छिपाता है।     भक्त―भक्त केवल वही नहीं जो दिन रात ईश्वर की भक्ति करे अपितु वह भी है, जो लोक सेवा में तत्पर रहे।     आत्मवत व्यवहार―जो व्यवहार तू अपने लिए पसन्द नहीं करता वह दूसरों के लिए भी मत कर।     धार्मिक की पहचान―धार्मिक मनुष्य वह है जिससे लोग अपनी जान व माल को सुरक्षित

हुमायूं को ठोक पीटकर भगा दिया।

  बाबर ने मुश्किल से कोई 4 वर्ष राज किया। हुमायूं को ठोक पीटकर भगा दिया। मुग़ल साम्राज्य की नींव अकबर ने डाली और जहाँगीर, शाहजहाँ से होते हुए औरंगजेब आते आते उखड़ गया। कुल 100 वर्ष (अकबर 1556ई. से औरंगजेब 1658ई. तक) के समय के स्थिर शासन को मुग़ल काल नाम से इतिहास में एक पूरे पार्ट की तरह पढ़ाया जाता है.... मानो सृष्टि आरम्भ से आजतक के कालखण्ड में तीन भाग कर बीच के मध्यकाल तक इन्हीं का राज रहा....! • अब इस स्थिर (?) शासन की तीन चार पीढ़ी के लिए कई किताबें, पाठ्यक्रम, सामान्य ज्ञान, प्रतियोगिता परीक्षाओं में प्रश्न, विज्ञापनों में गीत, ....इतना हल्ला मचा रखा है, मानो पूरा मध्ययुग इन्हीं 100 वर्षों के इर्द गिर्द ही है। • जबकि उक्त समय में मेवाड़ इनके पास नहीं था। दक्षिण और पूर्व भी एक सपना ही था। अब जरा विचार करें..... क्या भारत में अन्य तीन चार पीढ़ी और शताधिक वर्ष पर्यन्त राज्य करने वाले वंशों को इतना महत्त्व या स्थान मिला है ? अकेला विजयनगर साम्राज्य ही 300 वर्ष तक टिका रहा। हीरे माणिक्य की हम्पी नगर में मण्डियां लगती थीं।महाभारत युद्ध के बाद 1006 वर्ष तक जरासन्ध वंश के 22 राजाओं ने ।

दृष्टिकोण का फ़र्क

  दृष्टिकोण का फ़र्क बहुत समय पहले की बात है - किसी गाँव में एक किसान रहता था ! वह रोज़ भोर में उठकर दूर झरनों से स्वच्छ पानी लेने जाया करता था ! इस काम के लिए वह अपने साथ दो बड़े घड़े ले जाता था , जिन्हें वो डंडे में बाँध कर अपने कंधे पर दोनों ओर लटका लेता था ! उनमे से एक घड़ा कहीं से फूटा हुआ था ,और दूसरा एक दम सही था ! इस वजह से रोज़ घर पहुँचते -पहुचते किसान के पास डेढ़ घड़ा पानी ही बच पाता था .ऐसा दो सालों से चल रहा था ! सही घड़े को इस बात का घमंड था कि वो पूरा का पूरा पानी घर पहुंचता है और उसके अन्दर कोई कमी नहीं है ! वहीँ दूसरी तरफ फूटा घड़ा इस बात से शर्मिंदा रहता था कि वो आधा पानी ही घर तक पंहुचा पाता है और किसान की मेहनत बेकार चली जाती है ! फूटा घड़ा ये सब सोच कर बहुत परेशान रहने लगा और एक दिन उससे रहा नहीं गया , उसने किसान से कहा , “ मैं खुद पर शर्मिंदा हूँ और आपसे क्षमा मांगना चाहता हूँ?”  “क्यों ? “ , किसान ने पूछा , “ तुम किस बात से शर्मिंदा हो ?” “शायद आप नहीं जानते पर मैं एक जगह से फूटा हुआ हूँ , और पिछले दो सालों से मुझे जितना पानी घर पहुँचाना चाहिए था बस उसका आधा ही पहु

केवल उसका परिवार ही हिन्दू था.

