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जवानों! जवानी यूं ही न गंवाना

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जवानों! जवानी यूं ही न गंवाना जवानों! जवानी यूं ही न गंवाना [ब्रह्मचर्य का व्रत धारण करने से मनुष्य ऐश्वर्यशाली बनता है। आज नौजवान ब्रह्मचर्य के व्रत को भूलकर भोगवाद की ओर भाग रहे हैं। ब्रह्मचर्य के अभाव में मनुष्य शारीरिक, मानसिक और आत्मिक उन्नति से वंचित हो रहा है। आर्यसमाज के सुप्रसिद्ध विद्वान् स्व० पं० बुद्धदेव विद्यालंकार जी (स्वामी समर्पणानन्द जी) का यह लेख 'आर्य गजट' हिन्दी (मासिक) के मार्च १९७४ के अंक में प्रकाशित हुआ था। ब्रह्मचर्य की शक्ति को जानने के लिए नौजवानों यह लेख अवश्य पढ़ना चाहिए।  मूर्ख और बुद्धिमान में बड़ा अन्तर होता है। मूर्ख अच्छी बात को भी बुरा बना लेता है और बुद्धिमान बुरी चीज को भी अच्छी बना लेता है। काजल का अगर सही प्रयोग किया जाये तो आंखों में डाला हुआ सुन्दरता को चार चांद लगा देता है मगर गलत ढंग से प्रयोग किया हुआ वही काजल इधर-उधर लग जाये तो अच्छी सूरत को भी भद्दा बना देता है। एक बुद्धिमान पुरुष ने आग पर चढ़ी हुई देगची को देखा, उसने अनुभव किया कि वो पानी जो पहले चुपचाप था भाप बनकर कितना जबरदस्त बन गया है जिसने ढक्कन को धकेल कर फे

मनुष्य जनम अनमोल रे भजन 

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मनुष्य जनम अनमोल रे भजन 

धैर्य के धनी स्वामी दयानन्द

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 धैर्य के धनी स्वामी दयानन्द  धैर्य के धनी स्वामी दयानन्द  लाहौर से स्वामी दयानन्द जी महाराज अमृतसर पधारे और सरदार भगवानसिंह के मकान में ठहरे। पण्डितों ने इस बार विरोध किया अपने चेलों सहित शास्त्रार्थ करने के लिए आए और अकड़ कर स्वामी जी के सम्मुख बैठ गये शास्त्रार्थ तो उन्हें क्या करना था, चेलों ने ईट पत्थर फेंकने आरम्भ कर दिये। सभा--स्थान को धूलि-वर्षा से धूसरित बना दिया। महाराज के इस अपमान को देखकर भक्तजन कपित हो उठे। उन्हें शान्त करते हुए स्वामी जी ने कहा- 'मत्त-मदिरा से उन्मत्त जनों पर कोप नहीं करना चाहिए। हमारा काम वैध का है। उन्मत्त मनुष्य को वैद्य औषध देता है निश्चय जानिये आज जो लोग मुझ पर इंट, पत्थर और धूल बरसाते हैं वही लोग पछता कर कभी पुष्प-वर्षा करने लग जायेगे।  स्वामी जी सच में अद्भुत धैर्य के धनी थे। इस तथ्य पर उनके जीवन से सम्बन्धित एक और घटना अच्छा प्रकाश डालती कार्तिक अमावस्या (३० अक्टूबर) का दिन था। डा० लक्ष्मणदास ने महाराज के जीवन की सब आशाएँ छोड़ने के साथ-साथ भक्तजनों से अनुरोध किया कि किसी अन्य सुयोग्य डाक्टर को भी महाराज को दिखाने के लिए बुलवाया

