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पंडित गुरुदत्त विद्यार्थी

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#पंडितगुरुदत्तविद्यार्थी (२६ अप्रैल १८६४ - १८९०), महर्षि दयानन्द सरस्वती के अनन्य शिष्य एवं कालान्तर में आर्यसमाज के प्रमुख नेता थे। उनकी गिनती आर्य समाज के पाँच प्रमुख नेताओं में होती है। २६ वर्ष की अल्पायु में ही उनका देहान्त हो गया किन्तु उतने ही समय में उन्होने अपनी विद्वता की छाप छोड़ी और अनेकानेक विद्वतापूर्ण ग्रन्थों की रचना की। #जीवनी अद्भुत प्रतिभा, अपूर्व विद्वत्ता एवं गम्भीर वक्तृत्व-कला के धनी पंडित गुरुदत्त विद्यार्थी का जन्म 26 अप्रैल 1864 को मुल्तान के प्रसिद्ध 'वीर सरदाना' कुल में हुआ था।[1] आपके पिता लाला रामकृष्ण फारसी के विद्वान थे। आप पंजाब के शिक्षा विभाग में झंग में अध्यापक थे। विशिष्ट मेधा एवं सीखने की उत्कट लगन के कारण वे अपने साथियों में बिल्कुल अनूठे थे। किशोरावस्था में ही उनका हिन्दी, उर्दू, अरबी एवं फारसी पर अच्छा अधिकार हो गया था तथा उसी समय उन्होंने 'द बाइबिल इन इण्डिया' तथा 'ग्रीस इन इण्डिया' जैसे बड़े-बड़े ग्रन्थ पढ़ लिये। कॉलेज के द्वितीय वर्ष तक उन्होंने चार्ल्स ब्रेडले, जेरेमी बेन्थम, जॉन स्टुअर्ट मिल जैसे पाश्चात्त्य व

पौराणिक आठ दिव्य बालक

     हमारे धर्म ग्रंथों में ऐसे अनेक बच्चों के बारे में बताया गया है जिन्होंने कम उम्र में ही कुछ ऐसे काम किए, जिन्हें करना किसी के बस में नहीं था। लेकिन अपनी ईमानदारी, निष्ठा व समर्पण के बल पर उन्होंने मुश्किल काम भी बहुत आसानी से कर दिए। आज हम आपको 8 ऐसे ही बच्चों के बारे में बता रहे हैं- 1. बालक ध्रुव         बालक ध्रुव की कथा का वर्णन श्रीमद्भागवत में मिलता है। उसके अनुसार ध्रुव के पिता का नाम उत्तानपाद था। उनकी दो पत्नियां थीं, सुनीति और सुरुचि। ध्रुव सुनीति का पुत्र था। एक बार सुरुचि ने बालक ध्रुव को यह कहकर राजा उत्तानपाद की गोद से उतार दिया कि मेरे गर्भ से पैदा होने वाला ही गोद और सिंहासन का अधिकारी है। बालक ध्रुव रोते हुए अपनी मां सुनीति के पास पहुंचा। मां ने उसे भगवान की भक्ति के माध्यम से ही लोक-परलोक के सुख पाने का रास्ता सूझाया।       माता की बात सुनकर ध्रुव ने घर छोड़ दिया और वन में पहुंच गया। यहां देवर्षि नारद की कृपा से ऊं नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र की दीक्षा ली। यमुना नदी के किनारे मधुवन में बालक ध्रुव ने इस महामंत्र को बोल घोर तप किया। इतने छोटे बालक की

