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नमस्ते जी आपका दिन शुभ हो भाद्रपद-शु-१४-२०७७ 01 सितम्बर 2020

 नमस्ते जी    आपका दिन  शुभ  हो  भाद्रपद-शु-१४-२०७७     01  सितम्बर 2020   ~~~~~ दिन -----           मंगलवार तिथि -- चतुर्दशी-9:38amतक नक्षत्र -------       धनिष्ठा पक्ष ------          शुक्ल माह-- ---          भाद्रपद ऋतु --------       वर्षा सूर्य दक्षिणायणे,उत्तर गोले   विक्रम सम्वत --2077  दयानंदाब्द -- 196 शक सम्बत -1942 मन्वन्तर ---- वैवस्वत  कल्प सम्वत--1972949122 मानव,वेदोत्पत्ति सृष्टिसम्वत-१९६०८५३१२२ 🔅रा. काल : 3:14 से 4:35 am 🌞सूर्योदय -((दिल्ली)5:58🔅बदायूँ 5:51 🌞सूर्यास्त--( दिल्ली)6:44🔅बदायूं 6:37 🍎 पहला सुख निरोगी काया: अकेला गर्म पानी ही कोरोना को काफी है..! 🌹रूप वाणी : जीत-हार , सफलता- असफलता, हानि- लाभ तो फल हैं,हमारा फल पर कोई वश नहीं.. हमारा वश तो कर्म पर है!  🌺आचार्य संजीव रूप  वेदकथाकार-,पुरोहित,कवि ,यज्ञतीर्थ- गुधनी-बदायूँ(उप्र) 9997386782 wu 9870989072-  🌹🌹🌹🌹🙏🌹🌹🌹🌹  🏵 हिन्दी संकल्प पाठ 🏵 हे परमात्मन् आपको नमन!!आपकी कृपा से मैं आज एक यज्ञ कर्म को तत्पर हूँ, आज एक ब्रह्म दिवस के दूसरे प्रहर कि जिसमें वैवस्वत मन्वन्तर वर्तमान है,अट्ठाईसवीं चतुर्युग

स्वाबनें।र्थ सिद्धि तो करें। परंतु अतिस्वार्थी न

  स्वाबनें।र्थ सिद्धि तो करें। परंतु अतिस्वार्थी न         स्वार्थ तो जीवात्मा का स्वभाव ही है। स्वभाव कभी छूटता नहीं। सभी आत्माएँ एक जैसी हैं। इसलिए कुछ-कुछ स्वार्थी तो सभी हैं।           स्वार्थ का मतलब है, स्व + अर्थ = अपने लाभ के लिए कार्य करना। अपनी कमी को पूरा करने के लिए कार्य करना। आत्मा में स्वभाव से बहुत सी कमियां हैं। जैसे कि आत्मा को धन संपत्ति भोजन वस्त्र मकान मोटर गाड़ी सम्मान सुख आदि चाहिए। इन सब चीजों की उसके पास कमी है। इसलिए वह अपनी कमियों को पूरा करने के लिए सदा प्रयत्न करता रहता है। इसे कहते हैं स्वार्थ पूर्ति करना। थोड़ी थोड़ी मात्रा में यदि सभी लोग अपना अपना स्वार्थ पूरा करें, तो इसमें कोई हानि नहीं है। ऐसा करना स्वाभाविक है। परंतु अति स्वार्थी बनना उचित नहीं है।          स्वार्थी बनने का तात्पर्य यह है, कि उस सीमा तक अपना स्वार्थ पूरा करें, जिससे  दूसरों को हानि या कष्ट न हो. ऐसा करना उचित है।        अति स्वार्थी बनाने का तात्पर्य यह है कि दूसरों को हानि पहुंचाकर अथवा दुख देकर अपने स्वार्थ की पूर्ति करना। यह अनुचित है।        परंतु संसार में कुछ लोग अपनी मूर्खता

आज का वेदमंत्र

 आज का वेदमंत्र, अनुवाद महात्मा ज्ञानेन्द्र अवाना जी द्वारा, प्रचारित आर्य जितेंद्र भाटिया द्वारा,ऑडियो रिकॉर्डिंग सुकांत आर्य द्वारा🙏🌺 सुनीतिभिर्नयसि त्रायसे जनं यस्तुभ्यं दाशान्न तमंहो अश्नवत्। ब्रह्मद्विषस्तपनो मन्युमीरसि बृहस्पते महि तत्ते महित्वनम्॥ ऋग्वेद २-२३-४॥🙏🌺 हे परमेश्वर ! जो तुम्हें समर्पित हो जाता है, उसको तुम उचित पथ दिखाते हो। जो पापहीन होकर शुभ गुण, कर्म और स्वभाव से चलता है। उसकी आप सुरक्षा और उन्नति करते हो। जो पापी है और दिव्य ज्ञान का विरोधी है, उसका आप विनाश करते हो। आपकी इस महिमा की हम प्रशंसा करते हैं।🙏🌺 O God !  You show  proper path to those who are dedicated to you. Who walks on such path free from sins, with auspicious qualities,  noble deeds and  noble tendencies.  You protect and prosper them.  You destroy those who are wicked and haters of the divine knowledge. We praise such greatness of yours. samelan, marriage buero for all hindu cast, love marigge , intercast marriage , arranged mar

