aaj ka mantra

 यदा संहरते चायं कूर्मोऽगानीव सर्वश:।

इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठता।।( गीता )

 अर्थ:-  जिस प्रकार कछुआ अपने अंगों को सब ओर से समेट लेता है ,उसी भाँति जो पुरुष अपनी सभी  इन्द्रियों को इन्द्रियविषयों से हटा लेता है, तब उसकी बुद्धि स्थिर हो जाती है  अर्थात् वही यथार्थ में परम ज्ञानी है।

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