संदेश

मई, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

स्वाध्याय एवं ईश्वरोपासना जीवन में आवश्यक एवं लाभकारी हैं”

ओ३म् “स्वाध्याय एवं ईश्वरोपासना जीवन में आवश्यक एवं लाभकारी हैं” ============= मनुष्य आत्मा एवं शरीर से संयुक्त होकर बना हुआ एक प्राणी हैं। आत्मा अति सूक्ष्म तत्व व सत्ता है। इसे शरीर से संयुक्त करना सर्वातिसूक्ष्म, सच्चिदानन्दस्वरूप, निराकार, सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी, अनादि, नित्य व अविनाशी  ईश्वर का काम है। आत्मा स्वयं माता के गर्भ में जाकर जन्म नहीं ले सकती। आत्मा को माता के शरीर में भेजना, वहां उसका पोषण करना, उसके शरीर व भिन्न अवयवों की रचना करना परमात्मा का काम है। परमात्मा न हो तो जीवात्मा का अस्तित्व होने पर उसका मनुष्य आदि किसी भी प्राणी योनि में जन्म नहीं हो सकता। अनादि काल से सृष्टि की रचना व प्रलय सहित जीवात्माओं के जन्म-मृत्यु-मोक्ष का क्रम चल रहा है। अनन्त काल तक यह चलता रहेगा। यह सिद्धान्त वेद तथा तर्क एवं युक्त्यिों से सिद्ध है। जो मनुष्य इस रहस्य को जान लेता है उसे कुछ समय के लिये तो वैराग्य ही हो जाता है। मनुष्य संसार में अपने सुख सुविधाओं के लिये जो उचित व अनुचित तरीकों से पाप-पुण्य करता है, उसे पापों से घृणा हो जाती है। उसे जब पता चलता है कि हमारा जन्म व सुख-द

आत्मा साकार है, या निराकार?

आत्मा साकार है, या निराकार? लेखक - स्वामी विवेकानंद परिव्राजक, निदेशक, दर्शन योग महाविद्यालय, रोजड़, गुजरात। काफी लंबे समय से कुछ लोगों द्वारा, इस बात का प्रचार किया जा रहा है कि आत्मा साकार है।      हम उन्हें अनेक वर्षों से समझा रहे हैं, कि आपका विचार ऋषियों के अनुकूल नहीं है। फिर भी वे इतने हठी लोग हैं, कि अपना हठ छोड़ने को तैयार नहीं हैं, और सत्य को स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं। मुझे अनेक विद्वानों तथा श्रद्धालु व्यक्तियों ने प्रेरित किया, कि आप इस विषय में ऋषियों का विचार प्रस्तुत करें। उनके सुझाव का सम्मान करते हुए, सर्वहित के लिए मैं कुछ निवेदन कर रहा हूं। ऐसे लोगों का यह कहना है कि--  आत्मा साकार है। एकदेशी होने से । जो जो वस्तु एकदेशी होती है, वह वह  साकार  होती है। जैसे स्कूटर कार इत्यादि । आत्मा भी एकदेशी है। इसलिए आत्मा भी साकार है। इन लोगों ने जो अपनी बात रखी है, इसमें इनका हेतु गलत है। हेतु का अर्थ है, अपनी बात को सिद्ध करने के लिए सही कारण बताना। इन्होंने जो कारण बताया, वह गलत है। न्यायदर्शन की भाषा में, गलत कारण को हेत्वाभास कहते हैं। इन्होंने जो कारण बताया