  पाकिस्तान के एक गाँव में       👳    रामफल रहता था.    पूरे गाँव में ....   केवल उसका परिवार ही हिन्दू था.    एक दिन उसका बाबू गुजर गया.    वो गाँव के सरपंच के पास गया,       और  बोला ~ सरपंच जी !      मेरे बाबू का देहांत हो गया है.   मुझे उनका अंतिम संस्कार करना है.      सरपंच बोला ~ देख रामफल ...        ये मुसलमानों का गाँव है.      यहाँ तो बस तुम दफना सकते हो.         बेचारा रामफल ...        उस समय तो मान गया, और         अपने बाबू को दफना दिया. लेकिन ... उसको चैन नही आया, और 😔     वह सोचने लगा, कि ...          जब तक बाबू की चिता को  🔥        आग नही मिलेगी,           तब तक उनकी आत्मा को ...           शाँति नहीं मिलेगी, इसलिए               कुछ तो करना पड़ेगा.       जब थोड़ी सी रात हुई, तो         वो कब्रिस्तान गया, और         अपने बाबू की लाश को           कब्र से निकाल कर    साथ वाली कब्र में लिटा आया, और      सुबह सरपंच के पास गया और        बोला ~   सरपंच जी !      बहुत बड़ी गड़बड़ हो गयी !       कार की चाबी मेरे बाबू की          जेब में ही रह गयी है, इसलिए ...            कब्र को

🏵हिन्दी संकल्प पाठ

  नमस्ते जी आपका दिन  शुभ  हो                        🚩प्रआश्विन-शु-१०-२०७७🚩     🔥 26  सितम्बर 2020  🔥 ~~~~~ दिन -----           शनिवार तिथि --  दशमी 6:59 pm नक्षत्र -------     उत्तरा आपाढ़ पक्ष ------          शुक्ल अमांत माह-   आश्विन-९ माह-- ---     प्रथम-आश्विन ऋतु --------       शरद सूर्य दक्षिणायणे,दक्षिण गोले   विक्रम सम्वत --2077  दयानन्दाब्द -- 196 शक सम्बत -1942 मन्वन्तर ---- वैवस्वत  कल्प सम्वत--1972949122 मानव,वेदोत्पत्ति सृष्टिसम्वत-१९६०८५३१२२ सूर्योदय -((दिल्ली)6:11🔅बदायूँ 6:04 सूर्यास्त--( दिल्ली)6:12🔅बदायूं 6:05     पहला सुख निरोगी काया: हमारा भोजन या तो अम्ल प्रधान होता है या क्षार प्रधान । अपने भोजन से हम जो खनिज द्रव्य प्राप्त करते हैं उनमें क्लोरीन,फास्फोरस,और गन्धक तो अम्ल प्रधान होते हैं और कैल्शियम (चूना), लोहा, मैग्नीशियम, पोटेशियम और सोडियम क्षार उत्पादक होते हैं..क्रमशः  रूप-वाणी : यदि सुशांत की मृत्यु की सी बीआई जॉच न होती तो बालीबुड का घिनौना चेहरा भी सामने न आता! धन्यवाद नीतीश!  आचार्य संजीव रूप  वेदकथाकार-,पुरोहित,कवि ,यज्ञतीर्थ- गुधनी-बदायूँ(उप्र) 99

| वेद वाणी ||

   |  वेद वाणी  ||  उनके सङ्ग से मनुष्यों को क्या जानना चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है। श॒श॒मा॒नस्य॑ वा नरः॒ स्वे॑दस्य सत्यशवसः। वि॒दा काम॑स्य॒ वेन॑तः॥८॥ – ऋग्वेद १-८६-८॥ शब्दार्थ – हे (नरः) मनुष्यो! तुम सभाध्यक्षादिकों के सङ्ग (वा) पुरुषार्थ से (शशमानस्य) जानने योग्य (सत्यशवसः) जिसमें नित्य पुरुषार्थ करना हो (वेनतः) जो कि सब शास्त्रों से सुना जाता हो तथा कामना के योग्य और (स्वेदस्य) पुरुषार्थ से सिद्ध होता है, उस (कामस्य) काम को (विद) जानो अर्थात् उसको स्मरण से सिद्ध करो॥८॥ भावार्थ – कोई पुरुष विद्वानों के सङ्ग विना सत्य काम और अच्छे-बुरे को जान नहीं सकता। इससे सबको विद्वानों का सङ्ग करना चाहिये॥८॥ – ऋग्वेदभाष्यम् – महर्षि दयानन्द सरस्वती सङ्कलकः – आर्य पङ्कजः+ रायगड, महाराष्ट्र, आर्यावर्त। +९१९९२३७३१२४९   वैचारिक क्रान्ति के लिए महर्षि दयानन्द सरस्वती द्वारा रचित कालजयी अमर ग्रन्थ "सत्यार्थप्रकाश" अवश्य पढें और पढायें।           सत्य सनातन    'वैदिक धर्म' की जय || कृण्वन्तो विश्वमार्यम् ||     || जय आर्यावर्त || smelan, marriage buero for all hindu cast, lov