मातृभूमि प्रेम

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मातृभूमि प्रेम April 27, 2020 • आचार्य भानु प्रताप वेदालंकार • कविता-काव्य -पद्य-गजल-छंद-व्यंग्य-मुक्तक-साहित्य                                                                      मातृभूमि प्रेम जापान का एक चित्रकार भगवान बुद्ध के जीवन के अनूठे प्रसंगों को अपनी तूलिका से चित्रित करने के उद्देश्य सारनाथ आया हुआ था। वह बुद्ध के प्रसंगों को दीवारों पर अंकित करने के कार्य में दिन भर मनोयोग से जुटा रहता रात के समय  बटलोई में कुछ चावल, दाल और आलू डालकर अपने लिए खिचड़ी बना लेता एक दिन एक बौद्ध ने उसे एक डिब्बे में से चावल के कुछ दाने निकालकर चावलों में मिलाते हुए देखा । उसने पूछा, 'क्या चावल इन दानों में कोई विशेषता है, जो तुमने डिब्बे में निकालकर मिलाए चित्रकार ने उत्तर दिया, 'बंधु चावल के ये दाने मेरे देश जापान में उपजे हैं। मैं इन्हें मातृभूमि का पवित्र प्रसाद मानकर प्रतिदिन अपने भोजन में मिला लेता हूं इस माध्यम से मैं अपनी मातृभूमि से जुड़ा महसूस करता हूं।  बौद्ध भिक्षु जापानी चित्रकार का मातृभूमि प्रेम देखकर हतप्रभ रह गया sarvjatiy parichay

यम-नियम

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यम-नियम April 19, 2020 • स्वामी जगदीश्वरानन्द सरस्वती  • Vaidik sidhant वैदिक सिन्द्धांत साभार -धर्म शिक्षा  लेखक -स्वामी जगदीश्वरानन्द सरस्वती  यम-नियम - परमात्मा की प्राप्ति का साधन है  महर्षि पतञ्जलि ने योगदर्शन में अष्टाङ्गयोग (योग के आत अडों) का वर्णन किया है। उनमें प्रारम्भ के दो अङ्ग यम और नियम हैं। ये दोनों अङ्ग दिव्य मानव जीवन आवश्यक हैं,  अतः उनका वर्णन यहाँ दिया जा रहा हे  यम पाँच हैं  १. अहिंसा -मन, वचन, कर्म से किसी प्राणी के प्रति वैर की भावना न रखना २.  सत्य-मन,  वचन, कर्म से सत्य का पालन करना। ३.  अस्तेय -चोरी न करना। बिना स्वामी आज्ञा के किसी पदार्थ को न उठाना। ४ . ब्रह्मचर्य- ईश्वर में विचरण करना, वेदअध्ययन करना, ज्ञानोपार्जन और वीर्य की रक्षा करना ५ . अपरिग्रह -अभिमानी न होना और पदार्थों का आवश्यकता से अधिक संग्रह न करना। नियम भी पाँच हैं १.  शौच -बाहर और भीतर की पवित्रता रखना। २.  सन्तोष -अपनी शक्ति के अनुसार प्रबल पुरुषार्थ करना और उस पुरुषार्थ से जो फल मिले उसमें सन्तुष्ट रहना। ३.  तपः -गर्मी-सर्दी, भूख-प्यास, हानि-लाभ, मा