कथा

      समुद्र के किनारे एक लहर आई वो एक बच्चे का चप्पल अपने साथ बहा ले गई। बच्चा रेत पर अंगुली से लिखता है "समुद्र चोर है"।         उसी समुद्र के एक दूसरे किनारे कुछ मछुआरे बहुत सारे मछली पकड़ लेते हैं।तब वह उसी रेत पर लिखता है "समुद्र मेरा पालनहार है"।       एक युवक समुद्र में डूब कर मर जाता है। उसकी मां रेत पर लिखती है "समुद्र हत्यारा है"। एक दूसरे किनारे एक गरीब बूढ़ा टेढ़ी कमर लिए रेत पर टहल रहा था। उसे एक बड़े सीप में एक अनमोल मोती मिल गया। वह रेत पर लिखता है "समुद्र दानी है" अचानक एक बड़ी लहर आती है और सारे लिखे को मिटा कर चली जाती है। लोग जो भी कहे समुद्र के बारे में लेकिन विशाल समुद्र अपनी लहरों में मस्त रहता है अपने उफान और शांति वह अपने हिसाब से तय करता है।        अगर विशाल समुंद्र बनना है तो किसी के निर्णय पर अपना ध्यान ना दें। जो करना है अपने हिसाब से करें। जो गुजर गया उसकी चिंता में ना रहे। हार जीत, खोना पाना, सुख-दुख, इन सबके चलते मन विचलित ना करें। अगर जिंदगी सुख शांति से ही भरा होता तो आदमी जन्म लेते समय रोता नहीं। जन

देश के पहले राष्ट्रपति की मौत

     देश के पहले राष्ट्रपति की मौत का सच पढ़ेगें तो चौक जाएंगे ।   सोमनाथ मंदिर के लिए डा. राजेंद्र प्रसाद व सरदार पटेल को बड़ी कीमत चुकानी पड़ी । ये जगजाहिर है कि जवाहर लाल नेहरू सोमनाथ मंदिर के पक्ष में नहीं थे। महात्मा गांधी जी की सहमति से सरदार पटेल ने सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का काम शुरु किया था।पटेल की मौत के बाद मंदिर की जिम्मेदारी के एम मुंशी पर आ गई। मुंशी नेहरू की कैबिनेट के मंत्री थे।गांधी और पटेल की मौत के बाद नेहरू का विरोध और तीखा होने लगा था। एक मीटिंग में तो उन्होंने मुंशी की फटकार भी लगाई थी।उन पर हिंदू-रिवाइवलिज्म और हिंदुत्व को हवा देने का आरोप भी लगा दिया।लेकिन, मुंशी ने साफ साफ कह दिया था कि सरदार पटेल के काम को अधूरा नहीं छोड़ेगे।के एम मुंशी भी गुजराती थे इसलिए उन्होंने सोमनाथ मंदिर बनवा के ही दम लिया।फिर उन्होंने मंदिर के उद्घाटन के लिए देश के पहले राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद को न्यौता दे दिया।उन्होंने इस न्यौते को बड़े गर्व से स्वीकार किया लेकिन जब जवाहर लाल नेहरू की इसका पता चला तो वे नाराज हो गए।      उन्होंने पत्र लिख कर डा. राजेंद्र प्रसाद को सो

डिग्रियां

     एक व्यक्ति खूब पढ़ा लिखा है, अनेक डिग्रियां उसके पास हैं, फिर भी वह व्यर्थ की बातों पर बहुत अधिक सोचता है। ऐसी बातें जिनका कोई महत्व नहीं है, उन्हीं बातों को बार बार सोचता है, और अनेक प्रकार की चिंता करता रहता है।      एक दूसरा व्यक्ति है, जो इतना अधिक पढ़ा लिखा नहीं है, परंतु वह यह समझता है कि कौन सी बात अधिक महत्वपूर्ण है और कौन सी उपेक्षा करने योग्य है!       इस ज्ञान के होने के कारण वह उपेक्षा करने योग्य छोटी-छोटी बातों पर कोई ध्यान नहीं देता, और जो महत्व की बातें हैं, उन पर पूरा चिंतन करता है, बुद्धिमत्ता से दूर तक सोचता है। उसके अनुसार भविष्य की योजनाएं बनाता है। सब काम पहले से विचार करके करता है। ऐसा व्यक्ति चाहे कम पढ़ा हुआ भी क्यों ना हो, वास्तव में वही ज्ञानी है। ऐसा व्यक्ति ही जीवन में सुखी हो सकता है।       ज्ञान का संबंध स्कूल कॉलेज की डिग्रियों से से नहीं है, वह तो ईमानदारी और बुद्धिमत्ता से हैं. बहुत पुस्तकें पढ़ लेने पर भी व्यक्ति अज्ञानी हो सकता है, रावण दुर्योधन और कंस इस बात के उदाहरण हैं। तो डिग्रियां आपके पास भले ही कम हों, आप कॉलेज के डिग्रीधा