पुरुष - स्त्री

 पुरुष   -  स्त्री      ---------------------    🌷समाज के निर्माण में पुरूष और स्त्री का दोनों का बराबर का स्थान है ।पुरूष और स्त्री गृहस्थ की गाड़ी के दो बराबर के पहिये है। गृहस्थ की उन्नति के लिए आवश्यक है कि ये दोनों ठीक प्रकार से एक दुसरे को सहयोग देते चलें। पुरूष और स्त्री दोनों के अपने गुण है, अपने अपने क्षेत्र तथा अधिकार है। दोनों एक दुसरे के प्रतिद्वन्दी नहीं है अपितु सहयोगी तथा पूरक है।     पुरूष इसलिए पुरूष है कि उसमें पौरूष अर्थात् बल और पराक्रम है, दुष्ट का दमन तथा श्रेष्ठ की रक्षा में समर्थ है ।     माता निर्मात्री भवति " माता " इसलिए इसका नाम है क्योंकि वह सन्तानों का निर्माण करती है। उन्हें जन्म देकर पालन पौषण करतीं है तथा उत्तम शिक्षा देती है। लज्जा तथा शालीनता नारी के स्वाभाविक गुण है। प्रन्तु आवश्यकता पड़ने पर नारी भी पुरूष का पौरूष धारण कर सकती है जैसे झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने किया था।  smelan, marriage buero for all hindu cast, love marigge , intercast marriage , arranged marigge arayasamaj sanchar nagar 9977987777

इंकार मे सर हिला दिया।

श्री टी.एन. शेषन जब मुख्य चुनाव आयुक्त थे, तो परिवार के साथ छुट्टीयां बिताने के लिए मसूरी जा रहे थे। परिवार के साथ उत्तर प्रदेश से निकलते हुऐ रास्ते में उन्होंने देखा कि पेड़ों पर कई गौरैया के सुन्दर घोंसले बने हुए हैं।  यह देखते ही उनकी पत्नी ने अपने घर की दीवारों को सजाने  के लिए दो गौरैया के घोंसले लेने की इच्छा व्यक्त की तो उनके साथ चल रहे। पुलिसकर्मियों ने तुरंत एक छोटे से लड़के को बुलाया, जो वहां मवेशियों को चरा रहा था.उसे पेड़ों से तोड कर दो गौरैया के घोंसले लाने के लिए कहा। लडके ने इंकार मे सर हिला दिया।  श्री शेषन ने इसके लिए लड़के को 10 रुपये देने की पेशकश की। फिर भी  लड़के के इनकार करने पर  श्री शेषन ने बढ़ा कर  ₹ 50/ देने की पेशकश की फिर भी लड़के ने हामी नहीं भरी.  पुलिस ने तब लड़के को धमकी दी और उसे बताया कि साहब ज़ज हैं और तुझे जेल में भी डलवा सकते हैं। गंभीर परिणाम भुगतने होंगे.  लड़का तब श्रीमती और श्री शेषन के पास गया और कहा,- "साहब, मैं ऐसा नहीं कर सकता। उन घोंसलों में गौरैया के छोटे बच्चे  हैं अगर मैं आपको दो घोंसले दूं, तो जो गौरैया अपने बच्चों के लिए भोजन की तला

जीवन में तनाव से कैसे बचें

 जीवन में तनाव से कैसे बचें          जो भी अपने पास है, उसी में संतुष्ट रहें। लेकिन और अधिक पाने का प्रयास भी न छोड़ें। और पुरुषार्थ करने पर भी जितना मिले, उतने में ही फिर सन्तोष करें।          अगर दिमाग में टेंशन ज्यादा समय तक रहता है, तो यह भयंकर रूप ले लेता है तो फिर डॉक्टरी सलाह की आवश्यकता पड़ती है। तनाव विचारों से जुड़ा रहता है। जब दूसरी तरफ ध्यान लगा दिया जाता है, तो तनाव खुद ही कम हो जाता है। ऐसे उत्साही, सकारात्मक लोगों से मिले, बात करें, जिन से बात करने में खुशी मिलती है।        भगवान से अकेले में बातें करें। जो उसने दिया, उसके लिए उसे धन्यवाद देवें। यह भी महसूस करें कि दुनिया में बहुत से लोग ऐसे भी हैं, जिनके पास तो उतना भी नहीं है।       जीवन में हर चीज नाशवान है। यदि सुख मिल रहा है, तो ठीक है। यदि दुःख भी आ रहा है, तो वो भी सदा रहने वाला नहीं है।        काम करने के एक से अधिक विकल्प रखिए। इस पर भी काम न हो, तो न सही। 'हम इसके बिना ही जी लेंगे।' यह एक और विकल्प भी रखिए। ऐसा करने से आप कभी दुःखी नहीं होंगे।        यदि हम जीवन की प्रत्येक घटना में सावधान रहेंगे, तो वे

