स्वाध्याय एवं ईश्वरोपासना जीवन में आवश्यक एवं लाभकारी हैं”
ओ३म् “स्वाध्याय एवं ईश्वरोपासना जीवन में आवश्यक एवं लाभकारी हैं” ============= मनुष्य आत्मा एवं शरीर से संयुक्त होकर बना हुआ एक प्राणी हैं। आत्मा अति सूक्ष्म तत्व व सत्ता है। इसे शरीर से संयुक्त करना सर्वातिसूक्ष्म, सच्चिदानन्दस्वरूप, निराकार, सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी, अनादि, नित्य व अविनाशी ईश्वर का काम है। आत्मा स्वयं माता के गर्भ में जाकर जन्म नहीं ले सकती। आत्मा को माता के शरीर में भेजना, वहां उसका पोषण करना, उसके शरीर व भिन्न अवयवों की रचना करना परमात्मा का काम है। परमात्मा न हो तो जीवात्मा का अस्तित्व होने पर उसका मनुष्य आदि किसी भी प्राणी योनि में जन्म नहीं हो सकता। अनादि काल से सृष्टि की रचना व प्रलय सहित जीवात्माओं के जन्म-मृत्यु-मोक्ष का क्रम चल रहा है। अनन्त काल तक यह चलता रहेगा। यह सिद्धान्त वेद तथा तर्क एवं युक्त्यिों से सिद्ध है। जो मनुष्य इस रहस्य को जान लेता है उसे कुछ समय के लिये तो वैराग्य ही हो जाता है। मनुष्य संसार में अपने सुख सुविधाओं के लिये जो उचित व अनुचित तरीकों से पाप-पुण्य करता है, उसे पापों से घृणा हो जाती है। उसे जब पता चलता है कि हमारा जन्म व स...