परतंत्रता क्या है? जब न चाहते हुए भी दूसरे के आदेश का पालन करना पड़े

 1.9.2020.         परतंत्रता क्या है? जब न चाहते हुए भी दूसरे के आदेश का पालन करना पड़े।           1- कर्म करने की स्वतंत्रता--  ईश्वर के संविधान वेदों में कुछ कर्म करने को बताए गए हैं, जैसे यज्ञ करना दान देना ईश्वर की उपासना करना माता पिता की सेवा करना प्राणियों की रक्षा करना शाकाहारी भोजन खाना इत्यादि। यदि कोई व्यक्ति इन कर्मों में से अपनी इच्छा रुचि योग्यता सामर्थ्य के अनुसार कोई कार्य करता है, तो इसे स्वतंत्रता कहेंगे। स्वतंत्र अर्थात अपनी इच्छा के अनुसार संविधान के अनुकूल कार्य करना।      2- कर्म करने की स्वच्छंदता.  संविधान में बताए गये कर्मों में से न करके, संविधान के विरुद्ध अपनी मनमानी से निषिद्ध कर्मों को करना, यह स्वच्छंदता कहलाती है। जैसे चोरी करना झूठ बोलना धोखा देना अन्याय करना व्यभिचार करना दूसरों का शोषण करना किसी को धमकी देना इत्यादि।      3- कर्म करने की परतंत्रता।  जब ईश्वरीय संविधान के विरुद्ध किसी अन्य मनुष्य के दबाव से, न चाहते हुए भी हमें कर्म करने पड़ें, तो यह कर्म करने की परतंत्रता कहलाएगी। जैसे कोई विदेशी राजा हम पर शासन करे, और ईश्वरीय संविधान के विरुद्ध अपने

aaj ka mantra

 अविधायामन्तरे वर्तमाना स्वयं धीरा: पण्डितम्मन्यमाना:। जड्घन्यमाना: परियन्ति मूढ़ा अन्धेनैव नीयमाना यथान्धा:।। (मुण्डकोपनिषद् )   💐 अर्थ:- अविधा के बीच में पड़े हुए अर्थात् अविधा से ग्रसित अपने को धीर ( ज्ञानी ) और पण्डित (चतुर ) मानने वाले मुर्ख ठोकरे खाते हुए सब ओर , इधर- उधर ऐसे भटकते है , और दुर्दशा को प्राप्त होते है जैसे अन्धे के द्वारा रास्ता दिखाया जाता हुआ अंधा ठोकरे खाता है , दुःख पाता है । samelan, marriage buero for all hindu cast, love marigge , intercast marriage , arranged mar

मन पतित होने के कारण

 मन पतित होने के कारण       ====================   किन वस्तुओं से मन पतित होता है? अथर्ववेद में एक मन्त्र आता है―   यथा मांसं यथा सुरा यथाक्षा अधिदेवने । यथा पुंसो वृषण्यत स्त्रियां निहन्यते मनः ।। ―(अथर्व० ६/७/७०/१)    भावार्थ―ये चार वस्तुएँ हैं जिनसे मन पतित होता है―मांस, शराब, जुआ और पराई स्त्री या पराए पुरुष के साथ सम्बन्ध।   ये चारों बातें मनुष्य को मार डालती हैं। इतना मैला कर देती हैं कि फिर इसे शुद्ध करने में वर्षों लग जाते हैं।     स्वाध्याय का अर्थ यह है कि प्रतिदिन अपने सूक्ष्म शरीर की किताब को देखो, देखो कि इन चारों में से कोई बात तो इसमें नहीं लिखी गई? यदि लिखी गई है तो सँभलो ! जो प्रतिदिन पढ़ता है, प्रतिदिन देखता है वह सँभलता है।    और फिर यदि अब न पढ़ोगे, तो एक-न-एक दिन वह पुस्तक पढ़नी अवश्य पड़ेगी, खुलकर वह सामने आ जाएगी और एक-एक करके उसके पन्ने उठेंगे, एक-एक करके सब-कुछ सामने आयेगा, जब साँस समाप्त होने लगेंगे। जब हिचकी बँध जाती है, जब मृत्यु सामने आकर खड़ी हो जाती है, उस समय यह पुस्तक स्वयं ही खुल जाती है। मनुष्य इसे देखता है, देखता है कि इसमें बहुत-सी बुरी बातें लिखी गई हैं

आज का चिन्तन

 आज का चिन्तन     सांसारिक जीवन में हम देखते हैं तो एक बात बड़ी मामूली सी मगर बहुत ही महत्वपूर्ण और समझने जैसी है। जब हमारे भीतर कर्ता भाव आ जाता है और हम ये समझने लगते हैं कि ये कर्म मैंने किया तो निश्चित ही उस कर्मफल के प्रति हमारी सहज आसक्ति हो जायेगी। अब हमारे लिए कर्म नहीं अपितु फल प्रधान हो जायेगा। अब इच्छानुसार फल प्राप्ति ही हमारे द्वारा संपन्न किसी भी कर्म का उद्देश्य रह जायेगा। ऐसी स्थिति में जब फल हमारे मनोनुकूल प्राप्त नहीं होगा तो निश्चित ही हमारा जीवन दुःख, विषाद और तनाव से भर जायेगा। इसके ठीक विपरीत जब हम अपने कर्तापन का अहंकार त्याग कर इस भाव से सदा श्रेष्ठ कर्मों में निरत रहेंगे कि करने - कराने वाला तो एक मात्र वह प्रभु है। मुझे माध्यम बनाकर जो चाहें मेरे प्रभु मुझसे करवा रहे हैं। अब परिणाम की कोई चिंता नहीं रही। इस स्थिति में अब परिणाम चाहे सकारात्मक आये अथवा नकारात्मक, जीत मिले या हार, सफलता मिले अथवा तो असफलता किसी भी स्थिति में हमारा मन विचलित नहीं होगा और एक अखंडत आनंद की अनुभूति हमें सतत् होती रहेगी। जब कर्म करने वाला मैं ही शेष नहीं रहा तो परिणाम के प्रति आसक्त

