गुरु कौन
गुरु कौन
सम्माननीय आर्यजन आप सभी को सादर नमस्ते
जैसा की आप सभी को विदित हैं की आज 5 सितंबर यानी शिक्षक दिवस हैं आज के दिन को शिक्षकों के सम्मान व स्वागत के लिए याद किया जाता हैं .
शिक्षक किसी भी समाज की आधारशिला के निर्माता होते हैं जिस भवन की नीव जितनी गहरी और मजबूत होगी वह भवन उतना ही ऊंचा उठ सकता हैं गगन को छू सकता हैं अर्थातः बाहरी उन्नति की आधारशिला आंतरिक मजबूती हैं मैने हाई स्कूल में एक कहानी पढ़ी थी नीव की ईट उसमें नीव की ईट उस भवन के कंगूरे अर्थातः सबसे ऊंची जगह लगने वाले चिनँह से वार्तालाप करता हैं कंगूरे को अपने ऊँचे स्थान का बहुत मान होता हैं पर जब नीव की ईट उसे समझाती हैं की अगर वो अपनी जगह ना लगी होती और उसने अपना बलिदान ना दिया होता तो कदाचित वो कंगूरा अपनी जगह पर शोभायमान ना हों रहा होता उस कहानी ने मूझे बहुत प्रेरित किया इसी प्रकार एक और कहानी संभवत बाबू गुलाबराय की पढ़ी थी गुलाब और रोटी के ऊपर जिसमें मानव जीवन के लिए गुलाब और रोटी में से कौन जरूरी हैं ये बताया गया था कहने का तात्पर्य ये हैं की जीवन को बनाने में उनका सर्वाधिक महत्व हैं जो स्वयं को मिटा कर दूसरों को जीवन देते हैं शिक्षक भी उन्हीं में से एक हैं जो अपनी शिक्षा के माध्यम से समाज को बनाते हैं राष्ट्र का निर्माण करते हैं किसी भी देश के आदर्श लोगों को देखना हों तो वहां के शिक्षकों को देख लीजिए अपने आप पता चल जाएगा की वहां कैसे लोग रहते हैं .
मूझे ये कहने में जरा भी संकोच नहीं की आज जो हम समाज का नैतिक और चारित्रिक पतन देख रहें हैं उसके लिए बहुत हद तक हमारे शिक्षक ही जिम्मेदार हैं शिक्षा का बाजारूकरण जबसे हमने किया हैं शिक्षा हमें मुक्त करने और मनुष्य बनाने का साधन बनने की बजाय हमें पैसा कमाने की मशीन और अंदर से पाशविक वृति वाला एक पशु बनाने का जरिया भर रह गई हैं आज जितना भ्रष्टाचार दिख रहा हैं उसके पीछे हमारी शिक्षा ही हैं सब पढ़ें लिखें लोग ही बड़े बड़े घोटालों को अंजाम दे रहें हैं कानूनों का पालन कराने की जिनकी जिम्मेदारी हैं वहीं कानून तोड़ रहें हैं पुलिस जज वकील क्या ये पढ़ें लिखें नहीं? बड़े बड़े कर सलाहकार टेक्स चोरी कैसे करे दो नंबर की कमाई कैसे ठिकाने लगाएं ये बताते हैं क्या वो पढ़ें लिखें नहीं? बड़े बड़े डाक्टरों का मकसद जैसे भी हों मरीज की आखरी बूंद भी निचोड़ लेने की होती हैं कैसे कोविड के नाम पर बड़े बड़े अस्पताल लाखों का बिल बना रहें हैं क्या वो पढ़ें लिखें नहीं हैं? जिस मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाता हैं वो लोगों की वास्तविक समस्याओं को ना दिखा कर सुबह से रात तक सुशांत सिहं राजपूत और चीन पाकिस्तान के पीछे पड़ा रहता हैं क्या वो पढ़ा लिखा नहीं हैं? जिन नेताओं पर राष्ट्र को आगे ले जाने की जिम्मेदारी हैं की वो निष्पक्ष भाव से जनता की भलाई के लिए काम करेंगे पर वो करते क्या हैं हम सबको पता हैं क्या वो पढ़ें लिखें नहीं हैं?