दुनिया की सबसे महंगी ब्रांड कार मेरे गैरेज में पड़ी है।

 देखिए  आजकल ये पोस्ट ट्रेंड में है पूरी पढ़ो मैंने नीचे भी अपनी तरफ से कुछ लिखा है ।  विश्वप्रसिद्धफैशन_डिजाइनर, ब्लॉगर और लेखक "किर्ज़िदा रोड्रिग्ज" द्वारा लिखा गया एक नोट कैंसर से मरने से पहले।  ---  1. दुनिया की सबसे महंगी ब्रांड कार मेरे गैरेज में पड़ी है।  लेकिन मुझे व्हीलचेयर में बैठना होगा।  ।  2. मेरा घर हर तरह के डिजाइन के कपड़े, जूते, महंगी चीजों से भरा है।  लेकिन मेरा शरीर अस्पताल द्वारा प्रदान की गई एक छोटी सी चादर में ढका हुआ है।  ।  3. बैंक का पैसा मेरा पैसा है।  लेकिन वह पैसा अब मेरे किसी काम का नहीं है।  ।  4. मेरा घर एक महल की तरह है लेकिन मैं अस्पताल में एक जुड़वां आकार के बिस्तर पर लेटी हूं।  ।  5. मैं एक फाइव स्टार होटल से दूसरे फाइव स्टार होटल में जाती थी ।  लेकिन अब मैं अपना समय अस्पताल में एक प्रयोगशाला से दूसरे में जाने में लगा रही हूं।  ।  6. मैंने सैकड़ों लोगों को ऑटोग्राफ दिया है - और आज डॉक्टर का प्रिस्क्रिप्शन मेरा ऑटोग्राफ है।  ।  6. मेरे बालों को सजाने के लिए मेरे पास सात ब्यूटीशियन थे - आज मेरे सिर पर एक भी बाल नहीं है।  ।  6. एक निजी जेट में,

एक पुरानी कथा जो आज भी बिल्कुल प्रसांगिक है

 एक पुरानी कथा जो आज भी बिल्कुल प्रसांगिक है  एक राजा को राज करते काफी समय हो गया था। बाल भी सफ़ेद होने लगे थे। एक दिन उसने अपने दरबार में उत्सव रखा और अपने मित्र देश के राजाओं को भी सादर आमन्त्रित किया व अपने गुरुदेव को भी बुलाया। उत्सव को रोचक बनाने के लिए राज्य की सुप्रसिद्ध नर्तकी को भी बुलाया गया। राजा ने कुछ स्वर्ण मुद्रायें अपने गुरु जी को भी दी, ताकि नर्तकी के अच्छे गीत व नृत्य पर वे भी उसे पुरस्कृत कर सकें। सारी रात नृत्य चलता रहा। ब्रह्म मुहूर्त की बेला आई, नर्तकी ने देखा कि मेरा तबले वाला ऊँघ रहा है और तबले वाले को सावधान करना ज़रूरी है, वरना राजा का क्या भरोसा दंड दे दे। तो उसको जगाने के लिए नर्तकी ने एक दोहा पढ़ा - ...✍ "घणी गई थोड़ी रही,  या में पल पल जाय।  एक पलक के कारणे,  युं ना कलंक लगाय।" ...✍ अब इस दोहे का अलग-अलग व्यक्तियों ने अपने अनुरुप अर्थ निकाला।  तबले वाला सतर्क होकर बजाने लगा।  ...✍ जब यह दोहा *गुरु जी ने* सुना, तो गुरुजी ने सारी मोहरें उस नर्तकी को अर्पण कर दी। ...✍ दोहा सुनते ही *राजकुमारी ने  भी अपना *नौलखा हार नर्तकी को भेंट कर दिया। ...✍ दोहा

आत्मविश्वास

  आत्मविश्वास                 इस सकल सृष्टि में करोड़ों  योनियों का विवरण मिलता है । जिसमें सर्वश्रेष्ठ मानव योनि कही गई है । परमपिता परमात्मा ने  मनुष्य शरीर देकर हमारे ऊपर जो उपकार किया है इसकी तुलना नहीं की जा सकती है। मानव जीवन पाकर के यदि मनुष्य के अंदर आत्मविश्वास न हो तो यह जीवन व्यर्थ ही समझना चाहिए।  क्योंकि मानव जीवन तभी सार्थक माना जा सकता है जब जीवन के प्रत्येक क्षण को आत्मविश्वास के साथ निश्चिंतता, निर्द्वंदता एवं निर्भीकता के साथ व्यतीत किया जाय। जहां पर मनुष्य डरते हुए आशंकाओं से ग्रस्त रहते हुए जीवन व्यतीत करता है उसे दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है।       ऐसे दुर्लभ मानव जीवन को पा करके यदि मात्र चिंता करते हुए या आशंकित रहते हुए यह जीवन व्यतीत किया जाए तो यह दुर्लभ मानव जीवन नहीं बल्कि एक शाप ही कहा जा सकता है।  यह मानव जीवन सौभाग्य में तभी परिवर्तित हो सकता है जब मनुष्य के अंदर आत्मविश्वास हो।  आत्मविश्वास उसी को हो सकता है जिसको ईश्वर के ऊपर पूरा विश्वास है। जिस प्रकार कोई अधिकारी अपनी सुरक्षा में लगे हुई जवानों के सुरक्षाचक्र में स्वयं को सुरक्षित महसूस करता है,  उसी प