इमली के औषधीय गुण

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इमली के औषधीय गुण  1. १० ग्राम इमली को एक गिलास पानी में भिगोकर,मसल-छानकर शक्कर मिलाकर पीने से सिर दर्द में लाभ होता है | 2. इमली को पानी में डालकर ,अच्छी तरह मसल- छानकर कुल्ला करने से मुँह के छालों में लाभ होता है| 3. १० ग्राम इमली को १ लीटर पानी में उबाल लें जब आधा रह जाए तो उसमे १० मिलीलीटर गुलाबजल मिलाकर,छानकर, कुल्ला करने से गले की सूजन ठीक होती है | 4. इमली के दस से पंद्रह ग्राम पत्तों को ४०० मिलीलीटर पानी में पकाकर ,एक चौथाई भाग शेष रहने पर छानकर पीने से आंवयुक्त दस्त में लाभ होता है |

मूर्ति पूजा अन्धविश्वास

प्रश्न:- जब ईश्वर सब जगह है,तो मूर्ति में भी है,फिर क्यों न मूर्ति को पूजा जाए।पूजा करने वाले पत्थर को नहीं पूजते उसमें व्यापक परमात्मा को ही पूजते हैं। उत्तर:- यह सत्य है कि ईश्वर सर्वत्र होने के कारण मूर्ति में भी व्यापक है।परन्तु यह आवश्यक नहीं है कि सब जगह होने से सब जगहों में और सब चीजों में उसकी पूजा हो सकती है।देखो ! पूजा करने वाला 'जीवात्मा' है।इसका उद्देश्य यह है कि ईश्वर से मेल हो जाये।मेल वहाँ होता है,जहाँ मिलने वाले दोनों मौजूद हों।मूर्ति में ईश्वर तो है पर वहाँ जीवात्मा तो है ही नहीं,जिसे ईश्वर से मिलना है।फिर मिलाप हो तो कैसे।       हाँ,हर मनुष्य के अपने ह्रदय में जीवात्मा और परमात्मा दोनों ही उपस्थित है।उपासक के अन्तःकरण में दोनों का मेल अवश्य हो सकता है।अतएव जिस मनुष्य को ईश्वर से मिलना है उसे अपने ह्रदय में ही (मन और इन्द्रियों को वश में करके) ईश्वर की पूजा करनी चाहिए। देखो!ईश्वर सब जगह व्यापक है,यह जानकर भी क्या सब स्थानों का जल पीने योग्य होता है।परमात्मा का वास शेर और साँप दोनों में है,मैं पूछता हूं क्या शेर और साँप के पास जाना उचित होता है?इसलिए

आधुनिक भारत का पहला आतंकवादी

  तारीख 23 दिसंबर 1926 । दिल्ली के चांदनी चौक इलाके में दोपहर के वक्त स्वामी श्रद्धानंद अपने घर में आराम कर रहे थे। वो बेहद बीमार थे। तब वहां पहुंचा एक शख्स। नाम अब्दुल रशीद। उसने स्वामी जी से मिलने का समय मांगा। स्वामी जी ने वक्त दे दिया। वो उनके पास पहुंचा उन्हे प्रणाम किया और देसी कट्टे से 4 गोलियां स्वामी जी के शरीर में आर-पार कर दीं। स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती ने वहीं दम तोड़ दिया। इस तरह भारत के पहले आतंकवादी अब्दुल रशीद ने इस कांड को अंजाम दिया ।     अब औवेसी बंधुओं , मिस्टर कमल हासन और सिकलुर गैंग के जूतनीय सदस्यों को जानना होगा कि इस महात्मा (गांधी) से भी पहले एक और महात्मा (स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती) की निर्मम हत्या हुई थी और इस राक्षसी कांड को अंजाम दिया था इस्लाम को मानने वाले अब्दुल रशीद ने ।      इस जघन्य कांड को जानने से पहले आपको ये जानना ज़रूरी है कि स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती थे कौन ? कितना दुखद है कि आज इस महान हस्ती का परिचय भी करवाना पड़ता है, क्योंकि हम तो अपने इतिहास और अपने अतीत से भागने लगे हैं। खैर, स्वामी श्रद्धानन्द 1920 के दौर में हिंदुओं के सबस