भोजन क्या है और सात्विक भोजन के लाभ

 भोजन क्या है और सात्विक भोजन के लाभ  *सात्विक भोजन :----*         मुझे गर्व है अपनी भारतीय संस्कृति (Indian culture) पर, अपनी भारतीय शैली पर और अपनी भारतीय पद्धति पर । आज के इस मशीनी और आधुनिक युग (Modern life) में जहाँ सब कुछ digital हो चुका है , वहां यदि हम भारतीय शैली (indian culture) को अपनाए तो मैं दावे के साथ कह सकता हूँ, की हमारी आयु और हमारी सेहत दोनों ही बहुत बेहतरीन हो जायेंगे।         हमारे प्राचीन ऋषि मुनियो ने भोजन में सात्विक भोजन को बहुत महत्वता दी है । वे स्वयं भी सात्विक भोजन ही ग्रहण करते थे और वे सब ऊर्जायुक्त, बलवान, शांत, अध्यात्मिक और तीव्र बुद्धि वाले थे । उनके मस्तक पर सदा एक अलौकिक तेज रहता था । क्या आप जानते है ? इस का क्या कारण था – इसका मुख्य कारण था – उनका भोजन – उनका आहार । वे सब शुद्ध और सात्विक भोजन ही ग्रहण करते थे।        तो सर्वप्रथम हम यह जानेगे की सात्विक भोजन क्या है ? *सात्विक भोजन :------*         वह भोजन जो पूर्ण रूप से शाकाहारी  हो, अथार्त जो बिना प्याज -लहसुन के बनाया गया हो, जिसमे सत्व गुण की प्रधानता हो, जो सादा, शुद्ध और हल्का हो, पचने में

वेदाध्ययन व वेद प्रचार से अविद्या दूर होकर विद्या वृद्धि होती है

 ओ३म् “वेदाध्ययन व वेद प्रचार से अविद्या दूर होकर विद्या वृद्धि होती है” ========== मनुष्य एक ज्ञानवान प्राणी होता है। मनुष्य के पास जो ज्ञान होता है वह सभी ज्ञान स्वाभाविक ज्ञान नहीं होता। उसका अधिकांश ज्ञान नैमित्तिक होता है जिसे वह अपने शैशव काल से माता, पिता व आचार्यों सहित पुस्तकों व अपने चिन्तन, मनन, ध्यान आदि सहित अभ्यास व अनुभव के आधार पर अर्जित करता है। मनुष्य एक एकदेशी व अल्पज्ञ प्राणी होता है। अतः इसका ज्ञान सीमित होता है। स्वप्रयत्नों से उपार्जित सभी ज्ञान प्रामाणित नहीं होता। ज्ञान की प्रामाणिकता की पुष्टि उसके वेदानुकूल होने पर होती है। प्राप्त ज्ञान के सत्य व असत्य की परीक्षा के लिए बने सिद्धान्तों का उपयोग करके की जाती है। सत्य ज्ञान का सृष्टिक्रम के अनुकूल तथा तथ्यों पर आधारित व तर्क एवं युक्तियों से सिद्ध होना आवश्यक होता है। तर्क ही एक प्रकार से ऋषि व विद्वान होता है जिसकी सहायता से हम किसी बात के तर्कसंगत व सत्य होने की परीक्षा कर उसे स्वीकार या अस्वीकार करते हैं। यही विधि देश-देशान्तर में सर्वत्र अपनाई जाती है।  धर्म व मत-पन्थों की मान्यताओं के सन्दर्भ में भी सत्य

नमस्ते जी आपका दिन शुभ हो

 नमस्ते जी    आपका दिन  शुभ  हो  भाद्रपद-शु-१३-२०७७🌷      31   अगस्त  2020   ~~~~~ दिन -----           सोमवार तिथि -- त्रयोदशी-8:48amतक नक्षत्र -------       श्रवण पक्ष ------          शुक्ल माह-- ---          भाद्रपद ऋतु --------       वर्षा सूर्य दक्षिणायणे,उत्तर गोले   विक्रम सम्वत --2077  दयानंदाब्द -- 196 शक सम्बत -1942 मन्वन्तर ---- वैवस्वत  कल्प सम्वत--1972949122 मानव,वेदोत्पत्ति सृष्टिसम्वत-१९६०८५३१२२ रा. काल : 8:31से 9:52 am सूर्योदय -((दिल्ली)5:58बदायूँ 5:51 सूर्यास्त--( दिल्ली)6:44बदायूं 6:37  पहला सुख निरोगी काया: गुड़ व भुना चना  खाने से शरीर पुष्ट होता वजन बढ़ता है। रूप वाणी : अनुसाशित व्यक्ति ही उत्तम शासक हो सकता है  आचार्य संजीव रूप  वेदकथाकार-,पुरोहित,कवि ,यज्ञतीर्थ- गुधनी-बदायूँ(उप्र) 9997386782 wu 9870989072-    हिन्दी संकल्प पाठ  हे परमात्मन् आपको नमन!!आपकी कृपा से मैं आज एक यज्ञ कर्म को तत्पर हूँ, आज एक ब्रह्म दिवस के दूसरे प्रहर कि जिसमें वैवस्वत मन्वन्तर वर्तमान है,अट्ठाईसवीं चतुर्युगी का कलियुग जिसका प्रथम चरण वर्तमान है,कि जिसका काल अब 5122 वर्ष चल रहा है ,सृष्

