आज का वैदिक भजन
आज का वैदिक भजन
ओ३म् म॒हे च॒न त्वाम॑द्रिव॒: परा॑ शु॒ल्काय॑ देयाम् ।
न स॒हस्रा॑य॒ नायुता॑य वज्रिवो॒ न श॒ताय॑ शतामघ ॥
ऋग्वेद 8/1/5
(पाठ भेद के साथ सामवेद 291 भी देखें)
ऐश्वर्यवान् ईश्वर!!!, ना साथ तेरा छोड़ूँ
कोई लाख कोटि धन दे,
निज मुख ना तुझसे मोड़ूँ
ऐश्वर्यवान् ईश्वर!!!, ना साथ तेरा छोड़ूँ
कोई लाख कोटि धन दे,
निज मुख ना तुझसे मोड़ूँ
रत्नों से भर के पृथ्वी, या दे सुवर्ण चाँदी
ऐश्वर्य धन भरा जग, तेरी चरण रज से कम ही
मिले शरण तव प्रभु जी, संसार क्यों टटोलूँ ?
कोई लाख कोटि धन दे,
निज मुख ना तुझसे मोड़ूँ
है व्यर्थ भोग साधन, यदि पाके तुझको भूलूँ
इससे तो बेहतर है, मैं हजार कष्ट झेलूँ
दु:ख-कष्ट-यातना हो, पर मन मैं तुझसे जोड़ूँ
कोई लाख कोटि धन दे,
निज मुख ना तुझसे मोड़ूँ
अनमोल कितना तू है, कैसे ये वाणी बोले ?
ऐश्वर्य महिमा अगणित मन क्षुद्र कैसे तोले ?
बदले में तेरे ईश्वर, कभी स्वार्थ का ना हो लूँ
कोई लाख कोटि धन दे,
निज मुख ना तुझसे मोड़ूँ
ना सत्य नियम तोड़ूँ, अज्ञानता को छोड़ूँ
ना डरूँ मैं मृत्यु भय से, ना भोग पीछे दौड़ूँ
माटी के इस जीवन में, तेरे प्रेम बीज बो लूँ
कोई लाख कोटि धन दे,
निज मुख ना तुझसे मोड़ूँ
रचनाकार व स्वर :- पूज्य श्री ललित मोहन सहानी जी – मुम्बई
शीर्षक :- तेरा कभी साथ ना छोड़ूँ
तर्ज :- लाजून हासणे अन् हासून हे पहाणे लाजून हासणे अन् हासून हे पहाणे, मी ओळखून आहे सारे तुझे बहाणे
क्षुद्र = तुच्छ, अल्प, कृपण, दरिद्र
यातना = वेदना, अधिक कष्ट
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