विचारशून्य हिन्दू अर्थात लाभदायक मूर्ख

विचारशून्य हिन्दू अर्थात लाभदायक मूर्ख  Useful Idiots (लाभदायक मूर्ख ) एक विश्व-विख्यात मुहावरा है। इसी नाम से बी.बी.सी. ने एक ज्ञानवर्द्धक डॉक्यूमेंटरी भी बनाई है। इस कवित्वमय मुहावरे के जन्मदाता रूसी कम्युनिज्म के संस्थापक लेनिन थे।  वे बुद्धिजीवी जो अपनी किसी हल्की या भावुक समझ से कम्युनिस्टों की मदद करते थे उन्हे यूजफूल ईडियट कहा था। आज विचारशून्य हिन्दू यही यूजफूल ईडियट बन गया है। अल्लाह मौला वाले कथावाचक और उनका समर्थन करने वाले अरबपति गुरुजी सब चाहते हैं कि हिन्दू विचार शून्य बना रहे। इसी कारण हिन्दू युवा नास्तिक हो रहा है। इन करोड़पति धर्म ध्वजी धंधेबाजों का क्या है? हालत बिगड़े तो राज्य बदल देंगे। ज्यादा बिगड़े तो महेश योगी की तरह अमेरिका चले जाएंगे। यदि उपदेशक सीधी सरल बात करे तो भक्तों की संख्या बेहद कम होगी आम हो खास मनुष्य को तो चमत्कार चाहिए। नौकरी चाहिए, व्यापार चाहिए, किसी को संतान चाहिए तो किसी को बीमारी से छुटकारा, जो हाथ से गया उसके लिए बाबा और जो पास में हैं वह बचा रहे उसके लिए भी बाबाओं से मन्त्र चाहिए। अंधश्रद्धा की पराकाष्ठा देखिये! नौजवान बेटियों को अकेले इन

वेद और देव

वेद और देव वेदों में देव विषय को लेकर अनेक भ्रांतियां हैं। शंका 1- देव शब्द से क्या अभिप्राय समझते हैं ? समाधान- निरुक्त 7/15 में यास्काचार्य के अनुसार देव शब्द दा, द्युत और दिवु इस धातु से बनता हैं। इसके अनुसार ज्ञान,प्रकाश, शांति, आनंद तथा सुख देने वाली सब वस्तुओं को देव कहा जा सकता हैं। यजुर्वेद[14/20] में अग्नि, वायु, सूर्य, चन्द्र वसु, रूद्र, आदित्य, इंद्र इत्यादि को देव के नाम से पुकारा गया हैं। परन्तु वेदों [ऋग्वेद 6/55/16, ऋग्वेद 6/22/1, ऋग्वेद 8/1/1, अथर्ववेद 2/2/1] में तो पूजा के योग्य केवल एक सर्वव्यापक, सर्वज्ञ, भगवान ही हैं। देव शब्द का प्रयोग सत्यविद्या का प्रकाश करनेवाले सत्यनिष्ठ विद्वानों के लिए भी होता हैं क्यूंकि वे ज्ञान का दान करते हैं और वस्तुओं के यथार्थ स्वरुप को प्रकाशित करते हैं [शतपथ 3/7/3/10, शतपथ 2/2/2/6, शतपथ 4/3/44/4, शतपथ 2/1/3/4, गोपथ 1/6] । देव का प्रयोग जीतने की इच्छा रखनेवाले व्यक्तियों विशेषत: वीर, क्षत्रियों, परमेश्वर की स्तुति करनेवाले तथा पदार्थों का यथार्थ रूप से वर्णन करनेवाले विद्वानों, ज्ञान देकर मनुष्यों को आनंदित करनेवाले सच्चे ब्रा

◆ सोने की चिड़िया क्यों लुटती थी?