वेदादि ग्रन्थों के स्वाध्याय से मनुष्य अन्धविश्वासों व दुष्कर्मों बचता है

 ओ३म् “वेदादि ग्रन्थों के स्वाध्याय से मनुष्य अन्धविश्वासों व दुष्कर्मों बचता है” ========== वेद अपौरुषेय रचना है। सृष्टि क आरम्भ में परमात्मा ने ही अपने अन्तर्यामीस्वरूप से चार ऋषियों अग्नि, वायु, आदित्य एवं अंगिरा को उनकी आत्माओं में वेदों का ज्ञान कराया वा दिया था। प्राचीन काल से अद्यावधि-पर्यन्त सभी ऋषि वेदों की परीक्षा कर इस तथ्य को स्वीकार करते आये हैं कि वेद वस्तुतः ईश्वर से ही प्राप्त हुआ ज्ञान है। वेद सभी प्रकार की अविद्या व अन्धविश्वासों से सर्वथा रहित हैं। वेदों की इसी महत्ता के कारण से प्राचीन काल से भारत में वेदों के स्वाध्याय की परम्परा विद्यमान रही है। कहा जाता है कि जो वेदों का स्वाध्याय नहीं करता तथा जो वेदों की निन्दा आदि करता है, वह मनुष्य नास्तिक होता है। नास्तिक एक प्रकार से ईश्वर व वेद विषयक सत्य तथ्यों को न जानने व और उन्हें अपनी अविद्या आदि के कारण न मानने वाले लोग होते हैं। ऋषि दयानन्द (1825-1883) ने अपने समय में वेदों की महत्ता व वेद ज्ञान की सर्वोच्चता से परिचित कराने के लिये वेदों का प्रचार करने के साथ सत्यार्थप्रकाश एवं ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका आदि ग्रन्थों का

एक बार एक पंडित जी ने एक दुकानदार के पास पांच सौ रुपये रख दिए

 --- परमात्मा से सम्बन्ध ------ एक बार एक पंडित जी ने एक दुकानदार के पास पांच सौ रुपये रख दिए। उन्होंने सोचा कि जब मेरी बेटी की शादी होगी तो मैं ये पैसा ले लूंगा। कुछ सालों के बाद जब बेटी सयानी हो गई, तो पंडित जी उस दुकानदार के पास गए। लेकिन दुकानदार ने नकार दिया और बोला- आपने कब मुझे पैसा दिया था? बताइए! क्या मैंने कुछ लिखकर दिया है? पंडित जी उस दुकानदार की इस हरकत से बहुत ही परेशान हो गए और बड़ी चिंता में डूब गए। फिर कुछ दिनों के बाद पंडित जी को याद आया, कि क्यों न राजा से इस बारे में शिकायत कर दूं। ताकि वे कुछ फैसला कर देंगे और मेरा पैसा मेरी बेटी के विवाह के लिए मिल जाएगा। फिर पंडित जी राजा के पास पहुंचे और अपनी फरियाद सुनाई। राजा ने कहा- कल हमारी सवारी निकलेगी और तुम उस दुकानदार की दुकान के पास में ही खड़े रहना। दूसरे दिन राजा की सवारी निकली। सभी लोगों ने फूलमालाएं पहनाईं और किसी ने आरती उतारी। पंडित जी उसी दुकान के पास खड़े थे। जैसे ही राजा ने पंडित जी को देखा, तो उसने उन्हें प्रणाम किया और कहा- गुरु जी! आप यहां कैसे? आप तो हमारे गुरु हैं। आइए! इस बग्घी में बैठ जाइए। वो