नास्तिकों को लेकर क्या गलतफहमी है

    सभी धर्म को त्याग मानवता, इंसानियत , के साथ साइंटिफिक टेंपर को जीवन में लाना ही नास्तिकता है !       क्योंकि सिर्फ साइंस ने ही मानव को वो सहूलियत दी है जिसे हमारा जीवन आसान हुआ है ! भविष्य में आने वाली पीढ़ियों भी साइंस के सहारे उन्नति कर सकती है ! हजार साल पुराना धर्म इंसान को इंसान न कह के, हिंदू , मुस्लिम , ईसाई ,  बताता रहा ! फिर धर्म के भीतर जाति , नस्ल , क्षेत्र , भाषा के आधार पर भेदभाव पैदा करता रहा! जबकि विज्ञान ने मानव को समानता दी ! धर्म के ग्रंथों पर ठेकेदारों के कब्जे रहा ! जो मन आया जैसे लिखें ,कब अपडेट किए , कब मिलावट किए , कब उन्हें ज्ञान मिला कि नहीं मिला, कौन सी कहानी किस आधार पे गढ़ दी वह आम आदमी को कभी पता नहीं चल पाई ! सिर्फ ठेकेदार ही धांधली करते रहे !      आम जनता तो सिर्फ शोषण का शिकार रही ! और धर्म के ठेकेदारों की बातों को ईश्वर , अल्लाह , गॉड की आज्ञा मानकर फॉलो करती रही , पूजा करती रही , नमाज पढ़ती रही , प्रार्थना करती रही , लेकिन ईश्वर ने कभी उनकी न सुनी तब भी जब रेप , क्राइम , निर्दोषों को मारा जाता रहा , तब भी नहीं जब एक गरीब पैसे की कमी से

विज्ञान और धर्म में अंतर जरूरत किसकी

         प्रकृति सबके लिए एक समान है अंतर इतना है कि विज्ञान प्रकृति के नियमों को प्रमाण सहित समझने में सफल रहा जबकि धर्म वाले नियमों को समझने की बजाय ईश्वर ,अल्लाह, गॉड को पैदा कर पल्ला झाड़ लिए , हर नियम के लिए इन तथाकथित ईश्वर को जिम्मेदार ठहरा कर अपनी अपनी दुकान चलाते रहे। जहां तक साइंस की बात है वह प्रकृति के नियमों को ढंग से समझने के कारण ही आपको यूट्यूब ,फोन, इंटरनेट ,बच्चों की जिंदगी, मेडिकल, हॉस्पिटल ,टीवी ,कार, ट्रेन , प्लेन दे सका।         आज विज्ञान की फैक्ट्री ही है जो कपड़े तक दे रही है पहने को। जिंदगी की औसत आयु 27 साल थी,1947 में, भुखमरी थी। जबकि आज औसत आयु 58 से 60 साल हो चुकी है इतनी जनसंख्या (population) के बाद भी भूखमरी से राहत है। बच्चे 10 पैदा होते थे बचते चार या पांच थे आज दो ही हो रहे हैं और दोनों ही बचा लेने में कामयाब रहा है साइंस।        धर्म वाले इतने पैगंबर अवतार का ढोल पीटने के बाद भी बिजली तक न बना सके। धर्म में इंसान को क्या दिया? कट्टरता जो बात बात में उत्पन्न कर हिंसा , दंगे में परिवर्तित होकर जान ले लेती है। जातिवाद, वर्गवाद ,गोत्रवाद ,भाषाव

जनसंख्या नियंत्रण कानून

 जनसंख्या नियंत्रण कानून      1940 में यदि लाहौर या कराँची में रहने वाले किसी हिंदू को बताया गया होता कि 7 वर्ष के भीतर वह अपना परिवार, संपत्ति, भूमि, सम्मान एवं माँ-बहन-बेटियों का शील; सब कुछ खोने जा रहा है, अपने ही बँटे देश में शरणार्थी होने जा रहा है तो वह खूब हँसता, बताने वाले को पागल कहता, कि नहीं ?       1960 में किसी कश्मीरी हिन्दू को यह बताया जाता कि कुछ एक दशक में उसका सब कुछ लुटने वाला है तो वह ऐसे सुनता जैसे कोई चुटकुला सुन रहा हो और अपने मुस्लिम मित्रों के साथ मिल कर भविष्यवाणी करने वाले का उपहास करता, है कि नहीं ?      यदि मैं आपसे कहूँ कि अगले 25-30 वर्षों में यही सब हमलोगों के साथ भी होने वाला है तो आप भी उसी लाहौरी, पंजाबी और कश्मीरी हिन्‍दू की भाँति मेरी हँसी उड़ायेंगे, हँसेंगे, है कि नहीं?तो हँसना आरम्भ करें ? मै थोड़ा उल्टा सोचता हूँ ..  किसी ने कहा, ऑर्डिनेन्स लाकर राम मंदिर बनाओ, किसी ने कहा, भाजपा राज्यसभा में बहुमत से आई तो राम मंदिर बनेगा... मुझे नहीं लगता इसमें कोई खुश होने वाली बात है, क्योंकि यदि मंदिर बन भी गया तो २०-३० साल बाद तोड़ दिया जाएगा