इससे क्या सिद्ध हों रहा हैं यही ना की हमारी सारी समस्याओं की जड़ में तथाकथित पढ़ें लिखें लोग ही हैं? जिन्हें इसलिए योग्य बनाया गया था की वो अपनी योग्यता से समाज को आगे ले जाएंगे पर वो कर क्या रहें हैं? इसका मतलब हैं की हम एक यंत्र की भांति पहाड़े याद कर रहें हैं जब भी हमारा मन चाहेगा हम अपने मतलब के लिए दो और दो पांच भी कर लेंगे क्योकि हमें यही सिखाया गया हैं की सच्चाई और ईमानदारी केवल क़िताब की बात हैं प्रैक्टिकल में तो पैसा ही काम आता है.
अगर हमें वास्तविक शिक्षा मिली होती और हमारे अंदर वास्तविक राष्ट्रभक्ति होती तो हमारे सामने इतनी समस्याएं ना होती जो आज हैं हर कदम पर सरकारी भ्रष्टाचार और कामचोरी प्राइवेट में लोगों से पैसा लूटने की हर संभव कोशिश समाज के रूप में हम हिन्दू मुसलमान में बटे हुए हैं उसके बाद भी भाषा के नाम पर लड़ते हैं ऊंच नीच का भेद आजतक नहीं मिटा ग़रीब और अमीर का अंतर इतना हैं की दुनिया में हम सबसे ज्यादा सामाजिक ग़रीब देशों में से एक हैं हमारे एक प्रतिशत लोग हमारी 90 प्रतिशत से ज्यादा संपत्ति के मालिक हैं मतलब एक तरफ अंबानी और अडानी हैं और एक तरफ मजदूर जो काम की तलाश में सड़क पर खड़ा हुआ हैं इन सब समस्याओं के पीछे हमारा सड़ा हुआ सिस्टम हैं जो इस खाई को पाटने की बजाए और बढ़ा रहा हैं आईये इस शिक्षक दिवस पर हम सोचे की हम अपने राष्ट्र के प्रति कौन से कर्तव्य का पालन कर रहें हैं अगर हम एक शिक्षक हैं तो हम अपना पूरा समय और ध्यान बच्चों को योग्य बनाने में लगाते हैं या केवल पुरानी पेँशन बहाली और बाबू से सेटिंग कर के बिना पढ़ाए सैलरी लेने में हमारा ध्यान हैं ?अगर हम सरकारी डाक्टर हैं तो C H C जाते हैं? अगर हम पुलिस में हैं तो लोगों की तकलीफ सुनते हैं उसका निवारण करते हैं? ऐसे सवाल आज हर किसी को अपने आप से पूछना चाहिए की क्या वो अपने कर्तव्यों पर पूरा ध्यान देते हैं य बस अधिकार की ही रट लगाएं रहतें हैं हम कोई भी क्यों ना हों सरकारी य प्राइवेट नौकर पेशेवर व्यवसायी कोई व्यापारी य मजदूर हमारा एक ही उद्देश्य होना चाहिए अपने देश को आगे बढ़ाना उसे दुनिया में सबसे ऊंचा स्थान दिलाना पर हम अपने अपने स्वार्थों के मारे ये देखनें में बिल्कुल अक्षम हैं की जिस देश में हम रह रहें हैं उसी की जड़ों को खोदने का काम कर रहें हैं जिस देश के नागरिक अपने कर्तव्यों को भूल कर केवल ये सोचते हैं की हमें क्या मिला हमें क्या मतलब हैं फालतू किसी के पचड़े में पड़ने की कुछ गलत हों रहा हैं तो होने दो हमारे साथ जब होगा हम तब सोचेंगे ऐसी सोच से कोई राष्ट्र आगे नहीं बढ़ सकता आईये साथ मिल कर अपने कर्तव्यों को याद करे अपनी शिक्षा व्यवस्था को धंधेबाजों के हाथों में जाने से बचाएं सही लोगों का साथ दें सही के लिए लड़े और आगे बढ़े तभी सही मायनों में हम अपने गुरु को सम्मान दे पाएंगे क्योकि गुरु का मतलब होता हैं अंधकार से प्रकाश में ले जाने वाला ऐसे सच्चे गुरुओं को मेरा प्रणाम जो इस राष्ट्र की सच्ची सेवा में निस्वार्थ भाव से नीव की ईट की तरह कार्य कर रहें हैं .
अनुज आर्य
मन्त्री नाई की मन्डि आर्य समाज आगरा
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