आर्यसमाज एक अद्वितीय धार्मिक, सामाजिक एवं राष्ट्रीय संगठन है

 ओ३म् “आर्यसमाज एक अद्वितीय धार्मिक, सामाजिक एवं राष्ट्रीय संगठन है” ========== संसार में किसी विषय पर सत्य मान्यता एक व परस्पर पूरक हुआ करती हैं जबकि एक ही विषय में असत्य मान्यतायें अनेक होती व हो सकती हैं। संसार में ईश्वर व धर्म विषयक मान्यतायें भी एक समान व परस्पर एक दूसरे की पूर्वक होती हैं। इसी कारण से संसार में ईश्वर एक ही है यद्यपि उसके अनेकानेक गुण, कर्म व स्वभावों के कारण उसके अनेक नाम हैं। ईश्वर का मुख्य नाम ‘‘ओ३म्” है और उसके अन्य सब नाम गौणिक, उसके कर्मों तथा उससे हमारे सम्बन्धों के सूचक हैं। श्रेष्ठ कर्मों के समुच्चय व क्रियाओं को धर्म की संज्ञा दी जाती है। अग्नि का गुण दाह, प्रकाश वा रूप आदि होता है। यही अग्नि का धर्म है। इसी प्रकार वायु का गुण स्पर्श है। वायु का हम श्वास लेने में उपयोग करते हैं। अतः प्राणियों को श्वास लेने में सहयोगी पदार्थ को वायु कहा जाता है। वायु का धर्म है कि वह प्राणियों को श्वास लेने में सहायता दे। इसका यह गुण ही उसका धर्म है। इसी प्रकार से मनुष्य का धर्म भी सत्य ज्ञान व उस पर आधारित क्रियायें वा कर्म होते हैं जिससे मनुष्य का अपना तथा दूसरे मनुष्यो

मोक्ष प्राप्ति के साधन- शुध्द ज्ञान, शुद्ध कर्म व शुद्ध उपासना-

 ओ३म् मोक्ष प्राप्ति के साधन- शुध्द ज्ञान, शुद्ध कर्म व शुद्ध  उपासना- ..शुध्द ज्ञान:- १.ईश्वर सच्चिदानन्दस्वरूप, निराकार,सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, अनन्त,निर्विकार, अनादि, अनुपम और सर्वाधार है उसी की उपासना करनी चाहिए। २.आत्माएं अजर,अमर,अल्पज्ञ,अल्पशक्तिमान और शुभ अशुभ मिश्रित व निष्काम कर्मों के आधार पर  जन्म मरण के बन्धन में आने वाली हैं। परान्तकाल तक मोक्ष भी  प्राप्त कर सकती हैं। ३. प्रकृति जड है ,सत्व रज तम तीन प्रकार के गुणों वाली है और सृष्टि उत्पत्ति में उपादान कारण है। प्रकृति भी अात्मा व परमात्मा की तरह अनादि है सूक्ष्म है । ईश्वर साध्य है, आत्माएं साधक हैं, प्रकृति साधन है । तीनों का व्याप्य व्यापक सम्बन्ध है। ................ शुध्द कर्म:- फल की इच्छा छोड़ कर पूरी निष्ठा से अपने अपने कर्तव्य कर्म को करना। कोई कार्य ईश्वर की, वेद की व अन्तरात्मा की आज्ञा के विरुद्ध न करना | ........................ शुध्द उपासना:- अहिंसा, सत्य, अस्तेय आदि यम नियमों का सूक्ष्मता से पालन करते हुए योग के आठ अंगों का निरन्तर, श्रध्दापूर्वक व पूर्ण उत्साह से अभ्यास करना। पाषाण प

पंडित जगदेव सिंह सिद्धांति 27 अगस्त पुण्यतिथि पर श्रद्धासुमन

 पंडित जगदेव सिंह सिद्धांति  27 अगस्त पुण्यतिथि पर श्रद्धासुमन                        पंडित जगदेव सिंह सिद्धान्ती का जन्म हरयाणा प्रान्त के तहसील झज्जर जिला झज्जर के बरहाणा(गूगनाण ) गाँव में सन १९०० में विजयादशमी के दिन चौधरी प्रीतराम अहलावत के घर हुआ था . इनकी माताजी का नाम मामकौर था. इनके पिता न.प. अंगाल रिसाल में घुड़सवार थे. वे हिन्दुस्तानी सेना में प्रथम रहे हैं और वहीं इन्होने अंग्रेजी, उर्दू, हिन्दी पढ़ना लिखना सीखा. इनकी माता चरखी दादरी के निकट अटैला गाँव की थी. इनकी माताजी काफी धार्मिक विचारों की थी इसलिए ये बचपन से ही ईश्वर भक्ति में लग गए. ६ वर्ष की आयु में इन्होने गाँव की स्कूल से पांचवीं पास की, बेरी स्कूल से आठवीं पास की तथा झज्जर से छात्रवृति प्राप्त की. इन्हे २ रुपये मासिक छात्रवृति मिलती थी. जाट हाई स्कूल रोहतक से दसवीं पास की. जब वे १६ वर्ष के थे इनकी माताजी का देहांत हो गया. १९१६ में इनका विवाह बिरोहड़ गाँव की नानती देवी से कर दिया गया. सेना में भर्ती दसवीं पास करने के पश्चात सन १९१७ में ३५ सिख पलटन में सेना में भरती हो गए. इस समय इनका वेतन ११ रुपये मासिक था. इन्

