aaj ka mantra

 अविधायामन्तरे वर्तमाना स्वयं धीरा: पण्डितम्मन्यमाना:।

जड्घन्यमाना: परियन्ति मूढ़ा अन्धेनैव नीयमाना यथान्धा:।। (मुण्डकोपनिषद् )

  💐 अर्थ:- अविधा के बीच में पड़े हुए अर्थात् अविधा से ग्रसित अपने को धीर ( ज्ञानी ) और पण्डित (चतुर ) मानने वाले मुर्ख ठोकरे खाते हुए सब ओर , इधर- उधर ऐसे भटकते है , और दुर्दशा को प्राप्त होते है जैसे अन्धे के द्वारा रास्ता दिखाया जाता हुआ अंधा ठोकरे खाता है , दुःख पाता है ।

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