यम-नियम आदि योग के आठ अङ्गों का फल

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यम-नियम आदि योग के आठ अङ्गों का फल      सर्वप्रथम यमों का फल लिखते हैं―                                                               १. अहिंसा– अहिंसा धर्म का पालन करने वाले व्यक्ति के मन से समस्त प्राणियों के प्रति वैर भाव (द्वेष) छूट जाता है, तथा उस अहिंसक के सत्सङ्ग एवं उपदेशानुसार आचरण करने से अन्य व्यक्तियों का भी अपनी अपनी योग्यतानुसार वैर-भाव छूट जाता है। २. सत्य– जब मनुष्य निश्चय करके मन, वाणी तथा शरीर से सत्य को ही मानता, बोलता तथा करता है तो वह जिन-जिन उत्तम कार्यों को करना चाहता है, वे सब सफल होते हैं। ३. अस्तेय– मन, वाणी तथा शरीर से चोरी छोड़ देने वाला व्यक्ति, अन्य व्यक्तियों का विश्वासपात्र और श्रद्धेय बन जाता है। ऐसे व्यक्ति को आध्यात्मिक एवं भौतिक उत्तम गुणों व उत्तम पदार्थों की प्राप्ति होती है। ४. ब्रह्मचर्य– मन, वचन तथा शरीर से संयम करके, ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले व्यक्ति को, शारीरिक तथा बौद्धिक बल की प्राप्ति होती है। ५. अपरिग्रह– अपरिग्रह धर्म का पालन करने वाले व्यक्ति में आत्मा के स्वरुप को जानने की इच्छा उत्पन्न होती है, अर्थात् उसके मन म

अपना दिपक खुद बनो

मैं भी मंदिर बहुत गया हूँ।  मंदिर में रखी मूर्ति के भोग भी बहुत लगाये हैं।   भगवान के चरणों में रूपये भी बहुत रखे हैं। परंतु कभी किसी भगवान को मैंने भक्त लिए मंदिर के बंद दरवाजें खोलते हुए नहीं देखा। कभी किसी भगवान को मेरे द्वारा चढ़ाये गये भोग को सेवन करते नहीं देखा। कभी किसी भगवान को पानी पीते नहीं देखा। कभी किसी भगवान को नहाते नहीं देखा। कभी किसी भगवान को कपड़ें लेकर पहनते नहीं देखा। कभी किसी भगवान को टॉयलेट जाते नहीं देखा। कभी किसी भगवान को उसके हाथ से पैसे पकड़ते नहीं देखा। कभी किसी भगवान ने आशीर्वाद देने के लिए मेरे सिर पर हाथ नहीं रखा। कभी किसी भगवान ने मुझे गले नहीं लगाया। कभी किसी भगवान को मैंने मुझे दु:ख-दर्द, परेशानी में मुझे संभालते नहीं देखा। क्या देखा भगवान के नाम पर भोग खाते पुजारी को देखा। भगवान के नाम पर पैसे लेते पुजारी को देखा। भगवान के नाम पर कपड़ें लेते और पहनते पुजारी को देखा। भगवान के मंदिर में से पैसे उठाते पुजारी को देखा। भगवान के मंदिर में चढाये पैसों से मालामाल होते पुजारी को देखा। मैं बेवकूफ मंदिर गया भगवान को मानने और मान बैठा इंसान को। आस्था का सै