यदि परोपकार करने की आपकी इच्छा हो

  23.9.2020        यदि परोपकार करने की आपकी इच्छा हो, तो परोपकार करने से पहले स्वयं अपनी योग्यता बनाएं, और फिर स्वयं परोपकार करें। दूसरे योग्य व्यक्तियों को परोपकार करने का आदेश/उपदेश न देवें। यह असभ्यता है।         बहुत से लोगों में पूर्व जन्मों के अच्छे संस्कार होते हैं। उन संस्कारों के कारण, उनमें सेवा परोपकार की भावना उत्पन्न होती है। यह अच्छी बात है। परंतु उन भावनाओं पर वे भावुक लोग नियंत्रण नहीं रख पाते। और यह चाहते हैं, कि जल्दी से जल्दी इस संसार का सुधार हो जाए। फटाफट लोग सुधर जाएं। अंधविश्वास पाखंड अन्याय शोषण चोरी डकैती लूट मार अत्याचार स्मगलिंग आदि सब बुरे काम जल्दी से बंद हो जाएं।          परंतु केवल ऐसी भावनाएं रखने से या ऐसी इच्छाएँ रखने से ये सब बुरे काम बंद नहीं होते।  इसके लिए व्यक्ति को बहुत  पुरुषार्थ करना पड़ता है। बहुत सी कलाएं सीखनी पड़ती हैं। बहुत से शास्त्रों का अध्ययन करना पड़ता है। बहुत सी विद्वता प्राप्त करनी पड़ती है। बहुत सा तर्क वितर्क भी सीखना पड़ता है। ऊंचे पद और अधिकार प्राप्त करने पड़ते हैं। तब जाकर कुछ परिणाम आता है। इतना सब करने में बहुत समय और परिश्

धैर्य का फल मीठा होता है

  पुरानी कहावत है, "धैर्य का फल मीठा होता है।" आज भी इस कहावत की उतनी ही आवश्यकता है, जितनी पहले थी।        आपने देखा होगा कुछ लोग बड़े धैर्यशाली होते हैं। और कुछ लोग बड़े उतावले या जल्दबाज होते हैं। वे हर काम में जल्दी करते हैं। और अनेक बार ऐसा भी देखा जाता है कि वे जितनी अधिक जल्दी करते हैं, उतनी ही उनसे गलतियां अधिक होती हैं। गलतियां अधिक होने से उनके काम उतनी ही देर से होते हैं और बिगड़ते जाते हैं। ऐसी स्थिति में उन्हें क्रोध आता है। क्योंकि वे गलतियां उन्होंने स्वयं की हैं, अपनी जल्दबाजी के कारण ही उनका काम विलंब से हुआ, इसलिए वे स्वयं पर  झल्लाने लगते हैं। स्वयं पर ही गुस्सा करते हैं। ऐसा करना उचित नहीं है।          इन सारी गलतियों से और झल्लाहट से यदि व्यक्ति चाहे तो बच सकता है। थोड़ा धैर्य को धारण करना होगा। जल्दबाजी को कम करना होगा। सुबह उठते ही सबसे पहला संकल्प यही करें, कि "मैं सब काम धैर्यपूर्वक करूंगा, किसी भी काम में जल्दबाजी नहीं करूंगा." प्रतिदिन इस प्रकार से संकल्प करने से आपके मन पर धैर्य से काम करने का संस्कार पड़ेगा। धीरे-धीरे यह संस्कार बलवान होत