उपदेश_शिक्षा किसे देवें ,चाणक्य नीति

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उपदेश_शिक्षा किसे देवें ,चाणक्य नीति साभार -चाणक्य नीति दर्पण  भाष्यकार -स्वामी जगदीश्वरानन्द सरस्वती          उपदेश_शिक्षा  किसे देवें। , चाणक्य_नीति, chankya_niti , vaidik_rashtra you tube chhanel subscribe kare you tube link = https://youtu.be/FtjU1gTC5i0     तदहं सम्प्रवक्ष्यामि लोकानां हितकाम्यया। येन विज्ञानमात्रेण सर्वज्ञत्वं प्रपद्यते ॥३॥ शब्दार्थ-अहम मैं लोकानाम् मानवमात्र की हितकाम्यया कल्याण की कामना से, लोगों के भले के लिए तत उस 'राजनीतिसमुच्चयः' का  सम्प्रवक्ष्यामि सम्मक, ठीक-ठोक प्रवचन करूंगा, येन जिसके ,विज्ञानमात्रण ज्ञानमात्र से मनुष्य सर्वज्ञत्वम् सर्वज्ञता को रखते प्राप्त हो जाता है।  भावार्थ   -मैं लोगों के मङ्गल की इच्छा से उन राजनीतिसमुच्चर का वर्णन करूंगा, जिसको जानकर मनुष्य सर्वज्ञ हो जाता है विमर्श-सर्वज्ञ का अर्थ भूत, वर्तमान और भविष्यत् को जाता हो जाना अथवा सारे लोक-लोकान्तरों का ज्ञान प्राप्त हो जाना या  सब-कुछ जानने में समर्थ हो जाना अभिप्रेत नहीं है सर्वज्ञ का अर्थ केवल इतना है कि उत्ते धर्म,

धर्म का स्वरूप

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धर्म का स्वरूप साभार -धर्म -शिक्षा  लेखक -स्वामी  जगदीश्वरानन्द सरस्वती  धर्म का स्वरूप धर्म क्या है जिस विषय में सबकी एक सम्मति हो वह धर्म और उससे विपरीत अधर्म है। जैसे विद्या पढने, ब्रह्मचर्य पालने, सत्यभाषण करने, युवावस्था में विवाह करने, सत्संग-पुरुषार्थ-सत्य-व्यवहार करने में धर्म और अविद्या-ग्रहण, ब्रह्मचर्य का पालन न करने, व्यभिचार करने, कुसङ्ग, आलस्य, असत्य-व्यवहार, छल-कपट हिंसा, पर-हानि करने आदि में अधर्म है। -सत्यार्थप्रकाश के आधार पर   महर्षि मनु ने धर्म के जो लक्षण लिखे हैं वे  सार्वभौम हैं। यथाधृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः। धीविद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्॥ -मनु०६।९२ धृतिः -सदा धैर्य रखना। तनिक-तनिक-सी बातों में अधीर न होना। क्षमा-निन्दा-स्तुति, मान-अपमान, हानि-लाभ सहनशील रहना। .  दम :-चञ्चल मन को वश में करके उसे अधर्म की ओर जाने से रोकना अस्तेयम्- चोरी-त्याग। बिना स्वामी की आज्ञा - के किसी पदार्थ के लेने की इच्छा भी न करना। _ शौचम्- बाहर और भीतर की पवित्रतावस्त्र-प्रक्षालन आदि से बाहर की और राग द्वेष त्याग से अन्दर की

पञ्चमहायज्ञ

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पञ्चमहायज्ञ April 19, 2020 • स्वामी जगदीश्वरानन्द सरस्वती  • Vaidik sidhant वैदिक सिन्द्धांत                                   साभार -धर्म शिक्षा  लेखक -स्वामी जगदीश्वरानन्द सरस्वती        VAIDIK RASHTRA वैदिक राष्ट्र  you tube channal subscribe kare सदाचार_क्या  है  https://youtu.be/3XBgUmYgY7M पञ्चमहायज्ञ परिवारों में पञ्चमहायज्ञ अवश्य होने चाहिएँ प्रत्येक घर में पाँच स्थान ऐसे हैं,  कछ हिंसा जाने-अनजाने हो ही जाती है। वे स्थान _चल्हा, चक्की, झाड़, ओखली और पानी का घडा। जीवन में कुछ पुण्य का सञ्चय भी करना चाहिए। उस पुण्य सञ्चय के लिए पञ्चमहायज्ञ हैं आपत्ति और विपत्ति में भी इन्हें त्यागना नहीं चाहिए इन्हीं पञ्चमहायज्ञों से स्वर्ग सुख-विशेष और मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। वे पाँच महायज्ञ निम्न हैं १.  ब्रह्मयज्ञ -परमपिता परमात्मा की उपासनाप्रतिदिन सन्ध्या करना तथा वेद का स्वाध्याय करना ब्रह्मयज्ञ कहलाता है। ।  २. देवयज्ञ - प्रतिदिन अग्निहोत्र करना। मनुष्य अपने मल-मूत्र और श्वास द्वारा वायु को दूषित करता हैअपने सुख के लिए पशु-पालन करता है, उन