हर साल 26 अगस्त को अंतर्राष्ट्रीय महिला समानता दिवस मनाया जाता है।

 हर साल 26 अगस्त को अंतर्राष्ट्रीय महिला समानता दिवस मनाया जाता है।  स्वघोषित लिबरल, नारीवादी और अंबेडकरवादी हमेशा चिल्लाते रहते हैं कि सनातन धर्म मे नारी का सम्मान नहीं है। ये कभी उनकी बात नहीं करते जो महिलाओं को पुरुष से आधा मानते हैं। 1 पुरुष के मुक़ाबले 2 महिलाओं की गवाही मानी जाती है।   सनातन धर्म का मूल वेद है। वेद मे कन्या, महिला, पत्नी, माँ, बेटी, बहन व गृहणी के विषय मे अनेक मंत्र हैं। उनमे से कुछ देखिए -- वेद में पत्नी के अधिकार यथा सिन्धुर्नदीनां साम्राज्यं सुषुदे वृषा। एथा त्वं सम्राज्ञ्‌येधि पत्युरस्तं परेत्य।। (अथर्ववेद 14.1.43) सम्राज्ञ्येधि श्वशुरेषु सम्राज्ञ्‌‌युत देवृषु। ननान्दुः सम्राज्ञ्‌येधि सम्राज्ञ्युत श्वश्रवाः।। (अथर्ववेद 14.1.44) (यथा) जैसे (वृषा) वर्षा करने मे सामर्थ्यवान /बलवान्‌ (सिन्धुः) बादलों और सागरों के जल समूह (नदीनाम्‌) जल धाराओं का (साम्राज्यं) साम्राज्य- चक्रवर्ती राज्य उत्पन्न / प्रेरित किया है। हे वधू! (एव) वैसे (त्वम्‌) तू (पत्युः) पति के (अस्तम्‌) घर (परेत्य) पहुँचकर (सम्राज्ञी) राजराजेश्वरी (एधि) हो। हे वधू ! तू (श्वशुरेषु) अपने ससुर आदि ग

नमस्ते जी आपका दिन शुभ हो

 नमस्ते जी    आपका दिन  शुभ  हो  भाद्रपद-शु-१०-२०७७      28 अगस्त  2020   दिन -----           शुक्रवार तिथि --             दशमी नक्षत्र -------       मूल पक्ष ------          शुक्ल माह-- ---          भाद्रपद ऋतु --------       वर्षा सूर्य दक्षिणायणे,उत्तर गोले   विक्रम सम्वत --2077  दयानंदाब्द -- 196 शक सम्बत -1942 मन्वन्तर ---- वैवस्वत  कल्प सम्वत--1972949122 मानव,वेदोत्पत्ति सृष्टिसम्वत-१९६०८५३१२२ रा. काल : 11:14 से 12:34 pm सूर्योदय -((दिल्ली)5:57🔅बदायूँ 5:50 सूर्यास्त--( दिल्ली)6:48🔅बदायूं 6:40 पहला सुख निरोगी काया:  यह भी है दवाएं:  आजमाएं: लौंग--- सिर में दर्द हो रहा हो तो इसे पीसकर माथे पर लगाएं खांसी हो तो इससे भूनकर चूसे थोड़ा निकल आया हूं तो इससे किसका हल्दी के साथ लगाएं दांत दर्द में इसका तेल लाभदायी है। रूप वाणी :   शैक्षिक डिग्री मेरी योग्यता का प्रमाण नहीं होती बल्कि मेरे अहंकार का तो कारण अवश्य हो सकती है     🌺आचार्य संजीव रूप  वेदकथाकार-,पुरोहित,कवि ,यज्ञतीर्थ- गुधनी-बदायूँ(उप्र) 9997386782 wu 9870989072- हिन्दी संकल्प पाठ  हे परमात्मन् आपको नमन!!आपकी कृपा से

आज का वैदिक भजन

 आज का वैदिक भजन  ओ३म् म॒हे च॒न त्वाम॑द्रिव॒: परा॑ शु॒ल्काय॑ देयाम् । न स॒हस्रा॑य॒ नायुता॑य वज्रिवो॒ न श॒ताय॑ शतामघ ॥ ऋग्वेद 8/1/5 (पाठ भेद के साथ सामवेद 291 भी देखें) ऐश्वर्यवान् ईश्वर!!!, ना साथ तेरा छोड़ूँ  कोई लाख कोटि धन दे,  निज मुख ना तुझसे मोड़ूँ  ऐश्वर्यवान् ईश्वर!!!, ना साथ तेरा छोड़ूँ  कोई लाख कोटि धन दे,  निज मुख ना तुझसे मोड़ूँ  रत्नों से भर के पृथ्वी, या दे सुवर्ण चाँदी  ऐश्वर्य धन भरा जग, तेरी चरण रज से कम ही  मिले शरण तव प्रभु जी, संसार क्यों टटोलूँ ? कोई लाख कोटि धन दे,  निज मुख ना तुझसे मोड़ूँ  है व्यर्थ भोग साधन, यदि पाके तुझको भूलूँ  इससे तो बेहतर है, मैं हजार कष्ट झेलूँ  दु:ख-कष्ट-यातना हो, पर मन मैं तुझसे जोड़ूँ  कोई लाख कोटि धन दे,  निज मुख ना तुझसे मोड़ूँ  अनमोल कितना तू है, कैसे ये वाणी बोले ? ऐश्वर्य महिमा अगणित मन क्षुद्र कैसे तोले ? बदले में तेरे ईश्वर, कभी स्वार्थ का ना हो लूँ  कोई लाख कोटि धन दे,  निज मुख ना तुझसे मोड़ूँ  ना सत्य नियम तोड़ूँ, अज्ञानता को छोड़ूँ  ना डरूँ मैं मृत्यु भय से, ना भोग पीछे दौड़ूँ  माटी के इस जीवन में, तेरे प्रेम बीज बो लूँ  कोई लाख कोट