अद्वैतवाद समीक्षा

  अद्वैतवाद समीक्षा परमपिता परमेश्वर को नमन करते हुए सभी आर्य विद्वानों को नमस्ते जी। हमारे प्राचीन आर्यवर्त में जब भी सनातन धर्म पर या राष्ट्र की प्रभुसत्ता पर संकट आया है उस काल में अवश्य ही ईश्वर प्रेरणा से किसी न किसी महापुरूष का जन्म अवश्य हुआ है। योगिराज शिव,श्री राम,श्रृंगी ऋषि, महर्षि व्यास ,श्री कृष्ण,आदि शंकराचार्य,वीर शिवाजी,महाराणा प्रताप,ऋषि दयानंद सरस्वती आदि अनेक नाम है ऐसे महापुरुषों के जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन धर्म व देश हेतु समर्पित कर दिया। इसी श्रंखला में आदि गुरु शंकराचार्य जी एक महान योगी व विद्वान हुए हैं। आज से लगभग 2500 वर्ष पूर्व इनका जन्म हुआ था और उस काल में देश कुरीतियों में जकड़ा था बौद्ध,जैन व वाममार्ग अपनी जड़ें देश मे फैला रहे थे वैदिक धर्म का लोप हो रहा था। उस काल मे शंकराचार्य जी ने देश भर में घूम घूम कर शास्त्रार्थ किया व देश से बौद्ध धर्म का नाश किया वैदिक धर्म का प्रचार किया। उनका विस्तृत जीवन चरित्र की चर्चा यहां नही कर रहा हूँ। आदि शंकराचार्य ने शास्त्रार्थ हेतु वेदो के आधार पर अद्वेतवाद मत बनाया था उनका वह मत अकाट्य रहा। किन्तु भ्रांति उत्पन्न

जब तक लोग आपको सम्मान दे रहे हैं

  जब तक लोग आपको सम्मान दे रहे हैं,  तब तक समझ लीजिए, उनको आप की आवश्यकता है।       इस संसार में प्रत्येक आत्मा स्वार्थी है। कोई कम स्वार्थी है, तो कोई अधिक। कोई न्याय पूर्वक अपना स्वार्थ सिद्ध करता है, तो  कोई स्वार्थ सिद्धि करते-करते सीमा को पार कर जाता है, और अन्याय पूर्वक भी दूसरों का शोषण अत्याचार आदि करके अपने स्वार्थ की सिद्धि करता है। किसी का लौकिक स्वार्थ होता है, और किसी का आध्यात्मिक।          लौकिक स्वार्थ भी यदि न्यायपूर्वक पूरा किया जाए, तो ठीक है, चलेगा। यदि अन्याय पूर्वक आप दूसरों का शोषण करके उन पर अत्याचार करके उन्हें परेशान करके उन्हें दुख देकर यदि अपना स्वार्थ पूरा करते हैं, तो यह अत्यंत अनुचित है। यह पाप अथवा अपराध की कोटि में आता है। इसलिए आप अपना स्वार्थ भले ही सिद्ध करें, परंतु न्याय की सीमा में रहकर। दूसरों पर अन्याय कभी न करें। न्यायपूर्वक स्वार्थ पूरा करने से, ईश्वर आप से प्रसन्न रहेगा और आपको भविष्य में सुख भी देगा।         जो लोग अन्याय करके अपने स्वार्थ पूरे करते हैं, उनसे ईश्वर अप्रसन्न होगा। क्योंकि अन्याय करना ईश्वर के संविधान के विरुद्ध है। तब ईश्वर, उ

निजीकरण क्यो

 निजीकरण क्यो  *देश के सबसे बड़े अस्पताल का नाम मेदांता नहीं एम्स है जो सरकारी है,सबसे अच्छे इंजीनियरिंग कॉलेज का नाम IIT है जो सरकारी हैं, सबसे अच्छे मैनेजमेंट कॉलेज का नाम IIM है जो सरकारी हैं, देश के सबसे अच्छे विद्यालय केन्द्रीय विद्यालय हैं जो सरकारी हैं ,बीमा उद्योग में विश्व की सबसे बड़ी और सबसे अच्छी कम्पनी भारतीय जीवन बीमा निगम है जो सरकारी है,देश के एक करोड़ लोग अभी या किसी भी वक़्त अपने गंतव्य तक पहुँचने के लिए सरकारी रेल में बैठते हैं..., नासा को टक्कर देने वाला ISRO अम्बानी नहीं सरकार के लोग चलाते हैं.. सरकारी संस्थाएँ फ़ालतू में बदनाम हैं,अगर इन सारी चीज़ों को प्राइवेट हाथों में सौंप दिया जाए तो ये सिर्फ़ लूट-खसोट का अड्डा बन जाएँगी। निजीकरण एक व्यवस्था नहीं बल्कि नव-रियासतीकरण है। अगर हर काम में लाभ की ही सियासत होगी तो आम जनता का क्या होगा?? कुछ दिन बाद नव-रियासतीकरण वाले लोग कहेगें कि देश के सरकारी स्कूलों, कालेजों और अस्पतालों से कोई लाभ नहीं है।अत: इनको भी निजी हाथों में दे दिया जाय तो आम जनता का क्या होगा?? अगर देश की आम जनता प्राइवेट स्कूलों और हास्पिटलों के लूटतंत