सदाचार

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सदाचार                             साभार -धर्म शिक्षा  लेखक -स्वामी जगदीश्वरानन्द सरस्वती   सदाचार_क्या  है  VAIDIK RASHTRA वैदिक राष्ट्र  you tube channel link- सदाचार सत्परुषों का आचार सदाचार कहलाता है। जीवन में सदाचार का पालन करते हैं, वे शिष्ट और सभ्य कहलाते हैं, जो सदाचार का पालन नहीं करते अशिष्ट और असभ्य कहलाते हैं। यहाँ पालन करने योग्य सदाचार के कुछ नियम लिखे जा रहे हैं १. प्रातः सूर्योदय से पूर्व उठना चाहिए व्यक्ति सूर्योदय से पूर्व उठते हैं, वे स्वस्थ, मेधावी धन-सम्पन्न बनते हैं २. उठते ही प्रभु का गुणगान करना चाहिए प्रभु से जीवन में सब प्रकार की समृद्धि, उत्थान कल्याण की प्रार्थना करनी चाहिए।  ३. प्रात: अथवा जब भी प्रथम मिलें तभी मातापिता आदि वृद्धजनों का अभिवादन करना चाहिएचरण-स्पर्श पूर्वक उन्हें नमन करना चाहिए। ऐसा करने से आयु, विद्या, यश और बल की प्राप्ति होती हे  ४. नित्यप्रति व्यायाम करना स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त आवश्यक है। व्यायाम से शरीर नीरोग, स्वस्थ एवं हृष्ट-पुष्ट बनता है। आसन, प्राणायाम, भ्रमणदण्ड-बैठक-किसी-न-किसी प्रकार का व्यायाम अवश्

क्या हनुमान बंदर थे

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क्या हनुमान बंदर थे                                                         नमस्ते जी,वेदज्ञ महावीर हनुमानजी वानर थे ? विश्लेषणात्मक विचार अवश्य सुनिए, आपके विचार यूट्यूब के कमेंट में भेजिए,। वैदिक राष्ट्र युट्यूब चैनल अवश्य सब्क्राइब किजिए, शेयर किजिए, बेल घंटी का बटन अवश्य दबाईये। आचार्य भानुप्रताप वेदालंकार आर्यसमाज संचार नगर इन्दौर मध्यप्रदेश 9977987777 9977957777 धन्यवाद https://youtu.be/wRbxrGDOhZc       साभार -शुद्ध  हनुमच्चरित  लेखक -आचार्य प्रेम भिक्षुः                                                                    वीर-व्रती हनुमान्, बाली, सुग्रीव और अंगद आदि मनुष्य थे, बन्दर इस विषय में प्रथम वाल्मीकि रामायण के प्रमाण देखें (१) हनुमान की बातचीत सुन राम, लक्ष्मण को कहते हैं कि यह ऋग्वेद, यजुर्वेद और साम को अच्छी तरह जानता है तथा इसने अनेक बार व्याकरण पढ़ा है-किष्कि० सर्ग ३।२८ (२) राम-सुग्रीव की मैत्री के समय हनुमान् ने याज्ञिक ब्राह्मणों अरणियों से अग्नि को निकाल कर हवन कुण्ड में स्थापन किया-किष्किन्धा १४ (३) हनुमान् माता अञ्जना और पिता केसर

