नास्तिकों को लेकर क्या गलतफहमी है

    सभी धर्म को त्याग मानवता, इंसानियत , के साथ साइंटिफिक टेंपर को जीवन में लाना ही नास्तिकता है !

      क्योंकि सिर्फ साइंस ने ही मानव को वो सहूलियत दी है जिसे हमारा जीवन आसान हुआ है ! भविष्य में आने वाली पीढ़ियों भी साइंस के सहारे उन्नति कर सकती है ! हजार साल पुराना धर्म इंसान को इंसान न कह के, हिंदू , मुस्लिम , ईसाई ,  बताता रहा ! फिर धर्म के भीतर जाति , नस्ल , क्षेत्र , भाषा के आधार पर भेदभाव पैदा करता रहा!
जबकि विज्ञान ने मानव को समानता दी ! धर्म के ग्रंथों पर ठेकेदारों के कब्जे रहा ! जो मन आया जैसे लिखें ,कब अपडेट किए , कब मिलावट किए , कब उन्हें ज्ञान मिला कि नहीं मिला, कौन सी कहानी किस आधार पे गढ़ दी वह आम आदमी को कभी पता नहीं चल पाई ! सिर्फ ठेकेदार ही धांधली करते रहे !

     आम जनता तो सिर्फ शोषण का शिकार रही ! और धर्म के ठेकेदारों की बातों को ईश्वर , अल्लाह , गॉड की आज्ञा मानकर फॉलो करती रही , पूजा करती रही , नमाज पढ़ती रही , प्रार्थना करती रही , लेकिन ईश्वर ने कभी उनकी न सुनी तब भी जब रेप , क्राइम , निर्दोषों को मारा जाता रहा , तब भी नहीं जब एक गरीब पैसे की कमी से इलाज के बिना दम तोड़ देता है , तब भी ईश्वर नहीं सुनता चाहे वह मरने वाला ईश्वर का कितना भी बड़ा भक्त हो , नमाजी हो , या प्रार्थी हो , तब भी नहीं जब उनके ठेकेदार तक को मार दिया जाता रहा!

     लेकिन साइंस ने सब को एक समान सहूलियत दी , बिना किसी भेदभाव के , बिना किसी उच्च नीच के , साइंस सभी पढ़ सकते हैं , कंट्रीब्यूशन कर सकते हैं , कंट्रीब्यूटर बन सकते हैं ! आज जब साइंस से हमें यह उपलब्धि दी है तो निश्चित ही अपने आने वाली पीढ़ियों के लिए साइंटिफिक टेंपर की जरूरत है, ना कि धर्म विशेष की !
क्योंकि रोटी के लिए रोजगार की जरूरत होती है , और रोजगार तो सिर्फ साइंस ही देता है !

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