राम सेतु -Adam Bridge




राम सेतु -Adam Bridge

करोड़ों हिंदुओं की आस्था के प्रतीक राम सेतु पर अमेरिकी साइंस चैनल ने एक बड़ा खुलासा किया है। साइंस चैनल का दावा है कि राम सेतु मानव निर्मित है यानी कि इसका निर्माण इंसानों ने किया है। अबतक ये माना जाता था कि रामसेतु प्राकृतिक है लेकिन तमाम कयासों पर इस साइंस चैनल ने विराम लगा दिया है। खास बात ये है कि इस साइंस चैनल ने जो समय रामसेतु के निर्माण का बताया है करीब-करीब वही समय हिंदू मायथोलॉजी से भगवान राम का बताया जाता है।

अमेरिकन भू-वैज्ञानिकों के हवाले से एनसिएंट लैंड ब्रिज नाम के एक प्रोमो में ऐसा दावा किया गया है कि भारत में रामेश्वरम के नजदीक पामबन द्वीप से श्रीलंका के मन्नार द्वीप तक लंबी बनी पत्थरों की यह श्रृंखला मानव निर्मित है। साइंस चैनल के मुताबिक...
#भू-वैज्ञानिकों ने नासा की तरफ से ली गई तस्वीर को प्राकृतिक बताया है
#वैज्ञानिकों ने विश्लेषण में पाया कि 30 मील लंबी राम सेतु मानव निर्मित है
#भू-वैज्ञानिकों का ये भी दावा है कि जिस सैंड पर यह पत्थर रखा हुआ है ये कहीं दूर जगह से यहां पर लाया गया है।।

#ट्वीट --

Science Channel

@ScienceChannel
Are the ancient Hindu myths of a land bridge connecting India and Sri Lanka true? Scientific analysis suggests they are. #WhatonEarth
10:10 PM - Dec 11, 2017

भूविज्ञानी ऐलन लेस्टर के मुताबिक, 'हिंदू धर्म में भगवान राम द्वारा ऐसे ही एक सेतु के निर्माण का जिक्र है। इस पर शोध करने पर पता चला कि बलुई धरातल पर मौजूद ये पत्थर कहीं और से लाए गए हैं।' हालांकि ये पत्थर कहां से और कैसे आए, यह आज भी एक रहस्य है।

#विज्ञानक्याकहता_है --

पुरातत्वविद चेल्सी रोज़ कहती हैं, 'जब हमने इन पत्थरों की उम्र पता की, तो पता चला कि ये पत्थर उस बलुई धरातल से कहीं ज्यादा पुराने हैं, जिस पर ये मौजूद हैं।' ये पत्थर करीब 7000 साल पुराने हैं, वहीं जिस बलुई धरातल पर ये मौजूद हैं वह महज 4000 साल पुराना है।
यह पुल 48 किलोमीटर (30 मील) लम्बा है तथा मन्नार की खाड़ी (दक्षिण पश्चिम) को पाक जलडमरूमध्य (उत्तर पूर्व) से अलग करता है। कुछ रेतीले तट शुष्क हैं तथा इस क्षेत्र में समुद्र बहुत उथला है, कुछ स्थानों पर केवल ३ फुट से 30 फुट (1 मीटर से 10 मीटर) जो नौगमन को मुश्किल बनाता है।

#आस्थाक्याकहती_है --

पूरे भारत, दक्षिण पूर्व एशिया और पूर्व एशिया के कई देशों में हर साल दशहरा पर और राम के जीवन पर आधारित सभी तरह के नात्याचित्रो में सेतु बंधन का जिक्र किया जाता है। राम के बनाए इस पुल का वर्णन रामायण में तो है ही, महाभारत में भी श्री राम के नल सेतु का जिक्र आया है। कालीदास की रघुवंश में सेतु का वर्णन है। स्कंद पुराण (तृतीय, 1.2.1-114), विष्णु पुराण (चतुर्थ, 4.40-49), अग्नि पुराण (पंचम-एकादश) और ब्रह्म पुराण (138.1-40) में भी श्री राम के सेतु का जिक्र किया गया है। एन्साइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका में इसे एडम्स ब्रिज के साथ-साथ राम सेतु कहा गया है।

वाल्मीकी रामायण में --
नलर्श्चके महासेतुं मध्ये नदनदीपते:। स तदा क्रियते सेतुर्वानरैर्घोरकर्मभि:।।

रावण की लंका पर विजय पाने में समुद्र पार जाना सबसे कठिन चुनौती थी।

अब्रवीच्च हनुमांर्श्च सुग्रीवर्श्च विभीषणम। कथं सागरमक्षोभ्यं तराम वरूणालयम्।। सैन्यै: परिवृता: सर्वें वानराणां महौजसाम्।।

(हमलोग इस अक्षोभ्य समुद्र को महाबलवान् वानरों की सेना के साथ किस प्रकार पार कर सकेंगे ?) (6/19/28)