महर्षि दयानन्द ने अपनी मृत्यु से प्रमाणित कर दिया

 महर्षि दयानन्द सरस्वती   महर्षि दयानन्द ने अपनी मृत्यु से प्रमाणित कर दिया – अद्यैव वा मरण मस्तु युगांतरे वा  न्यायात् पथः प्रविचलन्ति पदं न धीराः !!  महर्षि दयानन्द का देहान्त हो गया ! इससे पहले भी १३ बार महर्षि की हत्या के प्रयास किए जा चुके थे ! महर्षि दयानन्द को स्वयं भी अच्छी तरह ज्ञात था कि वैदिक धर्म की व्याख्या के कारण ही, सत्य धर्म के प्रवचन के कारण ही , उनकी हत्या के प्रयास किए जाते हैं ! फिर भी उन्होंने धर्म पथ को, न्याय को कभी नहीं छोड़ा ! और इसी कारण उनको उनसठ साल की अल्पायु में ही शरीर छोड़ना पड़ा अन्यथा अखण्ड बाल ब्रह्मचारी, स्वस्थ शरीर धनी महर्षि दयानन्द का जीवन कहीं सवा सौ साल से अधिक ही होता !  निन्दन्तु नीति निपुणाः यदि वास्तुवन्तु,  लक्ष्मिः समाविशतु गच्छतु वा यथेष्टम् ! अद्यैव वा मरणमस्तु युगान्तरे वा ,  न्यायात् पथः प्रविचलन्ति पदं न धीराः !! महर्षि दयानन्द के जीवन का क्षण-क्षण इस नीति वाक्य को चरितार्थ करता है ! ऐसा लगता है जैसे नीति वाक्य की रचना महर्षि दयानन्द के जीवन की व्याख्या करने के लिए ही की गई हो ! महर्षि दयानन्द की विद्वत्ता , महर्षि दयानन्द के ब्रह्मचर्य

पंडित जसराज को आर्यसमाज ने बनाया था मीरासी मुसलमान से पंडित

पंडित जसराज को आर्यसमाज ने बनाया था मीरासी मुसलमान से पंडित पंडित जसराज पाकिस्तान की अमानत हो जाते अगर बहन रामप्यारी विश्नोई उन्हें भारत में नहीं रोकती? बंटवारे के समय जसराज (Pandit Jasraj) अपने परिवार के साथ पाकिस्तान जाने के लिए निकले थे लेकिन रास्ते में उन्हें अपने मामा के गांव की एक बहन मिली और इस तरह उनका पूरा जीवन ही बदल गया। यहीं ये वो जसराज से पंडित जसराज बने थे। @Dharmendra Kanwari धर्मेंद्र कंवारी. रोहतक  कई दशक पुरानी बात है जब पंडित जसराज (Pandit Jasraj) राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर के दीक्षांत समारोह में बतौर मुख्य अतिथि पहुंचे थे। हरियाणा के फतेहाबाद जिले के पीली मंदौरी से संबंध रखने वाले पंडित जसराज समारोह समाप्त होने के बाद अल्पाहार के समय एक युवती भीड को चीरती हुई उनके पास पहुंची। खुद का अलका के रूप में देते हुए उन्होंने चरण स्पर्श करते हुए पंडित जसराज को नानाजी प्रणाम कहा। पंडित जसराज को भी कुछ याद व समझ नहीं आया और उन्होंने पूछा कि बेटा अलका आपका नाम तो आपने मुझे बता दिया है लेकिन मैं आपको बारे में कुछ और नहीं जानता हूं कि मैं आपका नाना कैसे हुआ? तब अलका ने बताया कि

आर्यसमाज सत्य के प्रचार और असत्य को छुड़ाने का एक सार्वभौमिक आन्दोलन है

 ओ३म् “आर्यसमाज सत्य के प्रचार और असत्य को छुड़ाने का एक सार्वभौमिक आन्दोलन है” =========== आर्यसमाज विश्व का ऐसा एक अपूर्व संगठन है जो किसी मनुष्य व महापुरुष द्वारा प्रचारित मत का प्रचार नहीं करता अपितु सृष्टि में विद्यमान सत्य की खोज कर सत्य का स्वयं ग्रहण करता व उसके प्रचार द्वारा विश्व के सभी मनुष्यों से उसे अपनाने, ग्रहण व धारण करने का आग्रह करता है। ऋषि दयानन्द के जीवन पर दृष्टि डालने से ज्ञात होता है कि उन्होंने अपने परिवार में प्रचलित अतार्किक मूर्तिपूजा का इस कारण से विरोध किया था कि मूर्ति में अपने उपर ऊछल कूद करने वाले चूहों को भी हटाने व भगाने की शक्ति नहीं है। उन्होंने अपने पिता व पण्डितों से मूर्ति के ईश्वर होने व उसमें दैवीय शक्ति होने पर प्रश्न किये थे? तत्कालीन कोई विद्वान उनकी शंकाओं का समाधान नहीं कर सका था। वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि ईश्वर के नाम पर बनाई जाने वाली मूर्तियों व उनकी पूजा किये जाने पर भी उन मूर्तियों में ईश्वर की दैवीय शक्ति का किंचित न्यून अंश भी विद्यमान नहीं है। उसके बाद ऋषि दयानन्द ने तथा उनके अनुगामी सभी बुद्धिमान विवेकयुक्त मनुष्यों ने भी इस ब