◆ सोने की चिड़िया क्यों लुटती थी? _____________ महान इतिहासकार विल ड्यूराँ ने अपना पूरा जीवन लगाकर वृहत ग्यारह भारी-भरकम खंडों में “स्टोरी ऑफ सिविलाइजेशन” लिखी था। उसके प्रथम खंड में भारत संबंधी इतिहास के अंत में उन्होंने अत्यंत मार्मिक निष्कर्ष दिए थे। वह हरेक भारत-प्रेमी के पढ़ने योग्य है। हजार वर्ष पहले भारत विश्व का सबसे धनी और समृद्ध देश था। मगर उसे बाहर से आने वाले लुटेरे हर साल आकर भरपूर लूटते थे। यहाँ तक कि उनके सालाना आक्रमण का समय तक नियत था! मगर यह समृद्ध सभ्यता उनसे लड़ने, निपटने की कोई व्यवस्था नहीं कर पाती थी और प्रति वर्ष असहाय लुटती और रौंदी जाती थी। ड्यूराँ दुःख और आश्चर्य से लिखते हैं कि महमूद गजनवी से लेकर उसका बेटा मसूद गजनवी तक जब चाहे आकर भारत को लूटता-खसोटता रहा, और ज्ञान-गुण-धन संपन्न भारत कुछ नहीं कर पाता था। ड्यूराँ ने उस परिघटना पर दार्शनिक टिप्पणी की है कि सभ्यता बड़ी अनमोल चीज है। अहिंसा और शांति के मंत्र-जाप से वह नहीं बचती। उस की रक्षा के लिए सुदृढ़ व्यवस्था करनी होती है, नहीं तो मामूली बर्बर भी उसे तहस-नहस कर डालता है। क्या यह सीख आज भी हमारे लिए दुः

भारत मे 2 झूठ बोले जाते हैं।

भारत मे 2 झूठ बोले जाते हैं। 1 कानून सबके लिए समान है। 2 शासन की दृष्टि मे सभी धर्म समान हैं। पालघर मे साधुओं की नृशंस हत्या पर न्यायालय मौन है पर उत्तरप्रदेश मे दंगाइयों को बचाते समय जज साहब को कानून याद आ जाता है। एक खबर मे आंशिक गलती पर opindia के अजित भारती पर FIR हो जाती है। कड़वा सच दिखाने पर सत्य सनातन केअंकुर आर्य पर FIR हो जाती है। जरा सी बात पर अर्णब गोस्वामी पर FIR हो जाती है। परंतु ललनटोप, ध्रुव राठी, प्रतीक सिन्हा, शेखर गुप्ता, राना आयूब और रविश कुमार पर कोई कार्यवाही क्यों नहीं होती? जाकिर नायक और मौलाना साद फरार पर पालघर के संतों की हत्या पर कोर्ट चुप   कानून के हाथ भले ही लम्बे हों परन्तु नीयत बहुत ही खोटी है नीति बहुत ही पक्षपाती है। पूरी दुनिया में एक व्यवस्था है जो मानवाधिकार आयोग कहलाती है. ये मानवाधिकार वाले करते क्या है ? एक छोटा सा नमूना देखें-- कश्मीर में सेना पर पत्थर फेंकने वालों के अधिकारों की रक्षा करता है. कसाब जैसे भयंकर आतंकी के अधिकारों की रक्षा करता है. लैंडमाइन बिछा कर सैनिकों और अर्धसैनिकों को मारने वाले और विकलांग बनाने वाले नक्सलियों

संतों को सच कौन सिखाए!

◆ संतों को सच कौन सिखाए! ---------------------------------------------------------- गत सौ सालों से शुरू हुई अनेक वैचारिक परंपराओं में सब से बुरी है: सभी धर्मों को एक बताना। कुछ लोगों ने वैदिक ‘‘एकम् सद विप्रा बहुधा वदन्ति’’ को सभी रिलीजनों पर लागू कर दिया। मानो 'सत्य' और 'रिलीजन' एक चीज हों। जबकि सत्य तो दूर, भारतीय धर्म भी रिलीजन नहीं है। धर्म है: उचित आचरण। रिलीजन है: फेथ। यहूदी, क्रिश्चियन, मुहम्मदी, आदि इस 'फेथ' श्रेणी में आते हैं। कोई ‘फेथ’ भयावह, वीभत्स, अत्याचारी भी हो सकता है, इस की समझ महात्मा गाँधी को थी। भारत के गत हजार साल का इतिहास उन्होंने पढ़ा नहीं, तो सुना अवश्य था। परन्तु उसी की लीपा-पोती करने के लिए गाँधीजी ने 'फेथ' को 'धर्म' जैसा बताने की जिद ठानी। उस के क्या-क्या दुष्परिणाम हुए, वह एक अलग विषय है। वही बुरी आदत कुछ आधुनिक हिन्दू संतों ने अपना ली। गाँधीजी की ही तरह उन्होंने न प्रोफेट मुहम्मद की जीवनी पढ़ी, न उनके कथनों, आदेशों का संग्रह हदीस, न आद्योपान्त कुरान पढ़ा, न शरीयत, न इस्लाम का इतिहास पढ़ा। फिर भी वे इस्लाम पर भी