महर्षि दयानंद जी और स्वामी विवेकानंद जी

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 महर्षि दयानंद जी और स्वामी विवेकानंद जी भावेश मेरजा आर्य समाज के कई विद्वानों ने अपने अपने ढंग से महर्षि दयानंद जी तथा स्वामी विवेकानंद जी का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत करती हुए पुस्तकें लिखीं हैं। डॉ. भवानीलाल भारतीय रचित "महर्षि दयानंद और स्वामी विवेकानंद" तथा स्वामी विद्यानंद सरस्वती की "गोस्पेल ऑफ स्वामी विवेकानंद" तथा "स्वामी विवेकानंद के विचार" आदि एतद् विषक पुस्तकें विशेष उल्लेखनीय हैं। आर्य समाज के लोग आज भी इन दोनों महापुरुषों के विचारों का तुलनात्मक अध्ययन करते हुए लेख लिखते रहते हैं और सोशल मीडिया पर भी इस सम्बन्ध में विचार सामग्री पढ़ने को मिलती है । स्वामी विवेकानंद जी और महर्षि दयानंद जी की जाने वाली यह तुलना कई अंशों में तथ्यात्मक भी होती है। महर्षि दयानंद जी वेदज्ञ थे और वैदिक शास्त्रों का उनका अध्ययन असाधारण था। विवेकानंद जी ऐसे प्रौढ़ विद्वान् नहीं थे। वे जीवन के अंत तक यही निश्चित नहीं कर सके कि वास्तविक वेदांत का स्वरूप क्या है। विवेकानंद जी ने रामकृष्ण मिशन की स्थापना कर एक प्रकार से अपने गुरु जी के नाम से एक नवीन

ईश्वर का वेदोक्त स्वरूप ●

● ईश्वर का वेदोक्त स्वरूप ● ● Vedic Conception of God ● स पर्यगाच्छुक्रमकायमव्रणमस्नाविर शुद्धमपापविद्धम्। कविर्मनीषि परिभूः स्वयम्भूर्याथातथ्यतोऽर्थान्व्यदधाच्छाश्वतीभ्यः समाभ्यः ॥ यजुर्वेद : ४०.८📚 व्याख्यान🛕 (सः) वह परमात्मा (पर्यगात्) सब में व्यापक है, आकाश के समान सब जगह में परिपूर्ण व्यापक है। (शुक्रम्) शीघ्रकारी है, सब जगत् का निर्माता है। (अकायम्) वह कभी शरीर (अवतार) धारण नहीं करता, क्योंकि वह अखण्ड, अनन्त और निर्विकार है। इससे देह धारण कभी नहीं करता। उससे अधिक कोई पदार्थ नहीं है। इसी से ईश्वर का शरीर धारण करना कभी नहीं बन सकता। (अव्रणम्) वह अखण्ड-एकरस, अच्छेद्य, अभेद्य, निष्कम्प और अचल है । इससे अंशांशिभाव भी उसमें नहीं है, क्योंकि उसमें छिद्र किसी प्रकार से नहीं हो सकता। (अस्नाविरम्) नाड़ी आदि का प्रतिबन्ध या बन्धन भी उसका नहीं हो सकता । अति सूक्ष्म होने से ईश्वर को कोई आवरण नहीं हो सकता। (शुद्धम्) वह परमात्मा सदैव निर्मल है । वह अविद्या, जन्म, मरण, हर्ष, शोक, क्षुधा तृषादि दोषोपाधियों से रहित है। (अपापविद्वम्) वह कभी पापाचरण, अन्याय नहीं करता, क्योंकि वह

जो सूक्त और मन्त्रों के ऋषि लिखे जाते हैं, उन्होंने ही वेद रचे हों ऐसा क्यों नहीं माना जाय?