वेद मंत्र

 वेद मंत्र तं नो दात मरुतो वाजिनं रथ आपानं ब्रह्म चितयद्दिवेदिवे। इषं स्तोतृभ्यो वृजनेषु कारवे सनिं मेधामरिष्टं दुष्टरं सहः॥ ऋग्वेद २-३४-७॥ हे मारुतों (विद्वानों) ! हमारे देश के रथ को शक्ति और गति प्रदान करो। सत्य ज्ञान से हम सभी दिन-प्रतिदिन प्रबुद्ध हो। जो सकल विद्याओं के प्रयोजनवेता अन्य मनुष्यों के कल्याण के कार्य में लगे हुए हैं, उन्हें अन्न और समृद्धि की कमी नहीं होती।🙏🌹 O Marut (scholars) !  Provide strength and speed to the chariot of our country.  May we all be enlightened day by day with true knowledge. Experts who are engaged in the work of welfare of  human beings in various fields, do not lack food and prosperity. smelan, marriage buero for all hindu cast, love marigge , intercast marriage , arranged marigge   arayasamaj sanchar nagar 9977987777

सत्य ही है परमपुरुष तक जाने का मार्ग

 सत्य ही है परमपुरुष तक जाने का मार्ग       आध्यात्मिक जीवन के परम लक्ष्य को पाने के तीन मार्ग बताए गए हैं। ज्ञान मार्ग, कर्म मार्ग व भक्ति मार्ग। ज्ञान का अर्थ किताबी ज्ञान, वस्तु का ज्ञान नहीं है, बल्कि आत्मज्ञान है। इस तक सत्य की सहायता से ही पहुंचा जा सकता है। कर्म का अर्थ है तीनों गुणों के प्रभाव से मुक्त, किसी भी प्रकार के बंधन से मुक्त कर्म। और भक्ति का अर्थ है ईश्वरीय सत्ता से जुड़ाव। आध्यात्मिक प्रगति के शीर्ष पर जो मनुष्य प्रतिष्ठित होना चाहते हैं, उनके सामने तीन मार्ग खुले हुए हैं- ज्ञान, कर्म और भक्ति। अब हमलोग देखें कि मनुष्य किस प्रकार से इन तीनों उपायों को काम में लाएगा। एकमात्र परमपुरुष ही मन की सीमा के बंधन के बाहर हैं। इसलिए ज्ञान की पूर्ण प्राप्ति के लिए परमपुरुष की सहायता लेनी ही होगी। आत्म ज्ञान ही एकमात्र ज्ञान है।  बाकी ज्ञान, ज्ञान ही नहीं है। ज्ञान की झलक हैं। छाया की छाया हैं। मानसिक आध्यात्मिक अग्रगति का लक्ष्य हुआ सत्यम् और वह है ‘ज्ञानम् अनन्तम्।’ ‘सत्’ शब्द से सत्य शब्द आया है। अर्थात् जो है और रहेगा, उसके स्वीकृत रूप को कहते हैं सत्य। यह सीमा के भीतर भी का

सत्संग स्वर्ग और कुसंग नरक है

 ओ३म् “सत्संग स्वर्ग और कुसंग नरक है” =========== किसी भी विषय के प्रायः दो पहलु होते हैं, एक सत्य व दूसरा असत्य। सत्य व असत्य का प्रयोग ईश्वर व जीवात्मा से लेकर सृष्टि के सभी पदार्थों व व्यवहारों में सर्वत्र किया जाता है। ईश्वर निराकार है, यह सत्य है और निराकार नहीं है अथवा साकार है, यह असत्य है। निराकार अर्थात् आकार रहित होने से उसका चित्र व मूर्ति नहीं बन सकती। जिस प्रकार आकाश व वायु की मूर्ति व चित्र नहीं बनाये जाते उसी प्रकार निराकार होने से ईश्वर का चित्र व मूर्ति भी नहीं बन सकती अर्थात् ऐसा होना असम्भव है। यदि कोई मूर्तिकार व तथाकथित विद्वान किसी मूर्ति को बनाकर कहे कि यह ईश्वर की मूर्ति है तो वह असत्य होगा। बुद्धिमान व ज्ञानी लोग इस बात को समझते हैं परन्तु अज्ञानी व भोले लोग इसको न समझकर अन्धपरम्पराओं जो विगत दो या ढाई हजार पहले आरम्भ हुईं, उसी को परम्परा मानकर उसका अनुगमन करते हैं। सत्य को जानना व उसे जीवन में धारण करना ही सत्संग है। असत्य के लिए अधिक पुरुषार्थ व तप करने की आवश्यकता नहीं होती। असत्य अज्ञान की वह अवस्था होती है जिसके लिए मनुष्य को कुछ करना ही नहीं होता। सत्य के