एक_दिन_माटी_में_मिल_जाना। भजन

चित्र
एक_दिन_माटी_में_मिल_जाना । भजन - स्वर , यादवेंद्र_शास्त्री  आर्यसमाज वैदिक राष्ट्र यूट्यूब चैनल सब्क्राइब नहीं किया है तो अवश्य करें। धन्यवाद । आचार्य भानु प्रताप वेदालंकार इंदौर मध्य प्रदेश आर्य समाज संचार नगर इंदौर मध्य प्रदेश गुरु विरजानन्द गुरुकुल इंदौर मध्य प्रदेश 9977987777 9977957777 samelan, marriage buero for all hindu cast, love marigge , intercast marriage , arranged marriage rajistertion call-9977987777, 9977957777, 9977967777or rajisterd free aryavivha.com/aryavivha app   

आज का वैदिक विचार

चित्र
आज का वैदिक विचार यज्ञ का संदेश - यह मेरा नहीं है । यज्ञ -अग्निहोत्र-हवन करते समय अनेकों मंत्र में स्वाहा के पश्चात कहा जाता है इदम् न मम। यह मेरा नहीं है क्योंकि जब हम यज्ञ में घी,हवन सामग्री आदि आहूत करके अग्नि में डालते हैं तो वह सुगंधी केवल यजमान के लिए या उसके परिवार के लिए नहीं होती अपितु संसार में जहां तक वह वायु पहुंचेगी सबके लिए वह समान रूप से यह यज्ञ की सुगंधित पहुंच जाती है । इस प्रकार से यह यज्ञ में डाला हुआ पदार्थ है, मेरा नहीं है उसी प्रकार से हमें अपने जीवन में भी यह मेरा नहीं है भाव रहना चाहिए। हमारे जीवन में अहंकार नहीं होना चाहिए। विनम्रता होने चाहिए। अहंकार शून्यता होनी चाहिए ,इस प्रकार का भाव, हमारा जीवन उज्जवल करता है। कहा है- पूजनीय प्रभु हमारे भाव उज्जवल कीजिए ।छल कपट को छोड़ देवें। बंधुओं इस वीडियो में आप सुनेंगे कि हम महापुरुषों के बताए हुए मार्ग पर उनके जीवन से, प्रेरणा लेते हुए हम कैसे अहंकार से अंहकारशून्य - निरभिमानी होते है । आओ आज का विचार सुने, देखें ,समझें और अपने जीवन को स्वस्ति के मार्ग पर चलें । कल्याण के मार्ग पर ले चलें । धन्यवाद आपने