मन की प्रसन्नता के 7 महामंत्र

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मन की प्रसन्नता के 7 महामंत्र                                                 श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन के साथ-साथ हम सबको प्रसन्नता के 7 महामंत्र दिए हैं। यह महामंत्र निम्न प्रकार से हैं :-- 1--भयमुक्त हो जाएँ :—  मृत्यु के भय का त्याग करें क्योंकि आप यह देह नहीं बल्कि आत्मा हो और आत्मा अजर, अमर, अविनाशी है। मृत्यु तो केवल इस देह के वस्त्र बदलने की एक प्रक्रिया का नाम है। 2--खालीपन से मुक्त हो जाओ —  स्वयं को हमेशा किसी ना किसी कर्म में लगाए रखें और कभी भी उदासीन न रहें। 3--सबकी दुआएं लें :—  अपने सभी कर्मों में से फल की आसक्ति का त्याग कर उन्हें केवल लोक कल्याण की भावना से ही करें। 4--संशय बुद्धि बनने से बचें :—  संशय करने वाला व्यक्ति कहीं पर भी प्रसन्न नहीं रह पाता है। इसलिए इस संशय करने की बुरी आदत का त्याग कर अपने अंदर आत्मविश्वास की भावना पैदा करें। 5--भौतिक विषयों की आसक्ति का त्याग करें —  सच्ची प्रसन्नता और आनंद केवल आत्मा में ही रमण करने से मिलता है। इसलिए अपनी इंद्रियों को सब प्रकार के विषयों से हटाकर अपनी चेतना को अपन

पीपल (पिप्पली)

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 पीपल (पिप्पली)        जैसे हरड़-बहेड़ा-आंवला को त्रिफला कहा जाता है, वैसे ही सोंठ-पीपल-काली मिर्च को 'त्रिकटु' कहा जाता है। इस त्रिकटु के एक द्रव्य 'पीपल' की जानकारी इस प्रकार है।  पीपल को पीपर भी कहते हैं, यह छोटी और बड़ी दो प्रकार की होती है, जिनमें से छोटी ज्यादा गुणकारी होती है और यही ज्यादातर प्रयोग में ली जाती है।        विभिन्न भाषाओं में नाम : संस्कृत- पिप्पली। हिन्दी- पीपर, पीपल। मराठी- पिपल। गुजराती- पीपर। बंगला- पिपुल। तेलुगू- पिप्पलु, तिप्पली। फारसी- फिलफिल। इंग्लिश- लांग पीपर। लैटिन- पाइपर लांगम।        गुण : यह पाचक अग्नि बढ़ाने वाली, वृष्य, पाक होने पर मधुर रसयुक्त, रसायन, तनिक उष्ण, कटु रसयुक्त, स्निग्ध, वात तथा कफ नाशक, लघु पाकी और रेचक (मल निकालने वाली) है तथा श्वास रोग, कास (खांसी), उदर रोग, ज्वर, कुष्ठ, प्रमेह, गुल्म, बवासीर, प्लीहा, शूल और आमवात नाशक है।       कच्ची अवस्था में यह कफकारी, स्निग्ध, शीतल, मधुर, भारी और पित्तशामक होती है, लेकिन सूखी पीपर पित्त को कुपित करती है। शहद के साथ लेने पर यह मेद, कफ, श्वास, कास और ज्वर का नाश करने

आंचल

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आंचल                                                                                                          मां के आंचल में हर बच्चे का हमेशा जीवन सुरक्षित रहता है । मां की ममता स्नेह प्यार भी मां के आंचल में ही मिलता है । भूख लगे तो बच्चा रोता है मां आंचल का दूध पिलाती है । दूध पीकर बच्चा खुश होता है मां भी तो खुश हो जाती है । मां बच्चे के बीच का रिश्ता बहुत ही नाज़ुक होता है । बच्चे के हर सुख दुख का मां को ही हरदम होता है । उठने बैठने चलने में जब भी बच्चे को चोट भी लगती है । चोट लगे तो बच्चा रोता है और दर्द मां को भी होता है । बच्चे को उठाती सीने से लगाती चूमती और गले से भी लगाती आंचल का भी वो दूध पिलाती । बच्चे की चोट से दुखी भी होती । मां और बच्चे का स्नेह प्यार देखकर मन खुश हो जाता है । अपने बचपन की यादों में कुछ पल को मन खो जाता है ।