"शुद्धि" - ऋषि दयानंद की दृष्टि में •

 "शुद्धि" - ऋषि दयानंद की दृष्टि में • -------------------------- - डॉ. रामप्रकाश ऋषि दयानंद से पूर्व हिंदू मतावलंबी ईसाई या मुसलमान हो सकता था पर ईसाई या मुसलमान को वैदिक धर्म ग्रहण करने की अनुमति नहीं थी। यह प्रश्न केवल मज़हब परिवर्तन का नहीं है अपितु वैचारिक स्वतन्त्रता का है। विचारशील व्यक्ति को बिना किसी भय और प्रलोभन के अपनी पूजा-पद्धति निश्चित करने का अधिकार क्यों न हो? उसे अपना आराध्यदेव, धार्मिक ग्रन्थ, रीति रिवाज तय करने के मानवीय अधिकार से वंचित क्यों रखा जाए? ऋषि दयानन्द व्यक्ति के इस अधिकार को स्वीकार करते हैं। किसी अन्य मत से वैदिक धर्म में प्रवेश की प्रक्रिया के सन्दर्भ में शुद्धि शब्द का प्रयोग किया जाता है। परन्तु यह मानना कि हिन्दू कहलाने वाला व्यक्ति चाहे कितना भी पतित हो, वह शुद्ध और अन्य मतावलम्बी चाहे कितना ही सज्जन हो, अशुद्ध है; ऋषि दयानन्द की धारणा के विपरीत है। दयानन्द विचार, कर्म, आचार तथा खानपान की शुद्धि पर बल देते हैं। smelan, marriage buero for all hindu cast, love marigge , intercast marriage , arranged marigge arayasamaj sanchar nagar 99779877

आज का वेदमंत्र

 आज का वेदमंत्र, अनुवाद महात्मा ज्ञानेन्द्र अवाना जी द्वारा, प्रचारित आर्य जितेन्द्र भाटिया द्वारा, ऑडियो रिकॉर्डिंग सुकांत आर्य द्वारा🙏🌸 अस्य मे द्यावापृथिवी ऋतायतो भूतमवित्री वचसः सिषासतः। ययोरायुः प्रतरं ते इदं पुर उपस्तुते वसूयुर्वां महो दधे॥ ऋग्वेद २-३२-१॥🙏🌸 मैं द्यावापृथ्वी को श्रेष्ठ मानता हूं। मैं उनसे प्रार्थना करता हूं कि मेरी धर्म युक्त वाणी को संरक्षण प्रदान करें। मेरे शरीर,मन और आत्मा को उत्तम भोजन दें। मुझे सत्य धन प्रदान करें।🙏🌸 I praise the earth and heaven. l adore and pray them both to protect my truthful voice. Give noble food to my body, mind and soul.  Grant me true wealth.  smelan, marriage buero for all hindu cast, love marigge , intercast marriage , arranged marigge arayasamaj sanchar nagar 9977987777

सृष्टि, प्राणी-जगत, भाषा एवं ज्ञान की उत्पत्ति किससे हुई

 ओ३म् “सृष्टि, प्राणी-जगत, भाषा एवं ज्ञान की उत्पत्ति किससे हुई?” =========== हम संसार में रहते हैं और सृष्टि वा संसार को अपनी आंखों से निहारते हैं। सृष्टि का अस्तित्व प्रत्यक्ष एवं प्रामणिक है। हमारी यह सृष्टि कोई अनुत्पन्न, अनादि व नित्य रचना नहीं है। इसका अतीत में आविर्भाव व उत्पत्ति हुई है। इसके अनेक प्रमाण है। यह सर्वसम्मत सिद्धान्त है कि सृष्टि सहस्रों व करोड़ों वर्ष पूर्व उत्पन्न हुई थी। सृष्टि में हम वनस्पति, अन्न एवं प्राणि जगत को भी देखते हैं। इनका भी आरम्भ सृष्टि उत्पन्न होने के बाद हुआ। सृष्टि में मनुष्य भी एक प्रमुख प्राणी है। यह पृथिवी में अनेक स्थानों पर रहते हैं और ज्ञान तथा भाषा से युक्त हैं। सृष्टि के उत्पन्न होने के बाद ही जल, वायु, अग्नि आदि पदार्थों की उत्पत्ति हुई और इसके बाद अन्न, वनस्पतियां तथा प्राणी जगत की उत्पत्ति हुई। सृष्टि में मनुष्यों के उत्पन्न होने पर उनके जीवन निर्वाह हेतु भाषा एवं ज्ञान की आवश्यकता आरम्भ से ही थी। यह भाषा व ज्ञान भी मनुष्य अपने साथ लेकर उत्पन्न नहीं हुए थे अपितु यह उनकी उत्पत्ति के बाद ही उत्पन्न हुआ। यह सब पदार्थ किससे उत्पन्न हुए, यह