वैदिक का अवैदिक कृत्य

चित्र
वैदिक का अवैदिक कृत्य वैदिक का अवैदिक कृत्य। लेखक-डॉ सोमदेव शास्त्री-मुंबई श्री वैदिकजी वेदप्रताप वैदिक के अवैदिक कृत्य-अल्लाय नमः,मोहम्मदाय नमःआदि अवैदिक कृत्यों का समर्थन करते हुए दो दो सभाओं के मंत्री विट्ठलराव जी आर्य ने मुँह में दही क्यों जम गया-बात का बतंगड-कौन सा पहाड़ टूट गया आदि शब्दों का प्रयोग कर केअपनी और दोनों सभाओं की तथा इनके साथ कार्यरत सम्माननीय पदाधिकारियों की गरिमा का भी अवमूल्यन किया है? चाहिये तो यह था कि वैदिक जी के विचारों के प्रति अपनी असहमति व्यक्त करते या आगे भविष्य में ऐसी कोई वेद विरुद्ध गतिविधि न हो-सुझाव दिया जाता ,पर श्री आर्य जी यह भी भूल गए कि वे जिस संस्था या पद पर बैठे हैं उस स्थान पर स्वामी श्रद्धानंदजी -महात्मा नारायणस्वामी ,स्वामी अभेदानंद,स्वामी ध्रुवानंद, डॉ दु:खनराम ,पं.गंगाप्रसाद, घनश्याम सिंह गुप्त जैसे महानुभाव प्रतिष्ठित रहे हैं ।जिस सभा ने स्वामी स्वतंत्रानंद जी के नेतृत्व में हैदराबाद जैसी सशक्त रियासत को असत्य और अवैदिक कृत्यों को छोड़ने के लिए बाध्य कर दिया था,आज उस सभा का अपमान करते हुए अल्लाय स्वाहा का समर्थन कर रहे ह

हम अपने शरीर को कैसे सजाएं

चित्र
हम अपने शरीर को कैसे सजाएं                                                                                                                                                   हम अपने शरीर को कैसे सजाएं   शरीर को सजाने का तात्पर्य हम अपने आंतरिक गुणों का विकास कैसे करें| क्या शरीर की सुंदरता ब्यूटी पार्लर से होगी या हमारे गुणों के विकास से होगी।    एक बहुत सुंदर शरीरवालि किंतु अवगुण, दुर्गुणवाला मनुष्य है तो क्या वह सुंदरता का पर्याय होगा|  नहीं होगा अर्थात बुद्धि के द्वारा व्यक्तित्व विकास करना, पर्सनैलिटी डेवलपमेंट करना वास्तव में शरीर को सजाना कहलाता है। व्यक्ति विकास हम कैसे करें ? जिससे कि हमारे हमारी शारीरिक सुंदरता बन जाये।     संसार ,पूरा समाज बाहरी सुंदरता की ओर दौड़ रहा है जबकि बहारी सुंदरता से अत्यधिक आंतरिक सुंदरता की आवश्यकता होती है और वह आंतरिक सुंदरता केवल मात्र सद्गुणों से आ सकती है । यही बात आज के वैदिक विचार में कहीं जा रही है कि जिस प्रकार से यज्ञ वेदी हवन की वेदी को हम सजाते हैं वैसे ही हम अपने शरीर को आंतरिक गुणों से सजाएं ।।    हमारे व्यक्तित्व को विकस

मनुष्य -- मनुष्य बनो ।

चित्र
मनुष्य -- मनुष्य बनो । आज का वैदिक विचार है ।मनुष्य -- मनुष्य बनो । दिखने में सभी व्यक्ति मनुष्य दिखाई देते हैं और आज मनुष्य का शरीर उनके पास में है किंतु उनके गुण कर्म स्वभाव के अनुसार वह मनुष्य नहीं है । आज का समाज मनुष्य को हिंदू ,मुसलमान, सिख, इसाई व अन्य मत-सम्प्रदायों में दीक्षित करना चाहता है ,बनाना चाहता है। हिंदू बनाना चाहता है, मुसलमान बनना चाहता है ,इसाई बनाना चाहता है , संसार में जितने भी मत- मतांतर- संप्रदाय-मजहब हैं ,वह अपने आप को धर्म मानते हैं किंतु वह धर्म नहीं है, मजहब है, संप्रदाय हैं ,मत हैं , इसलिए बंधुओं धर्म तो केवल एक ही है, वह है - वैदिक धर्म ,मनुष्य धर्म ,उसको समझे, उसको जाने वेद ही एकमात्र ऐसा ग्रंथ है, वैदिक धर्म में ही ऐसा एक धर्म है ,जो कहता है कि मनुष्य बनो। एक ही बात कहता है मनुष्य बनो । मानवता को अपने जीवन में धारण करो, मनुष्य बनना बड़ा कठिन है ,मनुष्य का अर्थ होता है जो सोच कर ,विचार कर ,चिंतन कर, कार्य करता है वह मनुष्य के कहलाता है । मनुष्य हमेशा अपने जीवन में उन्नति के पथ पर जाना चाहता है ,मनुष्य स्वार्थी नहीं होता मनुष्य अप