प्र॰— जो सूक्त और मन्त्रों के ऋषि लिखे जाते हैं, उन्होंने ही वेद रचे हों ऐसा क्यों नहीं माना जाय?  उ॰— ऐसा मत कहो, क्योंकि ब्रह्मादि ने भी वेदों को पढ़ा है। सो श्वेताश्वतर आदि उपनिषदों में यह वचन है कि—‘जिसने ब्रह्मा को उत्पन्न किया और ब्रह्मादि को सृष्टि की आदि में अग्नि आदि के द्वारा वेदों का भी उपदेश किया है उसी परमेश्वर के शरण को हम लोग प्राप्त होते हैं।’ इसी प्रकार ऋषियों ने भी वेदों को पढ़ा है। क्योंकि जब मरीच्यादि ऋषि और व्यासादि मुनियों का जन्म भी नहीं हुआ था उस समय में भी ब्रह्मादि के समीप वेदों का वर्तमान था। इस में मनु के श्लोकों की भी साक्षी है कि—‘पूर्वोक्त अग्नि, वायु, रवि और अङ्गिरा से जब ब्रह्मा जी ने वेदों को पढ़ा था तो व्यासादि और हम लोगों की तो कथा क्या ही कहनी है।  वैसे ही सृष्टि के आरम्भ से आज पर्यन्त और ब्रह्मादि से लेके हम लोग पर्यन्त जिससे सब सत्यविद्याओं को सुनते आते हैं इससे वेदों का ‘श्रुति’ नाम पड़ा है। क्योंकि किसी देहधारी ने वेदों के बनाने वाले को साक्षात् कभी नहीं देखा, इस कारण से जाना गया कि वेद निराकार ईश्वर से ही उत्पन्न हुए हैं, और उनको सुनते सुनाते

"लाला लाजपतराय की शिमला में स्थापित प्रतिमा" एवं "आर्य स्वराज्य सभा" का इतिहास

"लाला लाजपतराय की शिमला में स्थापित प्रतिमा" एवं "आर्य स्वराज्य सभा" का इतिहास डॉ विवेक आर्य, प्रियांशु सेठ आप सभी शिमला रिज की सैर करने जाते है, तो आपको लाला लाजपतराय की प्रतिमा के दर्शन होते है। लाला जी की प्रतिमा के नीचे लिखे पट्ट पर आपको आर्य स्वराज्य सभा द्वारा स्थापित लिखा मिलता हैं। यह आर्य स्वराज्य सभा क्या थी? इसकी स्थापना किसने की थी? "आर्य स्वराज्य सभा" की स्थापना - क्यों और कार्य" 1947 से पहले लाहौर आर्यसमाज का गढ़ था। आर्यसमाज के अनेक मंदिर, DAV संस्थाएं, पंडित गुरुदत्त भवन, विरजानन्द आश्रम, दयानन्द ब्रह्म विद्यालय, हज़ारों कार्यकर्ता आदि लाहौर में थे। आर्यसमाज के अनेक कार्यकर्ताओं में एक थे पंडित रामगोपाल जी शास्त्री वैद्य। आप पहले डीएवी में शिक्षक, शोध विभाग आदि में कार्यरत थे। आपने भगत सिंह को कभी नेशनल कॉलेज में पढ़ाया भी था।  कुशल और सफल चिकित्सक होने के अतिरिक्त श्री पं० रामगोपालजी शास्त्री वैद्य एक आस्थाशील दृढ़ आर्यसमाजी, ऋषि दयानन्द के अटूट भक्त और रक्त की अन्तिम बूंद तक हिन्दुत्व के सजग प्रहरी तथा अडिग राष्ट्रसेवक थे। देश म

एक छोटा सा जीवन संदेश

 एक छोटा सा जीवन संदेश         इस भौतिक जीवन में   किसी की निंदा या बुराई करना        बड़ी मीठी वस्तु लगती है  उसकी चाहत भी कम नही होती है         साथ ही सच्चाई सत्यता       बड़ी कड़वी वस्तु लगती है यह जीवन में सबको पचती या यूं कहे       कि हज़म नही  होती है पर  जीवन में कुछ कह गये कुछ सह गये    और कुछ कहते कहते रह गये कि  मै सही तुम गलत के खेल में ना जाने जीवन के कितने सम्बंध रिश्ते ढह गये                   इसलिए जीवन में मन को बुराइयो से हटाकर      अच्छाईयों की ओर लेकर चले     तभी जीवन जीने का उद्देश्य होगा  साथ ही जन्म लेना भी सार्थक होगा       वैसे जन्म होगा जैसे संसार में        अन्य आत्माओ का होता है  खाना पीना झगड़ना एक दूसरे की  वस्तु को सडयंत्र रचकर छीन लेना आदि करते रहेगें पर ये जीना जीना  नही है ये अन्य जीव भी करते है arya samaj sanchar nager indore m.p. -9977987777/9977957777/9977967777 aryavivha.com /aryavivha app/inter cast marigge/