#वैदिकसाहित्यमेंपुलका_वर्णन  --

वाल्मीक रामायण में वर्णन मिलता है कि पुल लगभग पांच दिनों में बन गया जिसकी लम्बाई सौ योजन थी और चौड़ाई दस योजन।

दशयोजनविस्तीर्णं शतयोजनमायतम्। ददृशुर्देवगन्धर्वा नलसेतुं सुदुष्करम्।। (6/22/76)

सेतु बनाने में हाई टेक्नालाजी प्रयोग हुई थी इसके वाल्मीक रामायण में कई प्रमाण हैं, जैसे -

पर्वतांर्श्च समुत्पाट्य यन्त्नै: परिवहन्ति च।

(कुछ वानर बड़े-बड़े पर्वतों को यन्त्रों के द्वारा - समुद्रतट पर ले आए)। इसी प्रकार एक अन्य जगह उदाहरण मिलता है -

 सूत्राण्यन्ये प्रगृहृन्ति हृाायतं शतयोजनम्। (6/22/62)

(कुछ वानर सौ योजन लम्बा सूत पकड़े हुए थे, अर्थात पुल का निर्माण सूत से -सिधाई में हो रहा था।)

योजन से अक्सर लोग भ्रमित हो जाते है उनके लिए ये जान लीजिये की भारत के विभीन्न क्षेत्रो में बीघा(जमीन नापने के पैमाना) अलग अलग क्षेत्रफल का होता है मतलब अलग अलग जगहों पे अलग अलग मानक है वैसे ही योजन का भी अलग अलग मान है और वैज्ञानिकों ने वही आंकड़ा दिया है इस पुल के लम्बाई चौड़ाई का जो वाल्मीकि रामायण में वर्णित है ।।

#निष्कर्ष --

रामसेतु मानव निर्मित है और पौराणिक मान्यताओं कथ्यों से मेल खाते है जो बताते है कि भगवान राम ने इस पुल का निर्माण करवाया ताकि लंका जाया जा सके ।।

 मान्यता के अनुसार रामजी आज से 17 लाख, 50 हजार साल पहले हुए थे। संयोगवश, इस सेतु की आयु भी 17 लाख, 50 हजार साल ही आंकी गयी है। हजारों वर्षों बाद लहरों के आघात से “जमे-जमाये और बँधे हुए” ये पत्थर अपनी जगह से खिसक कर गहराई में डूब गये होंगे, जबकि मूल प्राकृतिक संरचना ज्यों की त्यों बनी रही होगी। समय के साथ समुद्र का जलस्तर भी बढ़ गया होगा। तब से इस प्राकृतिक संरचना का ज्यादातर हिस्सा जल के नीचे ही है।

रामसेतु मानव निर्मित है ये बात जो वैज्ञानिक आज बता   रहे है और समस्त दुनिया उनकी पीठ थपथपा रही है ।। उसे भारत का बच्चा बच्चा जानता और मानता है यदि ये मना भी करे कि ये प्राकृतिक रचना है तो भी हमारी आस्था अटल है ।।

#विशेष --

जियोलॉजिकल सर्वे ऑव इण्डिया के पूर्व निदेशक डॉ. बद्रीनारायण (जिनके नेतृत्व में 'सेतुसमुद्रम शिपिंगचैनल प्रोजेक्ट' के भूगर्भशास्त्रीय पक्षों का अध्ययन किया गया था) के अनुसार, रामसेतु एक प्राकृतिक संरचना है, जिसका ऊपरी हिस्सा मानव-निर्मित है, क्योंकि समुद्री बालू के बीच में पत्थर, मूंगे की चट्टानें और बोल्डर पाये गये। इस अध्ययनमें न केवल पुल के दोनों किनारों को अपेक्षाकृत ऊँचा पाया गया था, बल्कि यहाँ मेसोलिथिक-माइकोलिथिक उपकरण भी पाये गये थे, जिससे पता चलता है कि 8000-9000 साल पहले इस पुल से होकर सघन यातायात होता था। 4,000 साल पहले तक, यानि रामजी के लौटने के बाद भी 3,000 वर्षों तक इस पुल से होकर आवागमन होता था- ऐसे सबूत पाये गये।

नेशनल इंस्टीच्यूट ऑव ओस्नोग्राफी, गोआ के वैज्ञानिक डॉ. राजीव निगम कहते हैं कि 7000-7200 साल पहले समुद्र का जलस्तर आज के मुकाबले 3 मीटर नीचा था। संयोग से, आज इस पुल का ज्यादातर हिस्सा समुद्र की सतह से तीन मीटर ही नीचे है। यानि रामजी के जन्म की 5114 ईस्वीपूर्व वाली तारीख अगर सही है, तो रामजी ने जब श्रीलंका पर चढ़ाई की होगी, तब इस पुलका ज्यादातर हिस्सा पानी से ऊपर ही रहा होगा- कुछ डूबे हुए हिस्सों पर ही पत्थरोंको जमाकर प्रशस्त पुल तैयार किया गया होगा।

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