भाषाशिक्षण के चार चरण ————————-

  भाषाशिक्षण के चार चरण

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विचार-विनिमय का उत्तम 
माध्यम होती है भाषा ।
सम्बन्धों को सुदृढ़ करने का
सर्वोत्तम साधन भाषा ।।
भाषा कभी नहीं होती है
निजी सम्पदा जग में।
यह सम्पत्ति समाज की है
हम समाज से लेते ऋण में ।।
भाषाशिक्षण कैसे होता है ?
करें आज इस पर विचार ।
सुनना, बोलना,लिखना,पढ़ना 
भाषाशिक्षण के चरण चार।।
इन चारों चरणों पर करते  हैं
क्रमश:सोदाहरण विचार।
“श्रवण” अर्थात् ठीक से सुनना
भाषाशिक्षण का प्रथम चरण  ।।
उच्चरित शब्द को बडे ध्यान से
कान लगाकर करें श्रवण ।
वक्ता ने कहा “दागो” तो फिर
दागो को “ दागो “ ही सुनना है।।
सुना अगर “दागो” को “भागो” 
तो अर्थ का अनर्थ ही हो जाना है ।
शिक्षण का द्वितीय चरण है भाषण
जिसका अर्थ है शुद्ध उच्चारण ।।
शुद्ध सुनें, फिर शब्द शुद्ध ही बोलें।
“शंकर”को “शंकर” ही बोलें
“संकर” कभी नहीं बोलें ।।”
वन को बन,भाषा को भासा
जोशी को जोसी कभी नहीं बोलें।
शिक्षण का तृतीय चरण है लेखन
लेखन सदा शुद्ध हो,ध्यान रखें।।
मात्रादोष नहीं हो,सतर्क रहें।
“ठीक” शब्द को ठीक लिखें।।
“ठिक” नहीं भूलकर भी लिखें
“ठिक” लिखा एक शिक्षक ने ।
मैंने लिखकर “ठीक”दिखाया 
ठीक शब्द तो लिखें ठीक से ।।
लिखना “ठीक “ सिखाया 
शुद्धलेखन की पद्धति का ।
शुभारम्भ फिर करना होगा 
अशुद्धियों से बचा-बचाकर ।।
भाषा को शुद्ध रखना होगा 
शिक्षण का चतुर्थ चरण है पढना ।
भाषा का शुद्धपाठ ज़रूरी है
पुस्तक में जैसा लिखा शुद्ध ।।
वैसा ही शुद्धपाठ ज़रूरी है
“मन्दिर” को मन्दिर ही पढना है।
“मन्दीर” नहीं कभी पढना 
शुद्ध श्रवण,शुद्ध भाषण,।।
शुद्ध लेखन और शुद्ध पठन।
भाषाशिक्षण के चरण चार
भाषा की रक्षा करते हैं ।।
तथा प्रयोक्ता के गौरव में
चार चाॅंद लगा देते हैं।।
डाॅ० केदारनारायण जोशी

 

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