महर्षि दयानंद जी और स्वामी विवेकानंद जी

 महर्षि दयानंद जी और स्वामी विवेकानंद जी

भावेश मेरजा

आर्य समाज के कई विद्वानों ने अपने अपने ढंग से महर्षि दयानंद जी तथा स्वामी विवेकानंद जी का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत करती हुए पुस्तकें लिखीं हैं। डॉ. भवानीलाल भारतीय रचित "महर्षि दयानंद और स्वामी विवेकानंद" तथा स्वामी विद्यानंद सरस्वती की "गोस्पेल ऑफ स्वामी विवेकानंद" तथा "स्वामी विवेकानंद के विचार" आदि एतद् विषक पुस्तकें विशेष उल्लेखनीय हैं। आर्य समाज के लोग आज भी इन दोनों महापुरुषों के विचारों का तुलनात्मक अध्ययन करते हुए लेख लिखते रहते हैं और सोशल मीडिया पर भी इस सम्बन्ध में विचार सामग्री पढ़ने को मिलती है ।

स्वामी विवेकानंद जी और महर्षि दयानंद जी की जाने वाली यह तुलना कई अंशों में तथ्यात्मक भी होती है।










महर्षि दयानंद जी वेदज्ञ थे और वैदिक शास्त्रों का उनका अध्ययन असाधारण था। विवेकानंद जी ऐसे प्रौढ़ विद्वान् नहीं थे। वे जीवन के अंत तक यही निश्चित नहीं कर सके कि वास्तविक वेदांत का स्वरूप क्या है।

विवेकानंद जी ने रामकृष्ण मिशन की स्थापना कर एक प्रकार से अपने गुरु जी के नाम से एक नवीन संप्रदाय ही स्थापित किया। जबकि महर्षि दयानंद जी ने वेदों के आधार पर आर्य समाज जैसे जनतांत्रिक आंदोलन को स्थापित किया।

रामकृष्ण मिशन में रामकृष्ण परमहंसदेव जी को अवतार श्रेष्ठ माना जाता है और उनकी मूर्तियों की पूजा की जाती है। आर्य समाज महर्षि दयानंद जी को आप्त पुरुष या ऋषि मानते हुए भी उसे तत्वत: एक जीवात्मा या मनुष्य ही मानता है। आर्य समाज में महर्षि दयानंद जी के चित्रों या मूर्तिओं की पूजा नहीं की जाती है। महर्षि दयानंद जी की शिक्षा एवं सिद्धांत इतने सुस्पष्ट एवं तार्किक हैं कि उनके अनुयायियों में गुरुडम या अंध गुरुभक्ति के भाव पनप ही नहीं सकते। मनुष्य और ईश्वर के विवेक को आर्य समाज के लोग बहुत अच्छी तरह से जानते हैं।

विवेकानंद जी के मस्तिष्क में वैदिक धर्म की श्रेष्ठता सुदृढ़ नहीं थी, इसलिए वे ब्रह्मोसमाज आदि की तरह सभी मत पंथों में से सत्य को ग्रहण करने के पक्षधर थे। जबकि महर्षि दयानंद जी वेदोक्त धर्म की सर्वश्रेष्ठता को अनुभव कर चुके थे, इसलिए उन्होंने सभी मत पंथ संप्रदायों को वेदों की ओर आने का प्रस्ताव किया। इतना ही नहीं, इस्लाम एवं ईसाइयत के अनुयायियों को भी उन्होंने वेदोक्त धर्म का स्वीकार करने का न्योता दिया। विवेकानंद जी में यह बात नहीं थी। उनकी कई बातें पौराणिकता से ओतप्रोत हैं। महर्षि दयानंद जी के सिद्धांत वेद तथा वैदिक ग्रंथों के प्रमाणों से सुभूषित और युक्तिपूर्वक एवं तार्किक धरातल पर आश्रित हैं।

इसलिए ये दोनों प्रसिद्ध संन्यासियों के बीच में जो भिन्नताएं दिखाई देती हैं उन्हें ठीक से समझना आवश्यक है।

किन्हीं कारणों से वर्तमान हिंदू समाज विवेकानंद जी से अत्यधिक प्रभावित है और महर्षि दयानंद जी का तथ्यात्मक विश्लेषण और यथार्थ मूल्यांकन अभी तक नहीं कर पाया है। जिस दिन वह महर्षि दयानंद जी के वैदिक तत्त्वदर्शन एवं उनके क्रांतिकारी संदेश का तथ्यात्मक अनुशीलन कर उनकी श्रेष्ठता से स्वयं को परिचित करेगा तब उसे वास्तविक वैदिक धर्म का परिचय होगा और वह भी "कृण्वन्तो विश्वमार्यम्" के आदर्श मार्ग पर चलने को तैयार होगा। परंतु इसके लिए आर्य समाज को बहुत पुरुषार्थ करना होगा।


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