राम सेतु -Adam Bridge

राम सेतु -Adam Bridge करोड़ों हिंदुओं की आस्था के प्रतीक राम सेतु पर अमेरिकी साइंस चैनल ने एक बड़ा खुलासा किया है। साइंस चैनल का दावा है कि राम सेतु मानव निर्मित है यानी कि इसका निर्माण इंसानों ने किया है। अबतक ये माना जाता था कि रामसेतु प्राकृतिक है लेकिन तमाम कयासों पर इस साइंस चैनल ने विराम लगा दिया है। खास बात ये है कि इस साइंस चैनल ने जो समय रामसेतु के निर्माण का बताया है करीब-करीब वही समय हिंदू मायथोलॉजी से भगवान राम का बताया जाता है। अमेरिकन भू-वैज्ञानिकों के हवाले से एनसिएंट लैंड ब्रिज नाम के एक प्रोमो में ऐसा दावा किया गया है कि भारत में रामेश्वरम के नजदीक पामबन द्वीप से श्रीलंका के मन्नार द्वीप तक लंबी बनी पत्थरों की यह श्रृंखला मानव निर्मित है। साइंस चैनल के मुताबिक... #भू-वैज्ञानिकों ने नासा की तरफ से ली गई तस्वीर को प्राकृतिक बताया है #वैज्ञानिकों ने विश्लेषण में पाया कि 30 मील लंबी राम सेतु मानव निर्मित है #भू-वैज्ञानिकों का ये भी दावा है कि जिस सैंड पर यह पत्थर रखा हुआ है ये कहीं दूर जगह से यहां पर लाया गया है।। #ट्वीट -- Science Channel @ScienceChannel

गैस्ट्रिक अल्सर (GASTRIC ULCER)

                                               गैस्ट्रिक अल्सर                                                  (GASTRIC ULCER)      जब किसी दवाब या जहरीले पदार्थ खा लेने की वजह से पेट की दीवारों को बचाने वाली मूकोसा परत नष्ट हो जाती है तो अल्सर बनना शुरू होता है। केला मूकोसा कोषों में बढ़ोत्तरी करता है जिससे पेट को रसायनों से बचाने के लिए दीवारे बनती हैं और गैस्ट्रिक अल्सर नहीं होता है। कारण : 👉 इस रोग में पक्वाशय रोगग्रस्त हो जाता है जिससे पक्वाशय में रस की वृद्धि होती है। गैस्ट्रिक अल्सर दूषित व भारी खाना खाने, अलग-अलग स्थानों पर पानी पीने, मानसिक अघात और ´हेलिकोबेक्टर पायलोरी´ नामक बैक्टीरिया के कारण होता है। लक्षण :👉  गैस्ट्रिक अल्सर में जी मिचलना , उल्टी, ऊपरी भाग का दर्द, जलन, अम्ल की अधिकता, खट्टी डकारे , भूख के कारण पेट में दर्द होना आदि लक्षण उत्पन्न होते हैं। भोजन और परहेज़ :👉 दूध , मौसमी, चोकर समेत आटे की रोटी, चने की रोटी, सत्तू, नींबू , लौकी, परवल, पालक , बथुआ, पत्तागोभी, नाशपाती, आलूबुखारा , गाजर का मुरब्बा और मटर आदि का सेवन करना गैस्ट्रिक अल्सर