संसार का भय कैसे मिटे

  संसार का भय कैसे मिटे              जैसे किसी मकान में चारों ओर अंधेरा है । कोई कह देता है कि मकान में प्रेत रहते हैं, तो उसमें प्रेत दीखने लग जाते हैं अर्थात उसमें प्रेत होने का वहम हो जाता है । परन्तु किसी साहसी पुरुष के द्वारा मकान के भीतर जाकर प्रकाश कर देने से अँधेरा और प्रेत - दोनों ही मिट जाते हैं।अँधेरे में चलते समय मनुष्य धीरे-धीरे चलता है कि कहीं ठोकर न लग जाय, कहीं गड्ढा न आ जाय। उसको गिरने का और साथ ही बिच्छू, साँप, चोर आदि का भय भी लगा रहता है ।    परन्तु प्रकाश होते ही ये सब भय मिट जाते हैं। ऐसे ही सर्वत्र परिपूर्ण प्रकाशस्वरूप परमात्मा से विमुख होने पर अन्धकारस्वरूप संसार की स्वतन्त्र सत्ता सर्वत्र दीखने लग जाती है और तरह-तरह के भय सताने लग जाते हैं। परन्तु वास्तविक बोध होनेपर संसार की स्वतन्त्र सत्ता नहीं रहती और सब भय मिट जाते हैं।     एक प्रकाशस्वरूप परमात्मा ही शेष रह जाता है । अंधेरेको मिटाने के लिये तो प्रकाश को लाना पड़ता है, परमात्मा को कहीं से लाना नहीं पड़ता।  वह तो सब देश, काल, वस्तु, व्यक्ति, परिस्थिति आदि में ज्यों-का-त्यों  परिपूर्ण है । इसलिये संस

आजादी का महानायक कौन

आजादी का महानायक कौन कम्युनिस्टों के बारे मे नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के विचार- 1- 5 जनवरी 1928 को कलकत्ता में अखिल भारतीय युवक सम्मेलन में उन्होंने कहा- मैं उन लोगों में से नहीं हूं जो जो आधुनिकता के जोश में अतीत के गौरव को भूल जाते हैं। हमें भूतकाल को अपना आधार बनाना है। भारत की संस्कृति को सुनिश्चित धाराओं में विकसित करते जाना है। विश्व को देने के लिए हमारे पास दर्शन, साहित्य, कला आदि बहुत कुछ है। हमें नए और पुराने का मेल करना है।       उनका कहना था कि व्यक्ति केवल रोटी खाकर ही जीवित नहीं रहता, उसके लिए नैतिक और आध्यात्मिक खुराक की भी आवश्यकता होती है।कम्युनिज्म किसी भी ढंग से राष्ट्रवाद के बारे में सहानुभूति नहीं रखता और न ही यह भारतीय आंदोलन को एक राष्ट्रीय आंदोलन मानता है। 2- साम्यवाद तथा फासिज्म के बारे में सुभाष बाबू का कहना था- दोनों में समानताएं है, दोनों व्यक्ति पर राज्य की प्रभुता को मानते है। दोनों ही पार्लियामेंटरी प्रजातंत्र को नकारते है। दोनों पार्टी शासन को, पार्टी के अधिनायकवाद को मानते है तथा समस्त असहमत अल्पसंख्यकों के दमन के पक्ष में है। (शिशिर कु

क्या विज्ञान पृथ्वी के विनाश का कारण बनेगा

प्रश्न-   क्या विज्ञान पृथ्वी के विनाश का कारण बनेगा ? उत्तर-   धार्मिको की जनसंख्या में बढ़ोतरी ही सिर्फ इसका कारण बनेगा और बन रहा है ! जबकि विज्ञान में जनसंख्या रोकने के लिए निरोध से लेकर नसबंदी सब कुछ बनाया ! लेकिन धर्मों के मूर्ख ठेकेदारों के तथाकथित अल्लाह, ईश्वर , को जनसंख्या पर रोक रास नहीं आया ! जन संख्या बढ़ाकर भोझ बन गए ! फिर पेट भी फटे ! वायु भी प्रदूषित हुई ! पानी के लाले भी पड़ गए ! कहा भी जाता है कि बंदर के हाथ उस्तरा मिल जाए तो वह कहां कहां उत्पात मचाएगा वो सब जानते हैं ! यही हुआ धार्मिक मजहबीयो के साथ दिन रात नमाज पढ़कर , मंदिर का घंटा बजाकर. प्रेयर करके, मूर्खता प्रदर्शित करने वालों को, विज्ञान केसे उपयोग करना है, समझ नहीं आया ! जिन वैज्ञानिकों की रेशनल सोच के कारण उन्हें यह जिंदा जला देते थे! तडीपार कर देते थे ! उनके बनाए उपकरणों को बंदर के हाथ में उस्तरा जैसा इस्तेमाल करने लगे ! फिर बैलेंस तो बिगड़ना ही था ! साइंस में लाउड स्पीकर बनाया सुविधा के लिए! धर्मीको ने उसे उसे मस्जिदों मंदिरों में टांग कर ! शादी विवाह में , उत्सव में इस्तेमाल कर ध्वनि प्रदूषण की गंद मच