आर्य ही आदिसंस्थापक, आदर्श मूल निवासी है भारतवर्ष के

 आर्य ही आदिसंस्थापक, आदर्श मूल निवासी है भारतवर्ष के ___________  अंग्रेजों ने भारत आगमन से ही सांस्कृतिक जहर घोलना शुरू कर दिया राम कृष्ण के वंशज भारत वासियों को  आर्य  द्रविड़ में बांट दिया कहा कि द्रविड़ आर्यों के भारत में आक्रमण से पूर्व उत्तर भारत में ही निवास करते थे आर्यों ने उन पर हमला कर उन्हें विंध्य के पार समुंद्र तटीय दक्षिण भारत की ओर धकेल दिया खुद उत्तर मध्य भारत पर शासन करने लगे| अंग्रेज इतिहासकारों के बाद भारत में आर्यों को आक्रांता विदेशी सिद्ध करने का बीड़ा वामपंथी भारतीय इतिहासकारों ने उठा लिया | एसएसटी, इतिहास  से संबंधित एनसीईआरटी की किताबों में तो  यदा-कदा आज भी आर्यों को विदेशी आक्रांता ही बताया जा रहा है इनकी चतुराई तो देखिए आर्यों को एक स्वर में विदेशी मानते हुए उनके उत्पत्ति स्थान पर सब भिन्न-भिन्न राय यह वामपंथी इतिहासकार देते है कोई कहता है आर्य इरान से आए तो कोई मध्य एशिया तो कोई पश्चिम एशिया तो कोई यूरोप से आर्यों के आगमन के सिद्धांत को बताता| अंग्रेजों ने यह झूठा जहरीला सिद्धांत हम पर शासन करने के लिए दिया कोई भी शासक अपने दास को अपने से श्रेष्ठ कैसे मान

महृषि दयानन्द जी एक महान वैज्ञानिक

 महृषि दयानन्द जी एक महान वैज्ञानिक ( ऋषि ,योगी )- विज्ञान की परिभाषा - पदार्थ को  कर्म ,प्रयोग -परिक्षण -प्रेक्षण ,उपासना से ज्यों का त्यों जानकर उसका इस तरह उपयोग हो जिससे समस्त प्राणिजगत का कल्याण  हो उसी को विज्ञान कहा जाता है।  जो इस तरह का अनुसन्धान करता है उसको वैज्ञानिक कहते है।              मानव जीवन को स्वस्थ ,धन ऐश्वर्ययुक्त ,सुखी रहने का मूल  आधार विज्ञान है। यदि मानव जीवन में विज्ञान नहीं होगा, तो वह रोगी , धनहीन , दुःखी रहेगा। वैदिक परम्परा में सभी को स्वस्थ ,धन ऐश्वर्ययुक्त ,सुखी रहने रहने के लिए  वैज्ञानिक ( ऋषि ,योगी ) बनना अनिवार्य शर्त है , ये परम्परा महाभारत में वैज्ञानिको  ( ऋषियो  ,योगी ) के मारे जाने के पश्चात्  कम  होते -होते सन  १८३५  तक लगभग ख़त्म हो गयी थी , और विज्ञान के नाम पर १८ पुराण में वेद विरुद्ध मिलावट करके  पशुबलि ,नरबलि ,पाखंड शुरू हो रहा था।              हजारो वर्षो बाद इस भूमि पर महृषि  दयानन्द जी  एक महान वैज्ञानिक ( ऋषि ,योगी ) हुए , उन्होंने वेद से  विज्ञान को समझा और फिर जो विज्ञान  के नाम पर पोपलीला चल रही थी उसको समाज को बताना शुरू किया।  जब

आक्रामकता में ही बचाव निहित है।

 आक्रामकता में ही बचाव निहित है। जय श्री राम 1 घर में हमेशा 3-4  कांच की बोतलें पेट्रोल से भरकर रखें और उनके साथ कम से कम 200 ग्राम रुई अवश्य रखें समय पर या जरूरत पड़ने पर काम में लिया जा सके ज्यादा नहीं करना होता केवल रुई को बोतल में डालें और आग लगाकर आप पर हमला कर रही भीड़ पर फेंक दें 2. अगर आप किसान हैं तो घर में पुराने फसल निकालने के औजार समय पर काम में ले सकते हैं जो कि आगे से बहुत तीखे होते हैं और भाले की तरह अच्छे काम दे सकते हैं यह आत्मरक्षा के लिए सबसे सुलभ औजार हैं। 3. अगर आप प्रतिदिन अपने समय में से महीने में 10 दिन अपनी सुरक्षा के लिए काम में लें और एक अच्छा धनुष के साथ साथ अगर 50 से 100 तीर आपके पास हो तो आप कम से कम 30 से 35 लोगों को रोकने में सक्षम होंगे और एक कालोनी में अगर ऐसे 10 लोग हैं तो आप खुद अंदाजा लगा लीजिए कि बेंगलुरु जैसी हत्यारी भीड़ कितने सेकंड में आप काबू कर पाएंगे। 4. ऐसी स्थिति में कभी भी डरे मत और अपने पड़ोसी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हो क्योंकि जब पड़ोसी का घर जलेगा तो आपका भी नहीं बचेगा 5. गाड़ी सबसे ज्यादा सुरक्षात्मक गिरा है आपका अगर और कुछ नही