सफलता का रहस्य

चित्र
सफलता का रहस्य नमस्ते जी ,आप देख रहे हैं वे वैदिक राष्ट्र यू ट्यूब चैनल की ओर से प्रस्तुत प्रेरणादायक कहानी । आज की कहानी है हमें बताती है कि हम अपने जीवन में सफलता को कैसे प्राप्त करें|   सफलता प्राप्ति का क्या रहस्य है | जीवन में सफलता प्राप्त करनी है तो हमें कठोर परिश्रम निरंतर करना होता है । जीवन में कभी भी अपने लक्ष्य की और विश्राम नहीं करना है, निरंतर आगे बढ़ते ही रहना होता है । यदि हम अपने परिश्रम में शिथिलता करते हैं तो निश्चित रूप से हम पीछे रह सकते हैं इसलिए आओ हम पुरुषार्थ करें किंतु निरंतर पुरुषार्थ करें तो हमें सफलता मिलती रहेगी। आपने अभी तक वैदिक राष्ट्र यूट्यूब चैनल सब्सक्राइब नहीं किया तो अवश्य करें । धन्यवाद आर्य समाज इंदौर मध्य प्रदेश आज का विचार वैदिक विचार भी सुनें प्रेरणादायक कहानी भी सुनें। वैदिक सिद्धांतों से प्रेरित भजन भी आप सुनते रहें । इसी तरह आपका स्नेह प्रेम मिलता रहे पुनः धन्यवाद। 9977967777 sarvjatiy parichay samelan, marriage buero for all hindu cast, love marigge , intercast marriage , arranged marriage rajistertion call-

अकर्मा दस्यु

चित्र
आज का वेद विचार वेद का विचार है वेद कहता है -- जो व्यक्ति आलसी है ,निकम्मा है ,कामचोर है, वह दस्यु है - वह राक्षस है । वह निम्न कोटि का प्राणी है। वह मनुष्य नहीं है, इसलिए आओ हम कर्म करें ,कर्म करने से ही व्यक्ति देव देवता बनता है । कर्महीन व्यक्ति को कुछ नहीं मिलता है ,कर्म करने से ही व्यक्ति सद्गति को प्राप्त होता है। बिना पुरुषार्थ के ,बिना श्रम के बिना मेहनत के, हमें कुछ भी नहीं - कुछ भी नहीं प्राप्त होता है। इसलिए आओ हम सब मिलकर पुरुषार्थ करें ,सब पुरुषार्थ करें ,अच्छे कार्य करें। हमारा लक्ष्य है धर्म अर्थ काम और मोक्ष इन सब में पुरुषार्थ करना चाहिए । आप सुन रहे हैं वैदिक राष्ट्र यूट्यूब चैनल आपने अभी तक सब्क्राइब नहीं किया सब्क्राइब करें । लाइक करें। शेयर करें कमेंट करें बेल की घंटी को अवश्य जाएं । धन्यवाद । आर्य समाज संचार नगर इंदौर( मध्य प्रदेश) आचार्य भानु प्रताप वेदालंकार इंदौर मध्य प्रदेश गुरु विरजानंद गुरुकुल इंदौर मध्य प्रदेश 9977987777 sarvjatiy parichay samelan, marriage buero for all hindu cast, love marigge , intercast marriage , arrange