क्या वेदों में विज्ञान था

प्रश्न-  क्या वेदों में विज्ञान था? या है? उत्तर-  भारत के 3 पथभ्रष्टको मैं शंकराचार्य (8 वीं सदी) तुलसीदास (16 वीं सदी ) तथा मूल शंकर तिवारी (20वीं सदी) का नाम सर्वोच्च है ! इतिहास के तीन काले पन्नों ने उपलब्धियों की बजाए ! अवैज्ञानिक सोच, नफरत , गपौडा पंथी की जो सोच पैदा की , उससे वो कालखंड पूरी तरह से न सिर्फ बर्बाद हुआ! बल्कि देश भी गर्त में गया ! शुरू के 2 तो इतिहास बन गए ! तीसरा भारतीयों को अवैज्ञानिक बनाने में जी जान से जुटा है!  मूल शंकर तिवारी उर्फ दयानंद सरस्वती के फॉलो वर का ! आज यह हाल है की इनका सारा विज्ञान मंत्रों में है! मंत्रों से गपोडा की विज्ञान टपका रहा है ! कोई बीमार हो , कहीं आग लगी हो, कहीं प्रदूषण हो , कहीं बारिश ना हो रहा हो , कहीं सूखा पड़ा हो, किसी को मंत्री बनाना हो , या संतरी , बच्चा ना हो रहा हो,  इन्हें बुला लो , हवन करा लो , तुरंत इधर वेद मंत्र गपोडा , उधर सारी प्रॉब्लम छूमंतर , कुछ गपोड़े तो, ऑटोमेटिक रेडिएशन हो या हानिकारक गैस रिसाव ! सारे प्रदूषण से दूर करने का अचूक दवा हवन और गोमूत्र बताते हैं! एक ने तो भोपाल गैस कांड में हवन से एक की जान बचाने

संविधान दिवस

संविधान दिवस           भारतीय संविधान पूरी दुनिया में शायद इकलौता ऐसा संविधान है जिसका सीधा टकराव अपने ही सामाजिक मूल्यों से रहा है जैसे हमारा संविधान सभी को बराबर मानता है लेकिन समाज एक दूसरे को छोटा-बड़ा मानता है,संविधान छुआ छूत को अपराध मानता है लेकिन समाज उसे अपनी प्यूरिटी को बचाये रखने के लिए ज़रूरी मानता है।          संविधान वैज्ञानिक सोच विकसित करने की बात करता है लेकिन समाज कर्मकांड को अपना प्राण मानता है। इसतरह हम कह सकते हैं कि सभी तरह के जातीय, साम्प्रदायिक और लैंगिक संघर्ष में शामिल लोग संविधान के दोनों छोर पर पाए जाने वाले लोग हैं। और ये संघर्ष दरअसल संविधान को न मानने और मानने वालों के बीच का ही संघर्ष है।          मसलन हिंसा के शिकार दलित चाहते हैं कि उनको संविधान प्रदत अधिकार मिले और हमलावर चाहते हैं कि उन्हें दलितों को पीटने का संविधानपूर्व का पारंपरिक अधिकार अभी भी मिलना जारी रहे। इसी तरह साम्प्रदायिक हिंसा के शिकार मुसलमान चाहते हैं कि देश संविधान में वर्णित धर्मनिरपेक्ष मूल्यों से चले लेकिन उनके हमलावर चाहते हैं कि देश संविधान विरोधी संघ के इशारे पर चले